देश के दो लोकप्रिय समाचार चैनल आज तक और ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रमों, ‘दंगल’ और ‘ताल ठोंक के’ के सांप्रदायिक चरित्र का एक सर्वे.
लगभग दो दशक बाद निजी समाचार चैनलों का चेहरा परिपक्व होने की बजाय और विकृत रूप में हमारे सामने आ रहा है. मीडिया की साख का लिहाज शुरुआत में चैनलों को था. अब शायद उन्होंने वो दिखावा भी छोड़ दिया है. मीडिया के इस बदले हुए स्वरूप का एक मजबूत पक्ष पॉलिटिकल इकोनॉमी के संदर्भ में भी समझने की जरूरत होनी चाहिए.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एक छोटे सैंपल साइज के जरिए न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों को समझने की एक कोशिश की है. ज़ी न्यूज़ और आज तक पर रोज़ाना शाम 5 बजे प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘ताल ठोक के’ और ‘दंगल’ के दस दिनों की पड़ताल की है. दोनों ही कार्यक्रम अपने मूल स्वरूप में सांप्रदायिकता को पोषित करने वाले साबित हुए.
आश्चर्यजनक ये रहा है कि दस दिनों के दौरान ‘दंगल’ का शत प्रतिशत कार्यक्रम हिंदू-मुसलमान की अवधारणा पर केंद्रित रहा जबकि ‘ताल ठोक के’ के 80 फीसदी कार्यक्रम इसी तरह की सांप्रदायिक सोच से ग्रसित थे. पूरा सर्वेक्षण आपकी आंख खोल देगा.
21 नवंबर, 2017- अबकी बार ट्रिपल तलाक पर आखिरी वार? (ज़ी न्यूज़)
कार्यक्रम की शुरुआत में एंकर रूबिका लियाक़त पांच सवाल रखती हैं-
“क्या मुस्लिम महिलाओं से वादा निभाएंगे मोदी?”
“ट्रिपल तलाक का साथ देंगे राहुल और औवेसी-आजम?”
“मौलाना की मनमर्जी रोकेगा ट्रिपल तलाक कानून?”
“मान न मान ट्रिपल तलाक पर ‘मेरी मान’?”
“अबकी बार ट्रिपल तलाक पर आखिरी वार?”.
आठ पैनलिस्ट के साथ बैठकर तकरीबन आधे घंटे के कार्यक्रम में रूबिका मुस्लिम महिलाओं का पक्ष लेते हुए मौलानाओं को जमकर डपटती हैं. कार्यक्रम के अंत में चैनल अपने टिकर लिखता है कि उसे मुस्लिम कट्टरपंथियों की ओर से धमकियां मिल रही हैं. साथ में चैनल दावा करता है कि, जब ज़ी न्यूज़ सवाल उठाता है तो देश बदल जाता है.
मुजरे से उतरा कश्मीर पर पाकिस्तान का ‘मुखौटा’?
इस कार्यक्रम का दूसरा हिस्सा एंकर ने भारत-पाकिस्तान के हवाले से किया. इस कार्यक्रम के दौरान पूछे गए पांच सवाल पढ़ें-
“मुजरे से छिपेगा पाकिस्तान का ‘पाप’?”
“मुजरे से उतरा कश्मीर पर पाकिस्तान का ‘मुखौटा’?”
“कश्मीर के लिए ‘आइटम डांस’ के खिलाफ पत्थरबाजी कब?”
“आंतक के ‘आइटम डांस’ पर ‘अब्दुल्ला गैंग’ क्यों खामोश है?”
“मुजरा पार्टी करने वाले कश्मीर के असली मुजरिम?”.
दरअसल, चैनल के पास एक फुटेज है जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान लंदन की किसी पार्टी में हैं. वहां डांस चल रहा है. एंकर दावा कर रही है कि इसका आयोजन कश्मीर में आंतकी गतिविधियों के लिए फंड जुटाने के लिए किया गया है. लेकिन इसकी कोई पुख्ता जानकारी या सोर्स के बारे में एकंर रूबिका अपने दर्शकों को नहीं बताती. मजेदार है कि फुटेज में जो गाना चल रहा है वह बॉलीवुड फिल्म तीसमार खां का गाना ‘शीला की जवानी’ है.
