#MeToo : कुछ काली यादों से सामना

पूरी दुनिया में #MeToo हैशटैग के जरिए महिलाओं का यौन शोषण के खिलाफ सामने आना सूचना तकनीक की चमत्कारिक और चमकदार पक्ष है.

WrittenBy:पूजा सिंह
Date:
Article image

वो एक अजनबी था

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

वह काली याद जेहन से कभी नहीं मिटी. तब मैं शायद 4 या 5 साल की थी. हम ट्रेन से गांव जा रहे थे. एक लंबा-चौड़ा, गोरा-चिट्टा आदमी पापा से दोस्ती बढ़ा रहा था. मैंने पापा से कहा कि मुझे खिड़की के पास बैठना है. वह आदमी खिड़की वाली सीट पर था. उसने तत्काल मुझे बुलाकर गोद में बिठा लिया. मैं चली गयी, पापा ने भी जाने दिया. उसने थोड़ी देर इधर-उधर करने के बाद मेरी स्कर्ट में हाथ डाला. कभी कमर तो कभी कमर के नीचे. मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन कुछ तो था जो अजीब लग रहा था. अचानक उसने मेरी चड्डी में हाथ डाल दिया. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं? मेरा सारा अस्तित्व मानों चड्डी के अंदर था. अचानक मैं उठी, मैंने पापा से कहा कि मुझे बहुत जोर से पेशाब लगी है. उसके बाद मैं उस आदमी के पास दोबारा नहीं गई.

मेरी बेस्ट दोस्त के पापा

मैं चौथी में थी. यही 9 या 10 साल की उम्र. वैसे तो हम स्कूल बस से जाते थे लेकिन कभी-कभी बस नहीं आती तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त जो पास ही रहती थी, उसके पापा हमें अपने स्कूटर पर स्कूल छोड़ आते. उसके पापा ने मुझे स्कूटर पर अपने आगे खड़ा किया और अपनी बेटी को पीछे बिठाया. हालांकि मैं आगे खड़ी होने के लिहाज से लंबी थी फिर भी…. वह पूरा टाइम मेरे शरीर को अजीब तरीके से छूते रहे और स्कूटर की सीट पर बैठे-बैठे मुझे धक्के मारते रहे. मैं कुछ नहीं कह पाई लेकिन उसके बाद मैंने किसी के साथ स्कूटर पर बैठना बंद कर दिया.

घोड़ेवाले भइया

मैं आठवीं में थी. हम हैदराबाद में कैंट में रहते थे. वहां 25 दिसंबर को बहुत बड़ा आयोजन होता था. हाथी-घोड़ा-ऊंट सब आते वहां. हम साल भर प्रतीक्षा करते इस मेले की. उस दिन मेरी घोड़े पर बैठने की इच्छा हुई. मैंने टी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी थी. मैं उसे जानती थी, भइया कहती थी. उस घोड़े वाले ने मुझे उठाकर घोड़े पर बिठाया और इस दौरान मेरा एक ब्रेस्ट जोर से दबा दिया. मैं चिहुंक गई लेकिन मुझे लगा शायद गलती से हुआ होगा. उतरते वक्त मैंने कहा कि वह घोड़े को बिठा दे मैं खुद उतर जाऊंगी लेकिन वह नहीं माना. उसने फिर अपनी हरकत दोहराई. मुझे बहुत बुरा लगा. मुझे लगा कि आजकल कि हीरोइनें इतने छोटे कपड़े पहनती हैं कि सबको लड़कियों के ब्रेस्ट ही नजर आते हैं. मैं हीरोइनों को बुरा भला कहती घर चली आयी. मेरा मेला खराब हो चुका था.

