विकास का रथ छोड़ रामरथ पर सवार हुए आदित्यनाथ

आगामी नगर निकाय चुनावों में योगी आदित्यनाथ के एजेंडे में अयोध्या ऊपर और विकास नीचे दब गया है.

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ठीक एक महीना पहले, सरयू नदी के तट सहित समूचे अयोध्या शहर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा नेताओं के लिए धो-पोछकर साफ किया गया, अतिक्रमण हटाकर रास्ता चौड़ा किया गया. दिवाली के दिन मुख्यमंत्री अयोध्या पहुंचे. यहां उन्होंने पहले भगवान राम की पूजा की और फिर सरयू के तट पर 1.8 लाख मिट्टी के दिए जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया. इस दौरान हेलीकॉप्टर को पुष्पक विमान का रूप देकर अयोध्या में त्रेतायुग उतारने का उपक्रम भी हुआ.

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इस मौके पर मुख्यमंत्री ने एक महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की- 1.33 करोड़ रुपये की लागत से रामायण सर्किट का निर्माण. इसे केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित किया जाएगा. सरयू नदी के तट पर स्थित इस सर्किट में राम की कहानी बताने वाला डिजिटल संग्रहालय, एक अर्बन हाट और कोरियन मंदिर शामिल होंगे.

मुख्यमंत्री ने अयोध्या में सरयू के तट पर 100 मीटर ऊंची राम की प्रतिमा और श्रद्धालुओं के लिए कई अन्य सुविधाओं का भी वादा किया है. यह सबकुछ 2019 तक किया जाना है, जिस वर्ष आम चुनाव होने हैं. यह क़दम उत्तर प्रदेश चुनाव के मद्देनजर भी अहम होगा.
स्थानीय लोग बताते हैं कि अयोध्या में कभी भी इस तरह के बड़े स्तर पर दिवाली उत्सव और योजनाओं की बारिश पहले नहीं हुई, भले ही केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार रही हो.

इस तरह के आयोजन तब और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब एक सन्यासी मुख्यमंत्री- जो बिना झिझक हिंदुत्व की बातें करता है, भगवा पहनता है, गायों के प्रति गर्व से अपनी चाहत दिखाता है- यह सब करता है.

मार्च में सत्ता में आने के बाद अयोध्या योगी का सबसे पसंदीदा गंतव्य रहा है. बीते मंगलवार को भाजपा के लिए निकाय चुनाव अभियान की शुरूआत के पहले वे तीन बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं. यह उनका चौथा अयोध्या दौरा था. पिछले पंद्रह वर्षों में अयोध्या (जहां 1992 में बाबरी मस्जिद गिरायी गई थी) जाने वाला कोई दूसरा मुख्यमंत्री नहीं हुआ.
अयोध्या में राम जन्मभूमि – बाबरी मस्जिद का केंद्र रहा है, जहां योगी और भाजपा राजनीतिक फायदे के लिए लंबे समय से सुविधानुसार मंदिर मुद्दे को भुनाने की कोशिश में रहते हैं. दूसरी तरफ उनके अनुयायियों ने भी अब उनके समर्थन में हाथ आगे बढ़ा दिया है.

500 साल पुराने इस विवाद में इसी सप्ताह आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर भी मध्यस्थ के रूप में कूद पड़े हैं. उनका दावा है कि शिया वक्फ बोर्ड ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है.

हालांकि 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जो निर्णय दिया था उसके अनुसार इस मामले के चार पक्षकार थे- गोपाल सिंह विषारद, निर्मोही अखाड़ा, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और श्री रामलला विराजमान.

स्पष्ट है श्री श्री रविशंकर जिस शिया वक्फ बोर्ड की ओर से मध्यस्थता कर रहें हैं, वो कोर्ट के निर्णय के मुताबिक इस मामले का पक्षकार है ही नहीं.

नवंबर 16 को अयोध्या में इस मामले के विभिन्न पक्षकारों से मिलने के पहले रविशंकर बुधवार को मुख्यमंत्री से मिलने लखनऊ पहुंचे.