कार्यक्रम का हैशटैग है #PakistanKaMujra. इस डांस को एंकर बार-बार मुजरा या आइटम नंबर कहकर संबोधित करती है. इसपर एक पैनलिस्ट कहता है कि आप इस भाव से क्यों कह रही है जैसे मुजरा कोई ग़लत हरकत है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने ज़ी न्यूज़ पर रोज़ाना शाम पांच बजे प्रसारित होने वाले शो ‘ताल ठोक के’ का एक फौरी रिव्यू किया. 21 नवंबर से 30 नवंबर यानी दस दिनों के दौरान रूबिका के कार्यक्रम के विषयों पर नज़र दौड़ाने पर हमें हैरानी हुई कि इस दौरान सिर्फ दो कार्यक्रम बेहद महत्वपूर्ण गुजरात चुनावों पर आधारित रहे. इनका विषय भी राहुल गांधी से सवाल और चाय पर चर्चा से संबंधित था.
दस दिनों के दौरान कुल 80 फीसदी कार्यक्रम हिंदू-मुस्लिम, कश्मीर, पाकिस्तान, हाफिज सईद, ओवैसी, तीन तलाक जैसे विषयों को समर्पित रहे. कहने का अर्थ है कि सभी कार्यक्रम हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव के इर्द-गिर्द.
क्या इन दस दिनों के दौरान यही बड़ी ख़बरें थी? इसका जवाब है नहीं. इसी अवधि में त्रिपुरा में पत्रकार की हत्या हुई, चैनल ने कोई ताल नहीं ठोंकी, इसी अवधि में केंद्र सरकार ने बैंकों से जुड़े इंसॉल्वेंसी ऑर्डिनेंस पास किया पर उसे भी जगह नहीं मिली. इसी दौरान सोहराबुद्दीन मर्डर केस की सुनवाई कर रहे जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत की ख़बर भी ब्रेक हुई लेकिन रूबिका हिंदू-मुस्लिम भजन में लीन रहीं. ट्राई ने इसी दौरान बेहद महत्वपूर्ण नेट न्यूट्रैलिटी के मुद्दे को अपना समर्थन जारी किया, पर उसे भी ज़ी के इस शो में जिरह के लायक नहीं समझा गया.
ज़ी न्यूज़ पर प्रसारित हो रहा ताल ठोक के पूरी तरह से सांप्रदायिकता की चाशनी में डूबकर पत्रकारिता कर रहा है. नीचे दस दिनों के दौरान प्रसारित हुए कार्यक्रम और उसका शीर्षक दिया है. अमूमन हर दिन की यही कहानी है. पत्रकारिता की आड़ में सांप्रदायिक वैमनस्य की खेती हो रही है और उसका व्यावसायिक दोहन हो रहा है.
‘दंगल’: रोहित सरदाना, आज तक
दिलचस्प बात है कि रोहित सरदाना आज तक से जुड़ने से पहले ज़ी न्यूज़ में होते थे और उसी कार्यक्रम ‘ताल ठोक के’ की एंकरिंग करते थे जिसे आजकल रूबिका लियाकत संभाल रही हैं. जाहिर है रूबिका उसी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं जो सरदाना से उन्हें विरासत में मिली थी. या कहें कि उन्होंने सरदाना की विरासत में चार चांद लगा दिया है.
जाहिर है सरदाना आज तक से जुड़ने के साथ ही अपनी पुरानी विरासत को लेकर भी चौकन्ने थे. हमने इसी दस दिन की अवधि (21 नवंबर से 30 नवंबर) में आज तक पर प्रसारित होने वाले सरदाना के कार्यक्रम ‘दंगल’ के स्वरूप का भी एक फौरी रिव्यू किया.
21 नवंबर, 2017- कश्मीर के नाम मुजरा- पाक परस्तों को आएगी शर्म!
रोहित सरदाना का कार्यक्रम लंदन के एक कार्यक्रम का है. एंकर बता रहा है कि वहां जो प्रोग्राम हो रहा है वो कश्मीर में आंतकी गतिविधियों के लिए फंडिंग करता है. यहां के मौलाना पैनलिस्ट पाकिस्तान को खूब धिक्कारते हैं. मुजरा शब्द को अपमानजनक भाव से सामने रखते हैं. गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर रूबिका लियाकत ने भी कार्यक्रम किया था.
