यमुना की मौत और यमुना में मौत

भारत की सबसे ज़्यादा प्रदूषित नदी होने के बावजूद यमुना आज भी मछुआरों की, जिनकी रोजी-रोटी जलीय जीवन पर निर्भर है, जीवन-रेखा बनी हुई है.

WrittenBy:ईशान कुकरेती
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गोविन्दर सिंह के पिता महेन्द्र सिंह विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर उत्तर-पश्चिम दिल्ली के जगनोला गांव में बस गए थे. पाकिस्तान में वे बहेलिया (शिकारी) के पेशे से जुड़े थे. लेकिन जब वो दिल्ली आए तो, यमुना-तट पर मछुआरे का काम करने लगे.

दशकों तक उन्होंने इस पेशे पर अपना एकाधिकार बनाए रखा. उत्तर पश्चिम दिल्ली के पल्ला गांव से लेकर मध्य दिल्ली के आईटीओ तक के बीच यमुना के कीचड़ भरे पानी में मछलियां पकड़ने में इनको महारत हासिल थी. मछलियों के शिकार पर एकाधिकार की वजह उनका कोई असाधारण व्यवसायी होना नहीं था, बल्कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नदी में मछलियां लगातार कम होती जा रही थीं.

वजीराबाद बैराज के आस-पास भी ऐसे ही हालात हैं. मछुआरे यहां पूरे दिन बिना किसी उम्मीद के बार-बार अपना जाल यमुना में  डालते हैं और फिर बाहर निकालते हैं और उसमें एक भी मछली नहीं होती.

फिर भी, गोविन्दर और वजीराबाद के अन्य मछुआरे, चाय के रंग वाले गंदले पानी में हर दिन मछली पकड़ने जाते हैं. यह नदी हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है, लेकिन ग्लेशियरों का ये साफ-निर्मल पानी, पूर्वी दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते, देश की सबसे गंदगी भरी नदी का रूप ले लेती है. जब ये पानी शहर में दाखिल होता है, तो इसकी मात्रा और भी कम हो जाता है, क्योंकि यमुना नदी के पानी का कुछ हिस्सा खेतों की सिंचाई और राजधानी की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए निकाल लिया जाता है. आगे जाकर इस सिकुड़ी हुई यमुना में सीवेज, औद्यौगिक कचरा और कूड़ा बिना रोकटोक मिलता जाता है. मछुवारों की उम्मीद जिस यमुना पर टिकी हैं वो एक जहरीला कॉकटेल बन जाती है.

अपने पिता के धन्धे को चला रहे गोविन्दर के यहां अब सिर्फ पांच मछुवारे काम करते हैं. एक समय उनके यहां 60 लोग काम करते थे.

‘‘यमुना के शहरी हिस्से में कहीं भी जलीय वनस्पति या जलीय जंतुओं की प्रजातियां शेष नहीं बची हैं. जलीय जीवन को संतुलित बनाए रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ये पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं,” ये कहना है पर्यावरणविद और रिटायर प्रोफेसर सीआर बाबू का. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश  के गैर-शहरी इलाकों में यमुना अपने समृद्ध जलीय-जीवन पर गर्व कर सकती है क्योंकि यहां आज भी कई प्रजातियों की मछलियां, मगरमच्छ और कछुए देखे जा सकते हैं.

मानसून के दौरान जब बरसात का पानी प्रदूषक तत्वों को बहा ले जाता है तब कुछ समय के लिए यमुना को नया जीवन मिल जाता है. वरना बाकी पूरे यमुना में मछलियों से ज्यादा मछली पकड़ने वाली नावें दिखाई देती हैं.

आप लेखक से ट्विटर पर सपंर्क कर सकते हैं @ikukreti.

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