जब तक मैंने प्रतिरोध करना सीखा, ऐसे न जाने कितने ही मेले खराब हो चुके थे. मेरी जैसी आम भारतीय लड़कियों की यही नियति है. कुछ सोने-समझने की शक्ति आने से पहले ही हमारे दिमागों पर यौन शोषण का भारी बोझ लद चुका होता है. भारतीय समाज में इस बोझ से निकलने की कोई सूरत तय नहीं है, जीवन भर लादे रह जाना ही इसका हल है. लिहाजा मुझे भी कभी किसी ने नहीं बताया कि ऐसे अवसरों पर क्या करना चाहिए? शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि 5 साल की बच्ची के साथ ऐसा हो सकता है? लेकिन सवाल यह है कि क्यों नहीं सोचा? क्या हमारी मांओं, बहनों, चाचियों और बुआओं का जीवन इतना खूबसूरत था, उनके पास ऐसी कोई बुरी स्मृति थी ही नहीं कि वे हमें आगाह करतीं. पता नहीं!

मैं भी आज से पहले इस बारे में कहां किसी से बात कर पाई, हां अपने परिवार की छोटी बच्चियों को लेकर उनकी मांओं को सचेत अवश्य करती रही और बदलते में उनके प्रश्नवाचक और अजीब चेहरों का सामना करती रही.

अगर आप हाल फिलहाल में ट्विटर या फेसबुक पर गए होंगे तो आपको उपरोक्त बातों का संदर्भ समझ में आ गया होगा. ट्विटर पर पूरी दुनिया में एक खास ‘हैशटैग’ ‘मीटू’ यानी मैं भी छाया हुआ है. इसकी शुरुआत 15 अक्टूबर को हुई जब हॉलीवुड के जानेमाने निर्माता हार्वे वाइंस्टाइन के खिलाफ एक के बाद एक सामने आ रहे यौन शोषण के आरोपों के बीच अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने ट्विटर पर लिखा, ‘अगर यौन शोषण या यौन हमले की पीड़ित सभी स्त्रियां अपना स्टेटस #MeToo के साथ लिखें तो शायद लोगों को अंदाजा लग पाए कि यह समस्या कितनी गंभीर है.’ उन्होंने लोगों से इसके जवाब में मीटू हैशटैग के साथ अपने अनुभव शेयर करने को कहा.

दुनिया भर में ट्विटर और फेसबुक पर ऐसे स्टेटस की बाढ़ आ गयी जहां महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन दुर्व्यवहार के खौफनाक ब्यौरे सार्वजनिक किए. चौबीस घंटों के भीतर यह ट्विटर पर 5 लाख बार शेयर किया जा चुका था और 1.2 करोड़ से अधिक महिलाओं ने इस हैशटैग के साथ अपने डरावने अनुभव साझा किए. एक ऐसा जिन्न बोतल से बाहर आया जिसके बारे में जानते तो सब हैं लेकिन बात करना बहुत कम लोग मुनासिब समझते हैं.

हॉलीवुड में जहां तमाम नामचीन अभिनेत्रियों ने अपने यौन शोषण के खौफनाक खुलासे किए, वहीं बॉलीवुड में चंद नामों को छोड़कर अधिकांश अभिनेत्रियों ने इस मसले पर एक सोची-समझी चुप्पी ओढ़े रखी.

बहरहाल, इन ब्यौरों को पढ़कर मन में एक हैरानी भरा सवाल उठता है. क्या दुनिया में ऐसी भी कोई स्त्री, कोई युवती होगी जिसके साथ जीवन के किसी न किसी मोड़ पर यौन दुर्व्यवहार नहीं किया गया हो? जिसे सार्वजनिक जीवन में कदम-कदम पर अनचाही छुअन, शरीर पर जबरन घुसपैठ की कोशिशों का सामना न करना पड़ा हो, क्या इस त्रासदी को अपनी नियति मान लेना कम बड़ी त्रासदी होगी?

गैलप के एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के मुताबिक दुनिया भर में सड़क पर असुरक्षा के मामले में महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी पीड़ित हैं. ध्यान रहे ये आंकड़े सड़क से जुड़े हैं और वह भी सामान्य दुर्व्यवहार के. जबकि अध्ययन बताते हैं कि यौन शोषण की ज्यादातर घटनाएं घरों में और परिचितों द्वारा अंजाम दी जाती हैं.

