गुप्त गुरुत्वीय तरंगें जिनके लिए मिला है भौतिकी नोबेल पुरस्कार

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार एमआईटी के प्रोफेसर रेनर वीस, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर किप थोर्न और बैरी बेरिश को सम्मिलित रूप से दिया गया है.

WrittenBy:दीपांकर पटेल
Date:
Article image

इस वर्ष का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार किसी दुनिया बदलने वाले आविष्कार के लिए नहीं बल्कि दुनिया और ब्रम्हांड को समझने में मदद करने वाली एक खोज को मिला है और ये खोज है गुरुत्वीय तरंगें.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

हांलाकि सन 1916 में ही अल्बर्ट आइंस्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत के आधार पर गुरुत्वीय तरंगों के होने का अनुमान लगाया था, लेकिन जब 100 साल बाद सन 2016 में ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण मिला तो इसे शताब्दी की सबसे बड़ी खोज माना गया और कहा गया कि इससे ब्रह्मांड के कई अनसुलझे रहस्यों को समझने में मदद मिलेगी. ब्लैक होल की गुत्थी सुलझने से ब्रह्मांड को हम और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे. दरअसल ब्लैक होल से प्रकाश तो बाहर नहीं आ सकता जबकी गुरुत्वीय तरंगें बाहर आ जाती हैं इसलिए गुरुत्वीय तरंगों की खोज इतनी उत्साहित करने वाली है.

imageby :

ब्लैक होल (Credit: NASA/CXC/M. Weiss)

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार एमआईटी के प्रोफेसर रेनर वीस, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर किप थोर्न और बैरी बेरिश को सम्मलित रूप से दिया गया है. इन तीनों वैज्ञानिकों को ये पुरस्कार गुरुत्वीय तरंगों की पहचान करने वाले एलआईजीओ यानी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी डिटेक्टर के निर्माण में निर्णायक योगदान के लिए और गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अवलोकन में मदद करने के लिए दिया गया है. ये तीनों ही वैज्ञानिक खगोलशास्त्र के क्षेत्र में दशकों से बड़ा नाम रहे हैं.

imageby :

तीनों वैज्ञानिकों का फोटो कोलाज (Credit – twitter , the Nobel prize )

तीनों वैज्ञानिकों के बारे में कुछ बातें आपको जरूर जाननी चाहिए. 85 वर्षीय एमआईटी के रिटायर प्रोफेसर रेनर वीस का जन्म जर्मनी में हुआ था. उनके पिता एक यहूदी थे और जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा यहूदियों पर किये गए बर्बर अत्याचार के दौरान उनके परिवार को अमेरिका में शरण लेनी पड़ी. युवा रेनर का बचपन न्यूयॉर्क में गुजरा, उन्होंने एमआआईटी से ही पीएचडी की और सन 1964 में वो एमआईटी में ही पढ़ाने लगे.

पुरस्कार के दूसरे हक़दार बने किप थॉर्न 1940 में अमेरिका में जन्में. उनके पिता अर्थशास्त्री थे और एलडीएस चर्च के समर्पित कार्यकर्ता थे. घर में काफी धार्मिक माहौल था लेकिन किप ने खुद को धार्मिक विचारों से अलग कर लिया और नास्तिक बन गए. किप थोर्न कहते हैं, “मेरे बहुत से सहयोगी वैज्ञानिक हैं जो बेहद धार्मिक हैं और भगवान में विश्वास करते हैं लेकिन विज्ञान और धर्म के बीच कोई बुनियादी तालमेल नहीं है और मुझे भगवान पर विश्वास नहीं करना है.”

उन्होंने 1965 में प्रिन्स्टन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सबसे कम उम्र के प्रोफेसर बने. वो मशहूर साइंस फिक्शन फिल्म ‘इंटरस्टेलर’ के वैज्ञानिक सलाहकार और एग्जीक्यूटिव-प्रोडूसर भी थे. इंटरस्टेलर फिल्म की थ्योरेटिकल फिजिक्स एक्यूरेसी के पीछे किप थोर्न का ही दिमाग है.

तीसरे विजेता बैरी बेरिश ने 1962 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया से हाई एनर्जी फिजिक्स में अपनी पीएचडी की और उसके बाद कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में बतौर रिसर्चर जुड़े जहां बाद में वो प्रोफ़ेसर बन गए. 81 वर्ष के बेरिश का जन्म तो अमेरिका में ही हुआ था और इनके पिता भी अमेरिका में एक यहूदी शरणार्थी थे जो पोलैंड से अमेरिका पहुंचे थे. बेरिश पिछले पच्चीस सालों से एलआईजीओ की परियोजना पर काम कर रहे हैं. ये सीईआरएन की लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर परियोजना में भी सीनियर साइंटिस्ट रह चुके हैं.

