हिंदी के चार शीर्ष अख़बार, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान और नवभारत टाइम्स द्वारा कासगंज दंगे की कवरेज हमें क्या संदेश देती है.
पूर्वाग्रही मस्तिष्क की विशेषता होती है कि ऐसे व्यक्ति को अहसास ही नहीं होता कि किस मुद्दे पर वह पक्षपाती हो गया. यहां पर पत्रकारीय वस्तुनिष्ठता का महत्व स्थापित होता है. वरना पूर्वाग्रह और तथ्यों से परे पत्रकारिता एक व्यवस्थित एजेंडे का हिस्सा बन सकती है. सांप्रदायिक घटनाओं के समय में इसकी जरूरत और बढ़ जाती है, लेकिन हालिया कासगंज की घटना के बाद हिंदी पट्टी के लगभग सभी बड़े हिंदी अख़बारों ने समुदाय विशेष के खिलाफ व्यक्तिगत आग्रहों से ग्रसित खबरें चलाई.
कासगंज की हिंसा से जुड़ी हिंदी अख़बारों की कवरेज पर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाता है कि ये ख़बरें एकतरफा, तयशुदा पूर्वाग्रहों के साथ की गई. कई बार इसमें पत्रकार की व्यक्तिगत सोच हावी नज़र आई तो कई मौके पर खुद संस्थान की नीतियां ख़बरों की वस्तुनिष्ठता पर हावी दिखीं.
हम यहां हिंदी के चार प्रमुख अख़बारों दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान और नवभारत टाइम्स में कासगंज घटना से जुड़ी पिछले चार दिनों की कवरेज का एक विश्लेषण कर रहे हैं.
दैनिक जागरण, 27 जनवरी
दैनिक जागरण, जो हालिया आईआरएस सर्वेक्षण में देश का सबसे बड़ा अख़बार बनकर उभरा है, ने 27 जनवरी को कासगंज की हिंसा से जुड़ी तीन कॉलम की एक ख़बर पहले पन्ने पर लगाई. इसका शीर्षक था- “उत्तर प्रदेश में तिरंगा यात्रा के दौरान सांप्रदायिक बवाल, एक की मौत”. इस शीर्षक के साथ एक उपशीर्षक भी था- “एक समुदाय के लोगों ने लगाए पाकिस्तान के समर्थन में नारे, विरोध पर पथराव”.
ख़बर को विस्तार देते हुए लिखा गया है- “दिनभर फायरिंग और पथराव के अलावा आगजनी की कोशिश की गई. उपद्रवियों की गोली से एक युवक की मौत हो गई, दो अन्य घायल हो गए. विद्यार्थी परिषद के कुछ कार्यकर्ताओं की बाइकें फूंक दी गईं. पथराव में कुछ पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल हुए हैं.”
जागरण आगे लिखता है कि शुक्रवार की सुबह अखिल विद्यार्थी परिषद और हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ता बाइक से तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे. इस दौरान वे वंदे मातरम्, भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे. यात्रा मुहल्ला बद्दूनगर से गुजर रही थी, तभी एक समुदाय के कुछ लोग पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने लगे. इस पर टकराव बढ़ गया और तिरंगा यात्रा पर पथराव शुरू हो गया. विद्यार्थी परिषद के दो दर्जन से अधिक कार्यकर्ता अपनी बाइक छोड़कर भागे तो उपद्रवियों ने उनकी बाइक फूंक दी. बवाल की सूचना मिलते ही विद्यार्थी परिषद के पक्ष में भीड़ जमा हो गई तो दूसरे समुदाय के लोगों ने छतों से पथराव-फायरिंग शुरू कर दी.
अब तक जो तथ्य और सबूत सामने आए हैं उससे यह बात साफ हुई है कि दरअसल दोनों पक्ष गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी कर रहे थे. कथित एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने उग्र और भड़काऊ नारेबाजी की. एक वीडियों में साफ सुना जा सकता है कि भीड़ मुस्लिम समूह के सामने- “हिंदुस्तान में रहना है, तो वंदेमातरम् कहना है” और “जयश्रीराम” के नारे लगा रहे थे. इसके अलावा भीड़ ने अपने हाथ में भगवा झंडे भी उठा रखे थे.
