अदालती आदेश, कट-ऑफ की तारीखें और अधूरे वादों के चलते राष्ट्रीय राजधानी में विकास के नाम पर हजारों लोग अपने घर खो रहे हैं.
दिल्ली में रहने वाली 45 वर्षीय घरेलू कामगार सुलेखा पासवान ने कहा, "अब मुझे मेरे बच्चों के खाने और मैं कहां रहूंगी इसकी चिंता है."
इस महीने की शुरुआत में कालका जी के भूमिहीन कैंप में अपने घर को तोड़ दिए जाने के बाद से सुलेखा दक्षिण दिल्ली की झुग्गी बस्ती में अपने एक रिश्तेदार के यहां रह रही हैं. इस घटना से तीन दिन पहले ही उन्हें घर खाली करने का नोटिस मिला था. सुलेखा ने बुलडोजरों को अपने घर और अपने मोहल्ले को ढहाते हुए देखा, जो कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन है, जिनके अनुसार उनके जैसे निवासियों को कम से कम 15 दिन पहले नोटिस दिया जाना चाहिए.
न्यूज़लॉन्ड्री के आकलन के हिसाब से, भाजपा के सत्ता में आने के बाद से दिल्ली भर में तोड़फोड़ अभियान के चलते 27,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं. कम से कम 9,000 लोगों को सार्वजनिक आवास नियमों के तहत पुनर्वास से वंचित कर दिया गया है, जिससे शहर के कामकाजी गरीब लोग असहाय हो गए हैं. सुलेखा उन्हीं में से एक है.
सिर्फ साल 2023 में, भारत में जबरन बेदखल किए गए पांच लाख लोगों में से 2.8 लाख लोग दिल्ली के थे, जो सात वर्षों में सबसे बड़ी संख्या है. जल्दबाजी में दिए गए अदालत के आदेशों, सीमित कट-ऑफ तिथियों और अनियमित सर्वेक्षणों की वजह से हजारों परिवारों को बेदखली, नामुनासिब पुनर्वास या फिर बिल्कुल भी पुनर्वास न मिलने का सामना करना पड़ रहा है. वादे में दिया गया आवास जब मिलता भी है, तो अक्सर रहने के लिए माकूल नहीं होता. जैसा कि एक शहरी योजनाकार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, दिल्ली का शहरी नवीनीकरण अभी भी “योजना को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.”
पिछले चार महीनों में ही शहर में आठ प्रमुख स्थलों पर तोड़फोड़ के अभियान चलाए गए. बुलडोजर दक्षिण दिल्ली के समृद्ध सैनिक फार्म से लेकर उत्तर-पूर्व में यमुना के बाढ़ क्षेत्र में पुराने उस्मानपुर गांव तक, और उत्तर-पश्चिम में अशोक विहार व वजीरपुर से लेकर दक्षिण-पूर्व दिल्ली के भूमिहीन, मद्रासी और तैमूर नगर कैंपों में चार अभियानों तक चले.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इन ध्वस्तीकरणों, उनके असर और प्रभावित लोगों पर नजर डाली.
विरोधाभासी आंकड़े
एक ऐसे देश में पुनर्वास एक बहुत बड़ा काम है, जहां आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है. दिल्ली में, सभी पुनर्वासों की देखरेख दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) द्वारा की जाती है.
2011 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली की लगभग 10.8 फीसदी आबादी झुग्गियों में रहती है (डेटाफुल पर जानकारी यहां देखें). फिर भी लोगों की संख्या के अनुमानों में काफी अंतर है.
2010 में दिल्ली सरकार के अपने सर्वेक्षण के अनुसार, करीब 5.8 लाख परिवार 4,390 झुग्गियों में रहते हैं. डीयूएसआईबी की वेबसाइट कहती है कि लगभग 30 लाख लोग, या छह लाख परिवार शहरी झुग्गियों में रहते हैं.
2006 की दिल्ली मानव विकास रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर की 45 प्रतिशत आबादी, यानी तब के अनुमान से 140 लाख लोग, झुग्गियों में रहते हैं, जिसमें अवैध कॉलोनियां, अवैध उप-विभाजन और अनधिकृत विकास जैसी अनौपचारिक बस्तियां शामिल हैं. आशा इंडिया नामक एक गैर सरकारी संगठन का अंदाज़ा है कि दिल्ली में “लगभग 750 बड़ी और छोटी झुग्गियां” हैं, जिनमें 3.5 लाख परिवार या लगभग 20 लाख लोग रहते हैं.