सोशल मीडिया और तकनीक की यह खासियत है कि उसने दुनिया भर की महिलाओं को वह बात कहने की आजादी दी जिसे अन्यथा वे शायद ही शेयर कर पातीं. यह तकनीक की ताकत है लेकिन इसकी अपनी सीमा भी है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर की गई इन बातों का कोई जमीनी असर शायद ही देखने को मिलता हो.

क्या वाकई हमें महिलाओं पर हर रोज हो रहे अत्याचारों, उनके यौन शोषण के लिए किसी ट्विटर ट्रेंड या सोशल मीडिया ट्रेंड की जरूरत है? क्या हमारे समाज में कोई भी, यानी हमारे मां-बाप, भाई-रिश्तेदार, शिक्षक-प्रोफेसर, इनमें से कोई भी है जिसे इस सड़न के बारे में जानने के लिए इस हैशटैग की मुहर चाहिए? जिस चीज़ को यौन शोषण कहा जाता है उसकी शिकार ज्यादातर लड़कियां उस उम्र में होती हैं जब उनको लड़की होने का मतलब भी पता नहीं होता. तो वो कौन लोग हैं जिनको इस समस्या के बारे में बताने के लिए मीटू कैंपेन चला? जाहिर है यह पुरुषों को ही लक्षित था.

इस तरह के मामलों में कुछ बेहद नपे-तुले, पहले से तय जुमले मसलन हमने तो ऐसा कभी नहीं देखा, तुमने पहले क्यों नहीं बताया या तुमने ही उकसाया होगा जैसी बातें सुनने क मिलती हैं. अगर शिकायतकर्ता नामचीन है तो तर्क के शब्द बदलकर तुम सुर्खियां बटोरने के लिए ऐसा कर रही हो, जैसी विक्टिम शेमिंग का रूप धर लेती हैं और फिर अगले चरण में पीड़िता का ही चरित्र सार्वजनिक विवेचना का साधन बन जाता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2015 में देश भर में बलात्कार के करीब 35,000 मामले सामने आए. यौन हमलों के 1.3 लाख मामले रिपोर्ट किए गए. ये तो बात हुई जिन मामलों की रिपोर्ट हुई. जरा कल्पना की कीजिए उन मामलों की तादाद कितनी होगी जो सामने ही नहीं आए. इस दृष्टि से देखें तो मीटू कैंपेन साहसिक है. इसमें क्षमता है एक अनकहे सच को उघाड़कर, उसकी बदसूरती में, पूरी नग्नता के साथ सबके सामने ला देने की.

पुरुष भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. मीटू कैंपेन के जवाब में ‘आई डिड दैट’ जैसे अभियान भी सोशल मीडिया पर चल रहे हैं. जहां पुरुष उन घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं जिसमें उन्होंने जीवन के किसी मोड़ पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया. तमाम लोगों ने माना कि जो उनके लिए लड़कपन की मामूली छेड़छाड़ थी वह कैसे एक लड़की के लिए जीवन भर का अभिशाप बन गई. सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति ने सही लिखा कि हर ‘मीटू’ के साथ एक ‘आई डिड दैट’ जुड़ा हुआ है. जिसे कभी अलग नहीं किया जा सकता है.

इसका एक और पहलू भी है. खासतौर पर भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट की तमाम पहुंच के बावजूद एक बड़ी आबादी की प्राथमिकताएं दूसरी हैं. देश के एक आदिवासी राज्य में जहां एक छोटी बच्ची केवल इसलिए मर जाती है क्योंकि उसे कई दिनों से खाना नहीं मिला था वहां सोशल मीडिया के ‘मीटू’ जैसे अभियान किस तबके को संबोधित करते हैं और वे किस हद तक अपनी छाप छोड़ पाएंगे? डर है ये पानी के बुलबुले जैसे न साबित हों.

अपराधी का प्रायश्चित और उसका अपराधबोध किसी अपराध की रोकथाम या उसकी पुनरावृत्ति रोकने में शायद ज्यादा मददगार साबित हों. उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘मीटू’ के जवाब में आने वाले ‘आई डिड दैट’ और ‘इट वाज मी’ जैसे हैशटैग कहीं ज्यादा तादाद में और ज्यादा प्रभावशाली होकर सामने आएं.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like