मद्रासी कैंप पर 1 जून को भारी पुलिसबल की मौजूदगी में बुलडोजर कार्रवाई शरू कर सभी झुग्गियों को जमींदोज कर दिया गया.
दिल्ली के जंगपुरा इलाके में स्थित मद्रासी कैंप में दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद 1 जून को अवैध निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई शुरू की गई. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह बस्ती बारापुला नाले के किनारे अवैध रूप से बसी हुई है, जिससे हर साल मानसून में भारी जलभराव की समस्या होती है. इसके बाद भारी पुलिस बल की मौजूदगी में इन सभी झुग्गियों को जमींदोज कर दिया गया.
दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) द्वारा कराए गए सर्वे में 370 झुग्गियों में से 189 को 'दिल्ली स्लम एवं झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति 2015' के तहत पुनर्वास के लिए पात्र माना गया. इन पात्र परिवारों को राजधानी के बाहरी इलाके नरेला में डीडीए फ्लैट आवंटित किए गए हैं, जो मद्रासी कैंप से करीब 50 किलोमीटर दूर हैं. हालांकि, स्थानीय निवासियों का दावा है कि यहां 700 से अधिक झुग्गियां थीं, जो पिछले 50 वर्षों से ज्यादा से मौजूद थीं. अब वहां केवल खाली मैदान और मलबा बचा है.
जब हम मौके पर पहुंचे, तो कई परिवार टूटे हुए घरों के मलबे के बीच बैठकर रोते नजर आए. उनका आरोप है कि उन्हें वादा किया गया था "जहां झुग्गी, वहीं मकान", लेकिन अब उनका सब कुछ उजड़ गया है. कुछ लोगों का कहना है कि मोदी सरकार ने वोट लेकर उनके साथ धोखा किया है.
उधर, डीडीए ने दावा किया है कि नरेला में बनाए गए फ्लैट रहने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, लेकिन मौके पर स्थिति कुछ और ही दिखती है. नरेला के जिन फ्लैट्स में 189 परिवारों को बसाया गया है, वहां न तो पर्याप्त पानी की व्यवस्था है और न ही बिजली की.
इन लोगों का कहना है कि कि नरेला दिल्ली का आखिरी छोर है, न वहां रोजगार है, न स्कूल, न स्वास्थ्य सुविधा. ज्यादातर झुग्गीवासी सफाईकर्मी, घरेलू कामगार या दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनकी रोजी-रोटी मद्रासी कैंप के आसपास थी. 50 किलोमीटर दूर जाकर काम करना न उनके लिए संभव नहीं है, और वहां रोजगार के ऐसे कोई साधन नहीं हैं.
हमने नरेला के डीडीए फ्लैट्स में पिछले 8 वर्षों से रह रहे कुछ लोगों से भी बात की. उनका कहना है कि यहां सुविधाओं की भारी कमी है, और नई बसाई जा रही झुग्गी आबादी को भी इन्हीं समस्याओं से जूझना पड़ेगा.
मद्रासी कैंप में जिन परिवारों के घर तोड़े गए हैं उनका दर्द सिर्फ छत छिन जाने का नहीं है दरअसल, वो अपना पूरा समुदाय, काम, बच्चों की पढ़ाई और जीवन की बुनियाद खो बैठे हैं.
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