ये विरोधाभासी संख्याएं, खराब स्थिति को और भी बदतर बना देती हैं. आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के एक पूर्व टाउन एंड कंट्री प्लानर आर श्रीनिवास ने कहा, “शहर में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है. जब कोई रिकॉर्ड होगा, केवल तभी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों का योजनाबद्ध तरीके से पुनर्वास संभव हो सकता है.”
ये मुद्दा इस प्रश्न से और भी जटिल हो जाता है कि क्या दिल्ली में पुनर्वास के लिए पर्याप्त जगह है.
श्रीनिवास ने कहा, “दिल्ली जैसे शहर में जहां पहले से ही जमीन की कमी है, वहां विस्थापन और पुनर्वास के बीच का अंतर बना रहेगा.” उन्होंने सुझाव दिया कि कुछ विस्थापित लोगों को “एनसीआर क्षेत्र के सीमावर्ती इलाकों में स्थानांतरित किया जा सकता है, लेकिन फिर अधिकारियों को पूरे एनसीआर क्षेत्र के लिए पुनर्वास की योजना बनानी होगी”. झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों की संख्या इतनी ज्यादा होने के कारण, “सभी का पुनर्वास करना लगभग असंभव होगा”.
झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के पुनर्वास के लिए दिल्ली कैबिनेट ने 2016 में दिल्ली झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास और पुनर्वास नीति 2015 को मंजूरी दी थी.
इस नीति के तहत आम आदमी पार्टी सरकार ने शुरू में 14 फरवरी, 2015, अपने दिल्ली में पदभार संभालने के दिन, को झुग्गियों को ध्वस्तीकरण से सुरक्षा देने की कट-ऑफ तिथि के रूप में मंजूरी दी थी. बाद में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के निर्देश के बाद इस तिथि को संशोधित कर 1 जनवरी, 2015 कर दिया गया.
नई नीति के मुताबिक, 1 जनवरी 2006 से पहले बने झुग्गी-झोपड़ी (जेजे) क्लस्टर, जिनकी संख्या लगभग 675 है, बिना वैकल्पिक व्यवस्था के हटाए नहीं जाएंगे. इनमें से करीब 348 क्लस्टर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधीन आते हैं. हालांकि, जो झुग्गी क्लस्टर इस सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें किसी आधिकारिक पहचान या सुरक्षा का लाभ नहीं मिलता. ऐसे क्लस्टर कानूनी दायरे से बाहर माने जाते हैं, जिससे वहां रहने वाले लोगों को न तो कोई अधिकार मिलता है और न ही किसी तरह का पुनर्वास.
न्यूज़लॉन्ड्री ने डीयूएसआईबी को अपने सवाल भेजे हैं. अगर वे जवाब देते हैं तो यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
हालिया ध्वस्तीकरण
न्यूज़लॉन्ड्री ने मार्च से लेकर अब तक दिल्ली में हुई तोड़फोड़ की घटनाओं के पीछे के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
5 मार्च: यमुना बाढ़ क्षेत्र
विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 5 मार्च को यमुना बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया, जिससे क्षेत्र के लगभग 200 परिवार प्रभावित हुए. कथित तौर पर, तोड़फोड़ से तीन दिन पहले ही नोटिस दिए गए थे.
24 अप्रैल: सैनिक फार्म
सैनिक फार्म में ऐसी तोड़फोड़ की गई, जिसमें लोगों का विस्थापन नहीं किया गया. 24 और 26 अप्रैल के बीच की उमस भरी शाम को, दिल्ली की एक अनधिकृत लेकिन समृद्ध कॉलोनी सैनिक फार्म में बुलडोजर घुस आए. दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना के आदेश पर तीन दिनों में 1.25 एकड़ पर कथित अतिक्रमण को हटा दिया गया. यह मार्च में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कॉलोनी की कानूनी अनियमितताओं को हल करने में विफल रहने के लिए केंद्र को फटकार लगाने के कुछ ही सप्ताह बाद हुआ.
5 मई: तैमूर नगर इंदिरा कैंप
दिसंबर 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, डीडीए ने 5 मई को स्थानीय नाले के किनारे तैमूर नगर में 100 इमारतों को ध्वस्त कर दिया, जिससे लगभग 480 निवासी विस्थापित हो गए. उच्च न्यायालय ने नाले के किनारे अतिक्रमणों को तोड़ने पर रोक लगाने से मना कर दिया था, क्योंकि इन अतिक्रमणों की वजह से नाले में बारिश के पानी को नीचे की ओर ले जाने में असमर्थता के कारण राजधानी के कुछ हिस्सों में बाढ़ भी आ गई थी.