कहीं भी पाकिस्तान समर्थक नारे की बात सामने नहीं आई है लेकिन जागरण ने किसी स्रोत या सबूत का जिक्र किए बिना अपनी ख़बर में लिखा कि ‘एक समुदाय विशेष द्वारा’ पाकिस्तान समर्थित लगाए गए. जागरण ने कई पुलिसकर्मियों के घायल होने की बात भी कही लेकिन किसी का नाम या अन्य जानकारी आज तक सामने नहीं आई है. जागरण की ख़बर प्रथमदृष्टया मनगढ़ंत तरीके से लिखी गई प्रतीत होती है जिसे संपादकीय टीम ने बिना किसी क्रॉस चेकिंग के प्रकाशित कर दिया. जागरण की इस ख़बर ने उस “समुदाय विशेष” को देशद्रोही साबित करने और उसके प्रति घृणा का माहौल खड़ा करने में मदद की.
दैनिक जागरण, 28 जनवरी
जागरण ने अगले दिन फिर से पहले पन्ने पर तीन कॉलम की लीड ख़बर छापी. इस ख़बर में एक बार फिर से तथ्यों की बजाय धारणाओं का गहरा प्रभाव देखने को मिला. ख़बर बताती है कि, “कासगंज में गणतंत्र दिवस पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तिरंगा यात्रा के दौरान मुस्लिम बहुल मोहल्ला बद्दूनगर में कुछ लोगों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए और तिरंगा यात्रा में गाए जा रहे वंदेमातरम् का विरोध किया. इस पर विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया तो दूसरे पक्ष ने पथराव शुरू कर दिया था. बाद में हुई फायरिंग में चंदन गुप्ता नाम के एक युवक की गोली लगने से मौत भी हो गई थी.
जाहिर है अख़बार ने घटना के लगभग 48 घंटे बाद भी तथ्यों की सम्यक समीक्षा करने की बजाय आधे-अधूरे तथ्यों पर स्टोरी की.
जागरण ने पेज नं. 17 पर छह कॉलम की एक और ख़बर प्रकाशित की, इसका शीर्षक है- “कासगंज जा रहीं साध्वी प्राची को रोकने पर हंगामा”. इस ख़बर में भी इनपुट बॉक्स में कहा गया कि तिरंगा यात्रा के दौरान मुस्लिम बहुल इलाके में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए, और वंदेमातरम् का विरोध किया गया था.
जागरण अपनी रिपोर्टिंग में बारंबार यह बात कहकर समुदाय विशेष के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर रहा था.
दैनिक जागरण, 29 जनवरी
इसके बाद जागरण ने सोमवार को सारी हदें पार करते हुए एक ख़बर चलाई- “खुफिया एजेंसियों ने कहा, कासगंज हिंसा में विपक्षी दलों की साजिश”. ख़बर में कहा गया कि “कासगंज में गणतंत्र दिवस पर जो कुछ हुआ वह सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था या आकस्मिक, इस बारे में तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है. हिंसा को लेकर शासन को भेजी गई खुफिया रिपोर्ट में बवाल के लिए कुछ विपक्षी नेताओं की ओर इशारा किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार चंदन गुप्ता के हत्यारोपियों को स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त है.” यह ख़बर पूरी तरह से अनाम स्रोत के आधार पर लिखी गई है, इसमें किसी जिम्मेदार अधिकारी या दस्तावेज का कोई जिक्र नहीं है. स्टोरी में किसी रिपोर्टर की बाइलाइन भी नहीं है.
दैनिक भास्कर, 28 जनवरी
दैनिक भास्कर खुद को शहरी भारत का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला समाचारपत्र होने का दावा करता है. 28 जनवरी को पेज नं. 5 पर छपी तीन कॉलम की ख़बर में भास्कर लिखता है- “गणतंत्र दिवस पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के कासगंज में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई. मोटरइसाकिलों पर हाथों में तिरंगा लेकर वंदे मारतम और भारत माता की जय के नारे लगा रहे युवकों पर एक समुदाय विशेष के लोगों ने पथराव और फायरिंग कर दी. गोली लगने से चंदन गुप्ता नाम के युवक की शुक्रवार को मौत हो गई.”