एलआईजीओ के निर्माण में बुनियादी मदद प्रोफेसर रॉन ड्रेवर ने भी की थी जिनकी इसी साल मौत हो गई. पुरस्कार की कुल राशि 90 लाख स्वीडिश क्रोन (करीब 7.20 करोड़ रुपये) में से आधी राशि जर्मनी में पैदा हुए रेनर वीस को मिलेगी जबकि आधा इनाम थोर्न और बेरिश साझा करेंगे.

क्या आप सदी की सबसे बड़ी खोज और दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चकित कर देने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों के बारे में जानना नहीं चाहेंगे?

लेकिन इससे पहले की आप गुरुत्वीय तरंगों को समझें आपको ब्रह्मांड की संरचना को समझना होगा.

imageby :

आइंस्टाइन स्पेस टाइम शीट ( Credit: ESA–C.Carreau)

आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत और गणितीय सिद्धांतों की सर्वमान्य अवधारणा के अनुसार ब्रम्हांड को स्पेस और टाइम की बहुत विशाल रबर की शीट (चादर) की तरह माना जाता है जिस पर तमाम ग्रह-नक्षत्र, तारे और आकाशगंगाएं अपने-अपने द्रव्यमानों के साथ व्यवस्थित हैं और जहां-जहां ये ग्रह-नक्षत्र, तारे अपने द्रव्यमान के साथ शीट पर स्थित होते हैं वहां-वहां वो शीट दबकर वक्राकार हो जाती है. तो जिस चीज का द्रव्यमान जितना ज्यादा होगा वो अपनी जगह की उस रबर शीट यानी स्पेस को उतना वक्राकार बना देगा.

क्या है ग्रेविटेशनल वेव ?

अब आपने नदी में नाव को चलते तो देखा ही होगा? दरअसल जब नाव तेज गति से नदी में चलती है तो अपने पीछे लहरें पैदा करते हुए चलती है. वैसे ही जब कोई पिंड तेज त्वरण के साथ ब्रह्मांड में चलता है तो वो उस स्पेस टाइम की शीट पर लहरें पैदा कर देता है, इन लहरों को ही ग्रेविटेशनल वेव कहा जाता है.

imageby :

ग्रेविटेशनल वेव ( Credit – Twitter , the Nobel prize )

भौतिकी के नियमों के अनुसार हर ऐसी वस्तु जो त्वरित हो रही हो, गुरुत्वीय तरंग पैदा करती है. किन्तु कम द्रव्यमान एवं कम त्वरण वाली वस्तुओं से उत्पन्न ग्रेविटेशनल वेव का आयाम इतना कम होता है कि उन्हें इतने विशालकाय ब्रह्मांड में डिटेक्ट कर पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने से भी कठिन है.

तो फिर ग्रेविटेशनल वेव को डिटेक्ट कैसे किया गया? दरअसल तारों में विस्फोट से या ब्लैक होल्स के बीच टकराव के समय पैदा होने वाली गुरुत्वीय तरंगें इतनी प्रबल होतीं हैं कि उन्हें करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर स्थित पृथ्वी पर एम्पलीफाई करके डिटेक्ट किया जा सकता है.

इन्हीं ग्रेविटेशनल वेव्स को डिटेक्ट करने के लिए जो मशीन बनायी गयी उसे एलआईजीओ यानी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी कहा गया. एलआईजीओ तरंग भौतिकी के इन्टरफेरेंस सिद्धांत पर काम करता है.

imageby :

LIGO (एलआईजीओ)(Credit – Twitter, Nobel prize )

एलआईजीओ के निर्माण और गुरुत्वीय तरंगों की खोज के लिए दुनिया भर के करीब 1000 वैज्ञानिकों ने काम किया लेकिन सिर्फ तीन लोगों रेनर वीस,थोर्न और बैरिश को ही ये पुरस्कार इसलिए मिला क्योंकि इन तीनो लोगों ने एलआईजीओ की निर्माण के आधारभूत सिद्धांत दिए, अगर ये तीनों न होते तो शायद एलआईजीओ भी न होता. यह भारत के लिए भी गर्व करने की बात है, क्योंकि इससे जुड़े डिस्कवरी पेपर में नौ भारतीय संस्थानों के 39 भारतीय लेखकों/वैज्ञानिकों के नामों का भी उल्लेख किया गया है. इन नौ संस्थानों में सीएमआई चेन्नई, आईसीटीएस-टीआईएफआर बेंगलुरु, आईआईएसईआर-कोलकाता, आईआईएसईआर-त्रिवेंद्रम, आईआईटी गांधीनगर, आईपीआर गांधीनगर, आईयूसीएए पुणे, आरआरसीएटी इंदौर और टीआईएफआर मुंबई शामिल हैं. इन 39 भारतीय वैज्ञानिकों को इस खोज पत्र के सह-लेखक का भी दर्जा मिला हैं.

इसके आलावा एलआईजीओ की ही तरह भारत में भी एक ऑब्जर्वेटरी के निर्माण का कार्य प्रगति पर है जो साल 2024 से अमरीका की ऑब्जर्वेटरीज के साथ मिल कर कार्य करेगी.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like