अंधेरे से उजाले तक: तानों को अनसुना कर वर्ल्ड कप जीतने वाली 'चैंपियंस' की कहानी

हिम्मत, लगन और लगातार मेहनत ने इन खिलाड़ियों की ज़िंदगी बदल दी है.

WrittenBy:आकांख्या राउत
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महिलाओं का ब्लाइंड टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप सिर्फ एक मैच नहीं उससे कहीं ज़्यादा है. यह उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद का मंच बन गया है, जो मुश्किलों  से लड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं. कई खिलाड़ी गांवों से आती हैं. जहां सुविधाएं कम हैं, लेकिन हौसला और मेहनत भरपूर है.

परिवार के सहारे और अपनी लगन के दम पर, इन महिलाओं ने साबित कर दिया कि नज़र की कमी कभी सपनों को रोक नहीं सकती. ताने और मुश्किलें, सबको पीछे छोड़कर ये खिलाड़ी आज आत्मविश्वास की मिसाल बन चुकी हैं.

इस टी-20 वर्ल्ड कप में भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका कुल छह देशों ने हिस्सा लिया. इसकी शुरुआत 11 नवंबर को दिल्ली से हुई, फिर मैच बेंगलुरु में खेले गए और फाइनल श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में आयोजित हुआ.

भारत की 16 सदस्यीय टीम नौ राज्यों से आती है. जिसमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली, असम और बिहार शामिल है. ओडिशा के बालासोर से फूला सोरेन और मयूरभंज से पार्वती मरांडी, जमुना रानी तुडू और बसंती हांसद भी इसी टीम का हिस्सा हैं.  

फूला सोरेन कहती हैं, “मैंने घुमाके जोर से शॉट मारा, मुझे पता नहीं कब बॉल बाउंड्री के बाहर चला गया. सब लोग बहुत खुश हुए. ये हम सबका सपना था.” 

वहीं, बसंती हांसदा कहती हैं, “हमें एक आंख से दिखाई नहीं देता, लोग हमें बोलते हैं कि लड़कियां कुछ नहीं कर सकती हैं. लेकिन हम ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देते. अगर सुनेंगे तो पीछे रह जाएंगे.”

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