इसी ख़बर का शेष भाग पेज नं. 8 पर है जिसमें घटना का विस्तार से वर्णन किया गया है. “भड़काऊ नारों से भड़की थी हिंसा: घटना 26 जनवरी की सुबह से शुरू हुई. एबीवीपी के कार्यकर्ता मोटर साइकिलों पर तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे. बताया जा रहा है कि अल्पसंख्यक बहुल हुल्का इलाके में पहुंचकर इन्होंने हिंदुस्तान में रहना है तो वंदे मातरम् कहना है’, भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाए. कुछ आपत्तिजनक नारों के जवाब में दूसरे पक्ष के युवकों ने पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाया. इस पर दोनों पक्ष भिड़ गए. पथराव होने पर एबीवीपी कार्यकर्ता मोटरसाइकिल छोड़ भाग गए. कुछ मोटरसाइकिलें जला दी गईं. बाद में कई जगह दोनों पक्ष आमने-सामने हुए. इसी दौरान फायरिंग में चंदन मारा गया. हालांकि, आगरा के एडीजी अजय आनंद ने कहा कि यह कोई घोषित तिरंगा यात्रा नहीं थी. लड़कों ने जोश में यात्रा निकाली थी.
भास्कर ने ख़बर में तथ्यों को इस ढंग से व्यवस्थित किया है कि बहुत सारे पाठक ख़बर का इन्ट्रो पढ़कर ही एक धारणा बना लेंगे. शेष भाग पढ़ने के लिए पेज नं. 8 पर शायद ही जाएंगे. जो चल भी जाए उसे पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा कचोटेगा. भास्कर ने भी पूरी स्थिति को समग्रता से सामने रखने की बजाय भारत माता की जय और वंदे मातरम् का जिक्र इस तरह से किया जिससे लगे कि इन नारों की वजह से दूसरे समुदाय ने तिरंगा यात्रा पर हमला किया है. उसने यह भी बताना ठीक नहीं समझा कि आखिर दूसरे समुदाय के लोग वहां क्या कर रहे थे? वो ये भी नहीं बताता है कि दूसरे समुदाय के लोग गणतंत्र दिवस मना रहे थे जहां एबीवीपी के लोगों ने पहुंचकर उग्र और भड़काऊ नारेबाजी शुरू कर दी.
दैनिक भास्कर, 29 जनवरी
29 जनवरी यानी सोमवार को भास्कर एक बार फिर से दंगों और उसके कारणों की तह में जाने की बजाय ख़बर देता है- “चंदन पर हमले का मुख्य आरोपी शकील फरार है. पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली, जहां देसी बम और पिस्तौल बरामद हुई.’
नवभारत टाइम्स, 27 जनवरी
27 जनवरी को नवभारत टाइम्स की खबर पेज नं. 11 पर प्रकाशित हुई. इसका शीर्षक था- “अलीगढ़ में तिरंगा यात्रा के दौरान बवाल, एक की मौत”. खबर शीर्षक में अलीगढ़ लिखता है लेकिन अंदर कासगंज की बात हो रही है. चारो अंग्रेजी अख़बारों में मिलाकर यह अकेली ख़बर रही जिसमें रिपोर्टर की बाइलाइन थी. इसे पंकज शर्मा ने लिखा था.
नवभारत टाइम्स की ख़बर काफी हद तक संतुलित कही जा सकती है हालांकि यह अख़बार भी उन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश नहीं करती जिसमें कहा गया कि मुस्लिमों ने तिरंगा यात्रा का विरोध किया या फिर वहां भारत विरोधी नारे लगाए गए.
नवभारत टाइम्स, 28 जनवरी
घटना के दूसरे दिन नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने पर कासगंज हिंसा की ख़बर लगाई. इसका शीर्षक था- “कासगंज में दूसरे दिन भी हिंसा, दुकानें-बस फूंकी”. इस ख़बर में नवभारत टाइम्स ने कोई बाईलाइन नहीं लगाई.
