कुछ फैक्टरी मालिकों ने बताया कि अब उनको अमेरिकन खरीदारों से नए ऑर्डर्स नहीं मिल रहे हैं. वहीं, पहले लिए जा ऑर्डर्स पर 20 से 25% तक का डिस्काउंट देना पड़ रहा है.
बीते 27 अगस्त से भारत से अमेरिका जाने वाले सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ लागू हो गया है. इसका असर भारत के कई क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. कपड़ा, फर्नीचर, झींगा, आभूषण एवं जवाहरात (जेम्स एंड ज्वेलरी) के अलावा कालीन उद्योग पर भी इसका असर दिखने लगा है.
कपड़ा यानि टैक्सटाइल उद्योग में सूरत, तिरुपुर और नोएडा की फैक्टरियों में उत्पादन रुक गया है. नोएडा की बात करें तो यहां करीब साढ़े चार हजार (छोटी-बड़ी) फैक्ट्रियां हैं. इनमें करीब दस लाख लोग काम करते हैं.
कुछ फैक्टरी मालिकों ने बताया कि वो अपना माल अमेरिका निर्यात करते हैं. लेकिन अब उनको अमेरिकन खरीदारों से नए ऑर्डर्स नहीं मिल रहे हैं. वहीं, जो ऑर्डर पहले लिए जा चुके थे, उन पर व्यापारियों को 20 से 25% तक का डिस्काउंट देना पड़ रहा है ताकि टैरिफ का दबाव अमेरिकी व्यापारियों पर कम पड़े. साथ ही खरीदारों के साथ व्यापारिक संबंध बरकरार रहे. वहीं, दूसरी तरफ कुछ फैक्टरी मालिकों ने अपने आधे से ज्यादा कारीगरों को छुट्टी पर भेज दिया है.
इसके साथ ही इंडियन टैक्सटाइल मार्केट के व्यापारियों को एक चिंता यह भी सता रही है कि भारत के प्रतिद्वद्वी देशों जैसे बांग्लादेश, चीन और वियतनाम पर अमेरिका ने ऐसा टैरिफ नहीं लगाया है. ऐसे में आशंका है कि अमेरिकी बाजार में इन देशों की जगह बन सकती है. जिससे भारत के लिए दोबारा से अमेरिकी बाजार में अपनी जगह बनाना मुश्किल हो जाएगा.
नोएडा की टैक्सटाइल फैक्टरियों में उत्पादन ठप होने से सिर्फ यहां काम करने वाले मजदूर प्रभावित नहीं हो रहे हैं बल्कि इसका असर सुदूर यूपी में रायबरेली और कानपुर तक दिख रहा है. दरअसल, नोएडा में तैयार होने वाले कपड़ों पर होने वाली हाथ की कढ़ाई इन्हीं जगहों से होती है. इस तरह देखा जाए तो ट्रंप का टैरिफ भारत में टैक्सटाइल मार्केट के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गया है.
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