शिया वक्फ बोर्ड, जो अपने को बाबरी मस्जिद विवाद का एक पक्षकार बताता है, अगस्त में उसने सुझाव दिया कि मस्जिद को राम जन्मभूमि से थोड़ी दूरी पर बना लेना चाहिए. यह बात निश्चित तौर पर भाजपा के पक्ष में जाती है.

“जैसा कि मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है, और उस पर यथास्थिति बनाए रखना है. लिहाजा राम जन्मभूमि पर कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है. इस तरह के आयोजनों और मध्यस्थताओं की आड़ में से भाजपा अपने पुराने वादों को पूरा कर पाने की असफलता को छिपाना चाहती है,” लखनऊ यूनिवर्सिटी में लॉ विभाग के एक प्रोफेसर ने बताया.

इसी बीच, मुख्यमंत्री अन्य धार्मिक स्थानों पर भी भारी-भरकम योजनाओं की घोषणा करते चले गए. अगले वर्ष होली के अवसर पर मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर इसी तरह के भव्य आयोजन की योजना है.

गोरखनाथ पीठ के मुख्य पुरोहित योगी आदित्यनाथ की योजना उत्तर प्रदेश के हर जिले में गौशाला तैयार करने की है. वृंदावन और बरसाना को धार्मिक स्थल के साथ ड्राइ एरिया घोषित कर दिया गया है. अब यहां मांस, अंडा और शराब की बिक्री प्रतिबंधित कर दी गई है.

उनके अपने दफ्तर, सचिवालय बिल्डिंग, सरकार की वेबसाइट, टेलीफोन डायरेक्ट्री, सार्वजनिक बसों और प्राथमिक स्कूलों के स्कूल बैग पर भगवा रंग चढ़ाया जाएगा. भगवा का संबंध हिंदुत्व से है और यही कारण है कि इसका अलग-अलग धड़ों से विरोध किया जा रहा है.

इस तरह के धार्म केंद्रित आयोजनों और घोषणाओं से उत्तर प्रदेश का राजनीतिक विमर्श स्पष्ट है. नवंबर के आखिरी हफ्ते में मेयर पदों और नगर निकायों के चुनाव संपन्न होने हैं.चुनाव परिणाम न सिर्फ अगले लोकसभा के लिए एजेंडा सेट करेंगे बल्कि योगी सरकार के कामकाज पर भी जनमत होगा.

इसके विपरीत, राज्य में बड़ी संख्या में विकास कार्य अधर में लटके हैं. यूपी देश भर में शिशु मृत्यु दर में पहले और मातृ मृत्यु दर में दूसरे स्थान पर है. कानून व्यवस्था पूर्व की भांति ही लचर है और उसी तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था की भी स्थिति दयनीय है.

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक भले ही यूपी में भाजपा शहरों के लिए सर्वांगीण विकास, सफाई, शौचालय और फ्री वाई-फाई जैसे वादों के साथ संकल्प पत्र लेकर आई हो लेकिन सारा विमर्श हिंदुत्व, मंदिर और गायों के इर्द-गिर्द स्थित है.

जानकार यूपी में इस तरह के विमर्श का संबंध आगामी हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनावों से जोड़कर देखते हैं. योगी दोनों ही राज्यों में स्टार प्रचारक हैं.

इस तरह के बदलावों ने भाजपा के विरोधियों को सतर्क कर दिया है. सामाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर अयोध्या मुद्दे को उछालकर लचर कानून व्यवस्था और विकास कार्यों से ध्यान भटकाने का आरोप लगाया है. इस तरह के आरोपों को भाजपा ने खारिज करते हुए कहा है कि ऐसे आरोप विपक्ष के हताश होने का संकेत हैं.

महज डेढ़ साल दूर लोकसभा चुनावों के करीब आते ही इस तरह के भावनात्मक मुद्दों को यूपी में और महत्व दिए जाने की आशंका है. ध्यान रहे कि संसद की 548 सीटों में से 80 सीट यूपी की हैं.

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