शुरू से जनसुराज के लिए मेहनत करने वालों से ज़्यादा बाहरी उम्मीदवारों पर भरोसा भारी पड़ा और पार्टी पांच सीटों पर चुनाव लड़ने से पहले ही बाहर हो गई.
बिहार में विधानसभा चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को आएंगे, लेकिन पहली बार यहां से चुनाव लड़ रही रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी पांच विधानसभा सीटों पर चुनावी लड़ाई से बाहर हो गई है. ये पांच सीटें दानापुर, ब्रह्मपुर, गोपालगंज, सीतामढ़ी और वाल्मीकिनगर हैं. इन सीटों से या तो उम्मीदवार 'गायब' या नामांकन रद्द या फिर आखिरी वक्त पर ‘सेहत’ और ‘समाज’ का हवाला देकर उम्मीदवार चुनाव लड़ने से हट गए हैं.
दानापुर से जनसुराज ने अखिलेश कुमार उर्फ मुटुर साव को टिकट दिया, जिनकी तस्वीरें बीजेपी नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर हैं. पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि लम्बे समय से मेहनत करने वालों को नजरअंदाज कर बाहरी और बीजेपी से जुड़े लोगों को टिकट दे दिया गया. यही कहानी ब्रह्मपुर में भी दोहराई गई, जहां पूर्व बीजेपी नेता डॉक्टर सत्य प्रकाश तिवारी को टिकट मिला, जिन्होंने बाद में नाम वापस ले लिया. इससे नाराज़ जनसुराज कार्यकर्ताओं ने कहा कि टिकट बंटवारे में पार्टी के अपने सिद्धांतों को ताक पर रख दिया गया.
गोपालगंज में डॉक्टर शशि शेखर सिन्हा ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए नाम वापस लिया, लेकिन स्थानीय नेताओं का आरोप है कि असल वजह बीजेपी का दबाव था. सीतामढ़ी के उम्मीदवार ज़ियाउद्दीन खान ने “समाज के दबाव” का हवाला देते हुए खुद को रेस से बाहर कर लिया, जबकि वाल्मीकिनगर में दृग नारायण प्रसाद का नामांकन तकनीकी कारणों से रद्द हुआ.
प्रशांत किशोर ने इन घटनाओं के लिए बीजेपी और गृह मंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहराया है, जबकि स्थानीय कार्यकर्ताओं का मानना है कि जनसुराज ने अपने ही मेहनतकश नेताओं को दरकिनार कर गलत रणनीति अपनाई. यह पूरा घटनाक्रम न सिर्फ जनसुराज की संगठनात्मक कमज़ोरी को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण और दबाव आज भी निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं.
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