स्क्रीन पत्ती! मनोरंजन का मतलब संवेदनहीनता नहीं है

स्क्रीन पत्ती नामक यूट्यूब वेब चैनल का यह शो पूरी तरह से विकलांगों के प्रति असंवेदनशील है.

WrittenBy:धीरू यादव
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हमारी फिल्मों, टीवी सीरियल्स आदि में विकलांग किरदारों के प्रति पुरानी स्टीरियोटाइप सोच आज भी पुराने दौर की जड़ता और गहराई से मौजूद हैं. उनकी वास्तविकता से दूर उन्हें लाचार, सहानूभूति का पात्र, असहाय और दयनीय दिखाने की प्रवृत्ति गई नहीं है.

या फिर इसके बिल्कुल विपरीत उन्हें, दैवीय या नायकत्व वाली छवि में दिखाने की कोशिश होती है जो कि उनके वास्तविक जीवन से कोसों दूर है.

समाज में आमतौर पर विकलांगों का परिहास उड़ाने की प्रवृत्ति देखी जाती है. हिंदी की प्रसिद्ध किताब राग दरबारी में एक पात्र अपनी विकलांगता के कारण लंग़ के नाम से जाना जाता है. समाज इसी तरह आंख के अंधे को काना, पैर से विकलांग को लंगड़ा, टूटे हाथ वाले व्यक्ति को लूला कहने की कुप्रथा है. समाज पूरी निर्ममता से इस काम को करता है.
ऐसी ही सोच हाल ही में आए “द स्क्रीन पत्ती” नामक वेब चैनल के एक वीडियो “इंटरनेट के साइड-इफेक्ट” में दिखाया गया.

वीडियो में दिखाया गया है की इंटरनेट पर प्रसिद्धि बटोरने हेतु दो व्यक्ति जीजी और वीरजी एक वीडियो अपलोड करते हैं, और उल-जुलूल हरकतों वाला यह वीडियो काफी लोकप्रिय हो जाता है. फिर वे दोनों प्रशंसकों से घिरे होने पर वहीं खड़े एक दृष्टिबाधित व्यक्ति को हाथों में उठाकर तस्वीर खिंचाते हैं (2.10 से 2.18 के बीच वीडियो देखें). दृष्टिहीन आदमी उनसे कहता भी है की “मैं तो चल सकता हूं.” लेकिन वे दोनों उसे नज़रअंदाज कर यह कारनामा करने में नहीं हिचकिचाते.

और हद तो तब होती है जब जीजी व वीरजी आपस में लड़ने लगते हैं. इस हालत में और जब वह दृष्टिबाधित व्यक्ति उनको रोकने का प्रयास करता है तो वे दोनों उसी दृष्टिबाधित व्यक्ति पर टूट पड़ते हैं और साथ ही बेहद आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते दिखते हैं. जैसे- “चुप बे अंधे, अंधा है क्या, अंधा है तो इलाज क्यों नहीं कराता वो भी क्या मैं ही कराऊं, मैं क्या चैरिटी के लिए बैठा हूं, इत्यादि इत्यादि.” (4.38 से 5.00 के बीच वीडियो देखें)

वे लोग उसे मारते हुए ये सब बोलते जाते हैं. और आश्चर्य की बात तो यह है की वह दृष्टिबाधित व्यक्ति उन से न तो कुछ ऐसा कहता है और न ही इलाज के लिए पैसे ही मांगता है. किन्तु फिर भी वे दोनों ऐसा करते हैं.

ऐसा तभी होता है जब आप विकलांगता के प्रति सजग न हों, और आपकी समझ विकलांगता जैसे संवेदनशील विषयों के प्रति पुष्ट न हो, आपके दिमाग में सिर्फ मनोरंजन औऱ व्यवसाय घूम रहा हो.

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