अगले दिन यानी 22 नवंबर को भी दंगल जारी रहा. इस दिन का विषय तीन तलाक रहा. निशाने पर फिर से मुसलमान और मौलाना थे. एंकर जानना चाहते थे कि क्या यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मंजूर होगा? चैनल ही कांग्रेस पर सवाल खड़ा करते हुए कह देता है कि कांग्रेस भले इसका स्वागत कर रही हो लेकिन उसकी नियत पर शक तो है ही.
अगले सभी कार्यक्रम भी हाफिज सईद, इसाई, कश्मीर, विकास या हिंदू आतंकवाद, राहुल का धर्म जैसे विषयों पर केंद्रित रहा. शनिवार, रविवार की छुट्टियां हटाकर इस अवधि में ‘दंगल’ के कुल 8 कड़ी प्रसारित हुई और आठो का विषय हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव के इर्द गिर्द ही रहा. यानी रोहित सरदाना 100% के साथ पास हुए. इस दौरान भी वही सारे महत्वपूर्ण मुद्दे रहे जिनका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं लेकिन सरदाना के ‘दंगल’ में वो जगह नहीं पा सके. सरदाना के कार्यक्रमों की एक लिस्ट पढ़ें-
दोनों कार्यक्रमों का पैटर्न एक है. शब्दावली एक है. एक ही तरह के विषय हैं. चाहे दंगल हो या ताल ठोंक के. कार्यक्रम के कॉन्टेंट कश्मीर, पाकिस्तान, राहुल, मोदी, ट्रिपल तलाक जैसे विषयों पर आधारित है.
यहां सवाल उठता है कि एक दर्शक के रूप में आप इन कार्यक्रमों को देखकर या सुनकर कितना समृद्ध होते हैं, आपकी जानकारी कितनी बढ़ती है या फिर आप कितना घृणा और संदेह के साए में पहुंच जाते हैं. इसका जवाब है- एक छात्र या बतौर दर्शक आपको कुछ भी सूचनापरक जानकारी नहीं मिलेगी. आपको एक उकसावा मिलेगा जो धार्मिक आधार पर आपको भड़काता है. एंकर की बातें हेट स्पीच के इर्द-गिर्द होती हैं. ऐसा अनजाने में नहीं हो रहा. ये चैनल तमाम जरूरी मुद्दों को नज़रअंदाज कर सिर्फ हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव को यूं ही नहीं रगड़ रहे हैं. इसका एक राजनीतिक मकसद है और दूसरा व्यावसायिक.
इसके व्यावसायिक पक्ष को समझना है तो इन दोनों कार्यक्रमों की 25 नवंबर, 2017 से 1 दिसंबर, 2017 तक आई टीआरपी का आंकड़ा देख सकते हैं. आजतक सबसे ऊपर है और ज़ी न्यूज़ दूसरे नंबर पर हैं. व्यावसायिक सफलता की होड़ में देश को अज्ञानता में झोंकने का प्रोजेक्ट चल रहा है.
रूबिका या सरदाना जैसे एंकरों के लिए अन्य मुद्दों की अपेक्षा हिंदू-मुसलमान के मुद्दे पर पिले रहना सुविधा का मसला भी है. किसी नीतिगत विषय पर कोई तथ्यपरक शो करने के लिए अध्ययन की दरकार होती है, विषय की बारीकियों में घुसने की जरूरत होती है, उसके मुफीद पैनलिस्ट की जरूरत होती है. जबकि हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव के साथ आसानी है कि आप देश की वर्तमान लोकप्रिय धारा के साथ तैर रहे हैं. संबित पात्रा, मौलाना रसीदी जैसे घिसे-पिटे चेहरों के साथ हर दिन एक ही तरह की बतकही में न तो आपको अध्ययनशील होने की जरूरत है न पत्रकार होने की जरूरत है. टीवी स्क्रीन पर मन मुताबिक आठ-दस खिड़कियां खोलकर बात आगे बढ़ाई जा सकती है.
चैनल जैसे चरवाहे हैं और दर्शक भेड़-बकरियां.