5 मई: वजीरपुर
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के वजीरपुर में रेलवे लाइनों के किनारे कई ध्वस्तीकरण अभियान चलाए गए. पहला अभियान 5 मई को वजीरपुर रेलवे लाइन पर चलाया गया, जिसमें 220 घरों को ध्वस्त कर दिया गया और लगभग 1,056 लोग प्रभावित हुए. ये आंकड़े दिल्ली हाउसिंग राइट्स टास्क फोर्स द्वारा तैयार की गई एक आकलन रिपोर्ट के माध्यम से एकत्र किए गए हैं, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली पर ध्यान केंद्रित करते हुए मानवाधिकारों, पर्याप्त आवास और अन्य संबद्ध अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठनों और व्यक्तियों का एक समूह है.
1 जून: मद्रासी कैंप
ध्वस्त की गई एक अन्य झुग्गी बस्ती मद्रासी कैंप है, जिसे 1 जून को ध्वस्त कर दिया गया. रेलवे के स्वामित्व वाली भूमि पर डीयूएसआईबी द्वारा गिने गए 370 परिवारों में से केवल 189 को पुनर्वास की अनुमति दी गई. शेष 182 परिवारों के लगभग 900 लोग अनिश्चितता में फंस गए.योग्य निवासियों को उनके वर्तमान निवास से कम से कम 50 किमी दूर नरेला में एक घर दिया गया. इस तोड़फोड़ और उसके असर पर न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट देखने के लिए यहां और यहां क्लिक करें.
2 जून: मॉडल टाउन, वजीरपुर
2 जून को उत्तरी रेलवे ने मॉडल टाउन में रेलवे ट्रैक के एक तरफ़ झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया. रेलवे ने कहा कि रेलवे सिग्नल की दृश्यता बहाल करने और परिचालन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ये तोड़फोड़ जरूरी थी. दिल्ली हाउसिंग राइट्स टास्क फोर्स के अनुसार, लगभग 200 घर ढहा दिए गए और 960 लोग विस्थापित हो गए.
10 जून: वजीरपुर
10 जून को वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में 100 घर गिराए गए, जिससे कम से कम 480 लोग विस्थापित हुए.
11 जून: भूमिहीन कैंप
11 जून को भूमिहीन कैंप में पांच एकड़ जमीन के बराबर 344 घर गिराए गए. 2,891 परिवारों के डीडीए सर्वेक्षण में 1,862 परिवारों को दूसरी जगह भेजने की मंजूरी दी गई, लेकिन 5,000 से ज्यादा लोग इसके बाहर रह गए.
16 जून: अशोक विहार
16 जून को अशोक विहार में जेलरवाला बाग इलाके में करीब 200 ढांचे गिराए गए. डीडीए के रिकॉर्ड के अनुसार 1,078 परिवारों को पास के स्वाभिमान अपार्टमेंट में पुनर्वासित किया गया है, जबकि 567 परिवार अयोग्य घोषित किए गए, जिससे करीब 2,800 लोग पुनर्वास से वंचित रह गए हैं.
अपना घर खोना
लेकिन इन आंकड़ों के पीछे के चेहरों का क्या?
अपने घरों से विस्थापित होने वाले ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर, निर्माण मजदूर, ऑटो-रिक्शा चालक और भूमिहीन कैंप में अपना घर खोने वाली सुलेखा पासवान जैसे घरेलू कामगार हैं.
भूमिहीन कैंप डीयूएसआईबी की उन क्लस्टर की सूची में शामिल है, जहां रहने वाले पुनर्वास के लिए योग्य हैं, क्योंकि इसकी स्थापना 1 जनवरी, 2006 से पहले हुई थी. निवासियों को कालकाजी में डीडीए हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में फ्लैट दिए गए थे, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में किया था. लेकिन निवासियों ने कॉम्प्लेक्स की खराब हालत के बारे में शिकायत की है.
साथ ही एक अलग मुद्दा ये भी है कि भूमिहीन कैंप के सभी लोगों को फ्लैट नहीं मिला. सुलेखा कहती हैं कि राशन कार्ड बना होने और सालों से अपने घर में रहने के बावजूद डीडीए ने उन्हें बताया कि वे पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे पहली मंजिल पर रहती थीं. यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ.
