पटना के ऑटो-चालक: सड़कें तो चमकीं पर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर छाया अंधेरा

बिहार विधानसभा चुनावों के बीच हमने पटना शहर के ऑटो-रिक्शा चालकों की परेशानी और चुनाव में बदलाव पर उनकी राय जानी.

WrittenBy:बसंत कुमार
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अगर आप पटना में रहते हैं या यहां आते हैं, तो ऑटो और ई-रिक्शा आपकी रोज़ की सवारी का हिस्सा होंगे. लेकिन इन्हें चलाने वालों की ज़िंदगी कैसी है, ये बहुत कम लोग जानते हैं. चुनावों के बीच इनका हाल जानने हम पटना के शहीद भगत सिंह चौक पहुंचे. जहां दर्जनों ऑटो खड़े मिले. हालांकि, इनकी गाड़ियों की हालत खराब है, दरवाज़े टूटे हैं, और कई जगह पुलिस से पड़े डंडे के निशान दिखते हैं. ऑटो चालक बताते हैं कि पुलिस रोज़ तंग करती है जबकि उनके लिए न ही कोई ऑटो स्टैंड है और न ही पार्किंग की जगह ही निर्धारित है. 

रिक्शाचालकों ने कहा कि रोजगार और फैक्ट्रियों की कमी वाली समस्या जस की तस बनी हुई है. आखिर सड़कों के जाल बना देने से रोजगार सृजन तो नहीं होता, ना ही मेट्रो बना देने से शिक्षा व्यवस्था में कोई सुधार आया है जबकि सबसे बुनियादी और जरूरी चीजें यही हैं.

रिक्शा चालक ये भी सवाल उठाते हैं कि अगर लालू यादव के राज में फैक्ट्रियां बंद भी हुईं तो उन्हें पिछले 20 साल से सत्तासीन एनडीए की सरकार ने क्यों वापस नहीं खोला. इनकी शिकायत है कि हाशिये पर जा चुके बिहार में ना तो अच्छी शिक्षा बची है और ना ही स्वास्थ्य सेवाएं ठीक से मिल रही हैं. 

ऑटो-चालकों का कहना है कि उनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है, चाहे जन सुराज हो,

चाहे आरजेडी हो, चाहे बीजेपी या कोई और पार्टी या नेता हो लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. साथ ही वह पुलिस के रवैये से भी नाराज दिखते हैं. 

देखिए ये खास रिपोर्ट. 

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