हमने पड़ताल की कि कैसे एक व्यवस्थित रणनीति के तहत मुस्लिम समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है.
यह रिपोर्ट हमारे एनएल सेना 'हिंदू राष्ट्र प्रोजेक्ट' का हिस्सा है. इस प्रोजेक्ट के तहत की गईं बाकी रिपोर्ट्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करके एक नया राज्य बनाया गया, तब पहाड़ के लोगों ने धर्म और जाति से परे मिलकर आंदोलन किया था. उस दौर में नारा गूंजता था- "उत्तराखंड के चार सिपाही: हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई". लेकिन आज, 25 साल बाद, उत्तराखंड की वही धरती एक अलग ही पहचान की तरफ धकेली जा रही है. एक ऐसे राज्य के रूप में, जहां सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों को जीने का अधिकार है.
हमारी ये डॉक्यूमेंट्री कई हफ्तों की पड़ताल पर आधारित है जिसमें हमने उत्तराखंड के दूरदराज़ इलाकों का दौरा किया, स्थानीय लोगों, पीड़ितों और संगठनों से बात की, और वह ज़मीनी सच सामने लाने की कोशिश की जिसे अक्सर मुख्यधारा मीडिया नजरअंदाज़ करता है. हमने पड़ताल की कि कैसे एक व्यवस्थित रणनीति के तहत मुस्लिम समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है.
यह रणनीति तीन बड़े प्रोपेगेंडा पर टिकी है, लव जिहाद, लैंड जिहाद और अब नया व्यापार जिहाद. इन नारों के जरिए न केवल मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जाती है, बल्कि उन्हें अपराधी साबित करने की कोशिश की जाती है. उनकी दुकानों को निशाना बनाया जाता है, रोज़गार छीने जाते हैं, और गांव-शहरों से बाहर निकलने पर मजबूर किया जाता है.
हमारी रिपोर्ट में रुद्रप्रयाग, नंदानगर, उत्तरकाशी, नैनीताल, हरिद्वार और देहरादून से चौंकाने वाली कहानियां हैं. यहां मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों पर हमले हुए, मजारों और मस्जिदों पर बुलडोज़र चलाए गए और अल्पसंख्यकों को धमकी दी गई कि वे या तो चले जाएं या 'धर्म के अनुसार' जीना सीखें.
इस अभियान में सिर्फ कुछ उग्र संगठनों की नहीं, बल्कि राज्य मशीनरी, पुलिस प्रशासन और राजनीति की भी भूमिका दिखती है. कई जगह पुलिस की मौजूदगी में ही हिंसा होती है और फिर एफआईआर तक दर्ज नहीं होती और होती है तो कार्रवाई के नाम पर कुछ खास नहीं. हम आपको दिखाएंगे हैं कि कैसे कुछ तथाकथित धर्म रक्षकों के भाषणों में खुलेआम मुस्लिमों के नरसंहार की बातें होती हैं, और उन्हें सत्ता संरक्षण मिलता है.
ये डॉक्यूमेंट्री न केवल एक राज्य की धार्मिक छवि को बदले जाने की कोशिश को उजागर करती है, बल्कि भारत के उस संवैधानिक वादे की भी याद दिलाती है जिसमें हर धर्म, जाति, और समुदाय को समान अधिकार का आश्वासन दिया गया था.
हमारी यह विशेष डॉक्यूमेंट्री, सिर्फ आंखों देखी नहीं, बल्कि ज़मीनी सच्चाई का दस्तावेज़ है. यह एक सवाल भी है कि क्या उत्तराखंड, जो एक समय भाईचारे की मिसाल था, अब सिर्फ 'हिंदू ऑनली लैंड' बनने की ओर बढ़ रहा है?