इसी तरह, भूमिहीन कैंप के निवासी कमलेश, जिन्होंने अपना घर ढहाया जाता देखा, उनको घर आवंटित नहीं किया गया. चितरंजन पार्क में चाय की दुकान पर काम करने वाले पचास वर्षीय कमलेश ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मेरे पास किराए पर रहने के लिए पैसे नहीं हैं. मैं कभी-कभी चाय की दुकान पर सोता हूं, तो कभी फुटपाथ पर.”
अशोक विहार के पुनर्वासित निवासियों को स्वाभिमान फ्लैट्स में घर दिए गए थे, जिनका उद्घाटन इस साल जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. यहां के निवासी भी रहने की खराब स्थिति की शिकायत करते हैं. पुनर्वासित निवासियों में से एक रेखा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हमें पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है, कभी-कभी यह देर से या बहुत कम आता है. छह लोगों के मेरे परिवार के लिए एक शौचालय सुविधाजनक नहीं है.”
मद्रासी कैंप की निवासी सुमन, जिन्हें 50 किलोमीटर दूर नरेला में पुनर्वास नहीं मिला, उनका चार लोगों का परिवार सराय काले खां में 10,000 रुपये महीना के एक किराए के कमरे में रह रहा है. वह कहती हैं, “मेरे पति और मुझे किसी तरह से काम चलाना पड़ता है ताकि हमारे बच्चों को स्कूल से न निकाला जाए.”
तैमूर नगर कैंप में लाला चौहान उन 14 निवासियों में से एक हैं, जिन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि बिना "उचित पुनर्वास" के घर को ध्वस्त न किया जाए. उनकी याचिका खारिज कर दी गई. वे वर्तमान में फरीदाबाद में रह रहे हैं. वे कहते हैं, "हम उस मलबे में बार-बार वापस लौटते रहते हैं, जो कभी हमारा घर था."
तैमूर नगर के एक अन्य निवासी, जिनका घर ध्वस्त कर दिया गया था, वर्तमान में खादर में अपने भाई के साथ रह रहे हैं. ये निवासी, जो एक निजी कंपनी में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करते हैं अपना नाम नहीं बताना चाहते थे.
उन्होंने अपने खोए हुए घर के बारे में कहा, "मैं शादीशुदा नहीं हूं, मैं अपनी मां के साथ वहां रहता था. उनके निधन के बाद मैं अकेला रह रहा था, लेकिन अब मुझे अपने भाई और उसके परिवार के साथ यहां रहना पड़ रहा है, जो असुविधाजनक है, क्योंकि उसके परिवार में पहले से ही पांच सदस्य हैं."
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आम आदमी पार्टी नेता और पूर्व सीएम आतिशी को दिल्ली पुलिस ने तब "हटा दिया", जब उन्होंने विध्वंस से कुछ समय पहले भूमिहीन कैंप के निवासियों से मिलने की कोशिश की थी. वरिष्ठ आम आदमी पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने भाजपा पर 2022 तक “सभी के लिए आवास” उपलब्ध कराने के अपने वादे को तोड़ने का आरोप लगाया. पार्टी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि भाजपा ने पांच साल में “48 झुग्गियों को ध्वस्त करने की कोशिश की”, लेकिन उन्होंने “उनमें से 37 को बचा लिया”.
भाजपा की ओर से दिल्ली की मौजूदा सीएम रेखा गुप्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी इस मुद्दे का “राजनीतिकरण” करने की कोशिश कर रही है और ध्वस्तीकरण अदालत के आदेश के अनुसार ही किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि बिना पूर्व पुनर्वास के किसी भी झुग्गी को हटाया नहीं जाएगा. हालांकि, यह बात जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है.
श्रीनिवास ने कहा, “यह सब वोट बैंक के लिए है. क्योंकि अगर कोई सरकार उन्हें आवास का अधिकार देगी, तो वे निश्चित रूप से उन्हें वोट देंगे… पिछली सरकार ने शायद ध्वस्तीकरण का समर्थन नहीं किया होगा, इसलिए कई लोगों ने उनका समर्थन किया होगा, लेकिन वर्तमान प्रशासन कह रहा है कि अदालत के आदेश पर ध्वस्तीकरण किया जा रहा है. इसलिए यह झगड़ा जारी है.”
