लैंडफिल से रिसता ज़हरीला कचरा, तबाह होता अरावली का जंगल और सरकार की खामोशी

सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण करने पर साफ दिखता है कि बीते 15 सालों में इस जगह का कैसे विस्तार हुआ है. कैसे यह जगह एक कचरे के प्रोसेसिंग प्लांट से कचरे के पहाड़ तक पहुंची है. 

WrittenBy:समर्थ ग्रोवर
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जहां एक तरफ अरावली पर्वतमाला को लेकर हाल के दिनों में विरोध देखने को मिल रहा है. वहीं, दूसरी तरफ अरावली की पहाड़ियों के बीच एक और संकट गहराता जा रहा है. ये संकट धीरे-धीरे अरावली के जंगल को अपना निशाना बना रहा है. बंधवाड़ी लैंडफिल, गुरुग्राम और फरीदाबाद के बीच स्थित यह जगह एक कूड़े के पहाड़ में  बदलती जा रही है. 

वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में हुई कई सुनवाइयों और उसके निर्देशों के बावजूद भी इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है. जिसका सीधा असर अरावली के जंगलों पर पड़ रहा है. इससे सिर्फ जमीन पर ही कब्जा नहीं बढ़ रहा बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंच रहा है. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने साल 2010 से अब तक की सैटेलाइट तस्वीरों को देखा. विश्लेषण से पता चलता है कि यह लैंडफिल अवैध रूप से विस्तार ले रहा है. हमारी पड़ताल में सामने आया है कि यह कूड़ा कम से कम 5 एकड़ वन भूमि में फैल चुका है, जबकि हरियाणा सरकार ने 2010 में इसे केवल 28.9 एकड़ जमीन ही आवंटित की थी. पहले इस जमीन पर एक खदान हुआ करती थी. 

लीचेट यानी ज़हरीले तरल कचरे के जंगल और भूजल में रिसने के आरोपों की पड़ताल के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम डंपिंग ज़ोन पहुंची. यहां हमें एक बड़ा तालाब मिला, जिसका पानी पूरी तरह काला पड़ चुका था. इस तालाब में लैंडफिल से निकलने वाला लीचेट बिना किसी रोक-टोक के बहता पाया गया.

सड़ चुकी वनस्पतियां और उनके पलते गिद्ध इस बात के गवाह हैं कि यह डंपिंग ज़ोन अब पर्यावरण के लिए नुकसान दायक हो चला है. हमारी पड़ताल के मुताबिक, नगर निगम गुरुग्राम और हरियाणा सरकार इस संकट से निपटने में पूरी तरह विफल रही हैं.

साल 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बंधवाड़ी लैंडफिल पर कार्रवाई न करने और कचरा प्रबंधन नियमों के उल्लंघन के लिए हरियाणा सरकार पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. यह राशि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा कर दी गई, लेकिन बोर्ड के एक अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यह पैसा अब तक इस्तेमाल ही नहीं किया गया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने नगर निगम गुरुग्राम के कई वरिष्ठ अधिकारियों से फ़ोन और ईमेल के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की. जिनमें आयुक्त प्रदीप दहिया भी शामिल हैं. खबर लिखे जाने तक किसी भी अधिकारी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है. अगर किसी की तरफ से कोई भी जवाब आता है तो उसे इस ख़बर में जरूर शामिल कर लिया जाएगा. 

देखिए.

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