बिहार चुनाव: चुनावी भाषणों और विज्ञापनों में आगे बढ़ता बिहार, लेकिन इन लड़कियों की कौन सुनेगा? 

सरकारी दावों से अलग बिहार के गांवों और महिलाओं की दशा बताती ग्राउंड रिपोर्ट. 

WrittenBy:बसंत कुमार
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बिहार की राजधानी पटना में एनडीए के प्रमुख घटक दलों, बीजेपी और जद(यू)  के दफ्तरों के बाहर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हैं. जिसमें बताया गया है कि एनडीए सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कितना कुछ किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक, अपनी रैलियों में ये कहते नहीं थकते कि बिहार की महिलाओं के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव उनकी सरकार ने ही लाई है.

लेकिन पटना से करीब 250 किलोमीटर दूर, बांका ज़िले के गांवों में तस्वीर कुछ और ही है. यहां की लड़कियां और महिलाओं की हकीकत उन सरकारी दावों से कोसों दूर हैं, जिनकी तस्वीर राजधानी की दीवारों पर चिपकी है.

बांका के कुशाहा गांव की सिंधु कुमारी मिट्टी के घर में रहती हैं. उनके घर में शौचालय नहीं है, न ही नल-जल योजना का पानी पहुंच पाया है.

इन सबके बावजूद सिंधु सबसे ज़्यादा परेशान अपनी पढ़ाई को लेकर हैं. उनके घर से कॉलेज करीब 15 किलोमीटर दूर है. असुरक्षा के कारण वो अकेले कॉलेज नहीं जा पातीं. कभी भाई साथ जाता है तो कभी मां या पिता.

अपनी धीमी लेकिन सधी ही आवाज़ में सिंधु कहती हैं, ‘‘पास में कॉलेज होता तो रोज जाते. घर पर पढ़ाई हो नहीं पाती है. पढ़ने बैठो तब तक घरवाले कोई न कोई काम बता देते हैं. लड़कियों के जिम्मे तो सारे घर के काम होते ही हैं.”

सिंधु का सपना एसडीएम बनने का है, लेकिन सुविधाओं की कमी उस सपने को धीरे-धीरे धुंधला कर रही है.

कुशाहा से कुछ ही दूर, बांका के ही ढकवा गांव की स्थिति और भी खराब है. यह दलित बाहुल्य इलाका है. यहां की महिलाओं को आज भी नहाने और कपड़े धोने के लिए पास के तालाब या नदी किनारे जाना पड़ता है. हमारे सामने ही महिलाएं हाथ में कपड़े लिए जंगल की तरफ जाती नजर आई.

यहां भी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है. महिलाएं शौच के लिए पास के जंगल में जाती हैं. यहां रहने वाली गंगोत्री कुमारी बताती हैं, “कॉलेज बहुत दूर है, इसलिए स्नातक की पढ़ाई नहीं कर रही हूं. घर वाले लड़कियों को बाहर भेजते भी नहीं है ना. अब बस जनरल एग्ज़ाम की तैयारी कर रही हूं. मेरा सपना शिक्षक बनने का है ताकि समाज को बेहतर शिक्षा दे सकूं.”

प्रधानमंत्री मोदी, अक्टूबर 2019 में ही देश को खुले में शौच से मुक्त का दावा कर चुके है. लेकिन हकीकत आपके सामने है.

ये लड़कियां क्या मांग रही हैं? पास में कॉलेज, गांव में लाइब्रेरी और शौचालय. साल 2025 खत्म होने को है लेकिन सरकार इन मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं कर पाई है. लोगों के पास घर नहीं हैं. जबकि भारत सरकार का दावा था कि 2022 तक बेघरों को घर मिल जाएगा. नल जल का पानी इनके यहां नहीं पहुंच पाया है. जबकि ये नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से ये एक है. 

तमाम पार्टियों की नजर महिला वोटरों पर है. चुनावों से पहले उनके खातों में पैसे डाल दिए जाते हैं, चुनाव के बीचों‑बीच पैसे डाले जा रहे है. लेकिन जब स्कूल और कॉलेज ही नहीं हैं, तो लड़कियां पढ़ाई में सही तरीके से आगे नहीं बढ़ पातीं. वो घर से अकेले बाहर नहीं जा पाती है. नहाने और कपडे़ धोने के लिए भी नदी या तालाब के किनारे जाना पड़ता है. यह साल 2025 की बात है. जब भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यस्था बनने जा रहा है.

देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट. 

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