न्यायालय और अनुपालन
दिल्ली में कई ध्वस्तीकरण सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं, जिसके अनुसार निवासियों को 15 दिन पहले लिखित नोटिस देना होता है, या घर के मालिकों को अवैध ढांचों को स्वयं गिराने की अनुमति देनी होती है.
उदाहरण के लिए, यमुना के बाढ़ क्षेत्र में रहने वाले निवासियों को 3 मार्च को होने वाले ध्वस्तीकरण के लिए 2 मार्च को नोटिस मिला. भूमिहीन कैंप को चार दिन का नोटिस मिला. तैमूर नगर को नौ दिन का नोटिस मिला.
अदालतों की क्या भूमिका है?
अगस्त 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने, शकरपुर कॉलोनी के पुनर्वास दावों को खारिज करने के लिए 2015 की झुग्गी पुनर्वास नीति पर यह तर्क देते हुए भरोसा किया, कि यह क्लस्टर 675 झुग्गियों की संरक्षित सूची में नहीं था. मद्रासी कैंप और तैमूर नगर कैंप में ध्वस्तीकरण अभियान को नाले की सफाई के लिए उच्च न्यायालय के आदेशों का समर्थन प्राप्त था.
कुछ मामलों में, अदालतों ने राहत प्रदान की है. भूमिहीन कैंप में, 417 याचिकाओं में से 180 अपीलें सफल हुईं और पुनर्वास सुनिश्चित हुआ. अशोक विहार में लगभग 250 घर, रोक के आदेशों के कारण ध्वस्त होने से बच गए. लेकिन तब भी जिन घरों पर स्थगन आदेश लागू थे, उन्हें भी ढहा दिया गया.
कठपुतली कॉलोनी अधूरे वादों की एक चेतावनी भरी कहानी बनी हुई है. दिल्ली की पहली इन-सीटू पुनर्विकास योजना 2014 में शुरू हुई थी, जिससे लगभग 4,000 परिवार विस्थापित हुए. 2,800 से अधिक लोगों को एक ट्रांजिट कैंप में स्थानांतरित कर दिया गया, उन्हें नए टावरों में बेहतर आवास देने का वादा किया गया. एक दशक बाद ये टावर अभी भी निर्माणाधीन हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने अधिवक्ता पवन रेली से विध्वंस में अदालत की भूमिका के बारे में पूछा. उन्होंने कहा, "दिल्ली उच्च न्यायालय ने नालों के मामले में सरकारी अधिकारियों के ठीक से काम न करने से संबंधित जिस तरह के मुकदमों के साथ संपर्क किया गया था, उसके अनुसार काम किया है. लेकिन न्यायालय इसके मूल कारण पर नहीं जा रहा है. पुनर्वास में अंतराल बरकरार है क्योंकि अयोग्य विस्थापित निवासी अपने मौजूदा घरों से बाहर निकाले जाने पर किसी और जगह चले जाएंगे. रैन बसेरा मुहैया करना स्थायी समाधान नहीं है."
उन्होंने चेतावनी दी कि जब विस्थापित परिवार नई जमीन पर फिर से बसेंगे, तो उन्हें फिर से बेदखली का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पुनर्वास की कट-ऑफ तिथि 2015 पर स्थिर है: "ये लोग फिर से बेघर हो जाएंगे, इसलिए यह पुनर्वास में फैसला हमेशा बना रहेगा."
पिछले निर्णयों से यह बात पता चलती है. सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में रेलवे ट्रैक के किनारे 48,000 झुग्गियों को हटाने का आदेश दिया था. डीडीए का कहना है कि उसके दायरे में आने वाली 378 झुग्गी बस्तियों में से अब तक केवल 205 का ही सर्वेक्षण किया गया है, बाकी का अभी भी लटका हुआ है. दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 में, झुग्गी बस्तियों को 2,000 वर्ग मीटर से छोटे प्लॉटों पर बसाने का प्रस्ताव है, यानी अगर परिवार में औसतन पांच सदस्य हों तो लगभग 70,000 लोग जोखिम में पड़ सकते हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के पूर्व निदेशक हितेश वैद्य का कहना है कि शहरों में न तो प्रभावी समन्वय है और न ही स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत योजना व्यवस्था. उन्होंने कहा, "हमें एक ऐसी प्लानिंग की जरूरत है जो लोगों की सुने, ज़मीनी हकीकत को समझे और उसी के अनुसार काम करे. लेकिन अफसोस की बात है कि आज जो हो रहा है, वो असल योजना नहीं बल्कि योजना को एक 'हथियार' की तरह इस्तेमाल करना है."
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