नवभारत टाइम्स, 29 जनवरी
घटना के तीन दिन बाद नवभारत ने ख़बर तो की लेकिन अपनी तरफ से कोई बात न कहकर पुलिस की कहानी को हूबहू रख दिया. न पुलिस अधिकारी के नाम का जिक्र किया गया न ही उसका पद. ना ही कोई बाइलाइन.
29 जनवरी को पेज नं. 12 पर छपी रिपोर्ट में कहा गया है- “गौरतलब है कि पुलिस के बयान में कहा गया है कि 26 जनवरी की सुबह कस्बा कासगंज में अज्ञात लोग मोटरसाइकलों से ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए हाथों में तिरंगा झंडा लेकर भ्रमण कर रहे थे. जुलूस जैसे ही दूसरे समुदाय के लोगों के इलाके में पहुंचा तो कुछ उपद्रवी तत्वों ने पथराव और फायरिंग शुरू कर दी, जिससे दोनों पक्षों में विवाद बढ़ गया. इसी बीच फायरिंग के दौरान दो युवक, अभिषेक गुप्ता उर्फ चंदन और नौशाद गोली लगने से घायल हो गए. घायल चंदन को सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई. इसके बाद कासंगज में हिंसा भड़क उठी.”
दैनिक हिंदुस्तान, 27 जनवरी
कासगंज हिंसा के ठीक अगले दिन हिंदुस्तान ने पेज नं. 7 पर ख़बर प्रकाशित किया. इसका शीर्षक था- “तिरंगा यात्रा के दौरान उपद्रव”. संस्थान ने इस ख़बर में कोई बाइलाइन नहीं लगाई.
दैनिक हिंदुस्तान, 28 जनवरी
घटना के दूसरे दिन जाहिर है जब हिंसा से जुड़ी काफी सारी जानकारियां सामने आ चुकी थी तब हिंदुस्तान ने बिना किसी रिपोर्टर की बाइलाइन के ख़बर चलाई- “कासगंज में कर्फ्यू जैसे हालात, 48 लोग हिरासत में”. हालांकि हिंदुस्तान ने भी अपने स्तर पर इस मामले की तह में जाने के कोई ख़ास प्रयास नहीं किए.
दैनिक हिंदुस्तान, 29 जनवरी
हिंदुस्तान की 29 जनवरी की कवरेज कुछ हद तक संतुलित रही लेकिन ख़बर में एक आसान शिकार खोजने की कोशिश फिर से की गई. पेज नं. 12 पर पांच कॉलम की ख़बर छपी- ‘हिंसा की आशंका वाले इलाकों में कड़ी सुरक्षा’ शीर्षक वाले ख़बर में एक इनपुट स्टोरी जोड़ी गई है. शीर्षक है- “दोनों ओर देशभक्ति फिर क्यों फैली नफरत”.
इसमें हिंदुस्तान महज मदरसे के बाहर रखीं कुर्सी मेजों को बवाल का कारण बताता है. अख़बार लिखता है कि “बात छोटी सी थी, बड़ी हो गई. बात रास्ते की थी, सड़क पर बवाल बन गई. बवाल होने की वजह तिरंगा यात्रा के दौरान मदरसे के बाहर रखीं मेजे बनीं. इनके कारण तिरंगा यात्रा की राह रुकी तो बात बड़ी हो गई.”
अख़बार का निज संवाददाता न तो उस समय लगाए गए आपत्तिजनक नारे की बात बताता है और न ही उस समय की परिस्थितियों का. बवाल का सारा ठीकरा मदरसे की मेज पर फोड़ देता है.
निष्कर्ष
हिंदी के ये चार अख़बार हिंदी के संपूर्ण पाठकों का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं. कासगंज पर इनकी रिपोर्टिंग से यह साफ़ हो जाता है कि ये किस प्रकार एक समुदाय के प्रति पूर्वाग्रही हैं. बहुत चालकी से ये लोगों को देशभक्त और देशद्रोही के खेमे में बांट रहे हैं. देश की अधिकतर आबादी जब इन अख़बारों को रोजाना पढ़ रहीं है तो क्या इससे एक स्वस्थ, तार्किक, वैज्ञानिक पद्धति से सोच-विचार करने वाले समाज का निर्माण हो रहा है?