महिला होना ही अब मेरी सुरक्षा हैः गौरी लंकेश

गौरी लंकेश के लेखों और साक्षात्कारों का संकलन हिंदी में 'मेरी नज़र से' जगरनॉट प्रकाशन की तरफ से आया है. पुस्तक का यह अंश गौरी का 2000 में लिया गया साक्षात्कार है.

Article image

पत्रकार एमडी रीति ने गौरी लंकेश के लंकेश पत्रिके का संपादक बनने के दो महीने बाद मार्च 2000 में गौरी का यह साक्षात्कार लिया था, पत्रकार के रूप में उनकी दूसरी पारी के बारे में.

क्या आपने कभी यह सोचा था कि आप अपने पिता की विरासत की उत्तराधिकारी होंगी और एक दिन लंकेश पत्रिके की संपादक बनेंगी?

गौरी: कभी नहीं, मैं नहीं समझती कि मेरे पिता की विरासत का कोई सही मायने में कभी भी उत्तराधिकारी हो सकेगा. कन्नड़ पत्रकारिता और साहित्य जगत में उनका बहुत बड़ा स्थान था. जिस दिन उनका निधन हुआ, दिल्ली हवाई अड्डे पर जब हम इंतजार कर रहे थे तो मेरे मित्रों ने मुझसे पूछा कि अब पत्रिके का क्या होगा. मैंने उनसे कहा कि इसे तुरंत बंद करने के अलावा कोई अन्य चारा ही नहीं होगा. उनका कद बहुत ही बड़ा था और उसके अनुरूप होना मुश्किल है.

वे क्या परिस्थितियां थीं जिनमें आपने इस साप्ताहिक के संपादन का निर्णय लिया?

गौरी: पहले तो मैंने सोचा ही नहीं था कि, मुझे छोड़ो, किसी अन्य के नेतृत्व में भी इस साप्ताहिक को चलाए रखना कभी भी व्यावहारिक होगा क्योंकि हर कोई एक और लंकेश को देखना चाहेगा जो असंभव है. परंतु इतने ज्यादा लोगों ने संदेश भेजकर कहा, कृपया पत्रिका को बंद मत कीजिए क्योंकि यह हमेशा ही धर्म निरपेक्षता, दलितों, महिलाओं और समाज के उपेक्षित वर्ग के साथ खड़ी रही है. पत्रिके उन लोगों की आवाज़ बन गई थी जिनके लिए मुख्य धारा की मीडिया में कोई जगह नहीं थी.

मेरी बहन, भाई और मैं सभी अपने पिता के मित्र, मणि, जो कन्नड़ के प्रमुख सांध्य अखबार सांजे वाणी और तमिल दैनिक दिना सुधार के संपादक और प्रकाशक हैं और सालों से हमारी पत्रिका छापते रहे हैं, से मिलने गए. हमने उनसे कहा कि हम अपनी साप्ताहिक बंद करना चाहते हैं. मणि इससे काफी व्यथित हो गए. उन्होंने कहा, ‘‘आपके पिता थे, जिन्होंने नियमित नौकरी छोड़ दी थी, इस प्रकाशन को शुरू करने में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी थी और उनमें संघर्ष करने और कुछ कर दिखाने का साहस था. आप लोग बगैर संघर्ष के ही हथियार डालना चाहते हैं. आप लोग फिलहाल कुछ समय तक इसके लिए प्रयास करने का साहस क्यों नहीं दिखाते और यदि बात नहीं बनती है तो इसे बंद कर देना?’’

इससे पहले उन्होंने पत्रिका के लिए लिखे सारे स्तंभ और संस्करण अपने बिस्तर पर रख दिया था. पत्रिका अचानक ही बंद करना हमें उनकी सारी यादों का अपमान करने जैसा लगा, जबकि उन्होंने अपने सारे कार्यों को इतनी कुशलता से समेटा था. एक सवाल हमें लगातार परेशान कर रहा था कि क्या मेरे पिता चाहते थे कि पत्रिके को जारी रखा जाए. हम अभी भी इसका जवाब नहीं जानते. उन्होंने कभी भी हमें नहीं बताया.

हालांकि वह काफी लंबे समय तक बीमार रहे, लेकिन क्या उन्होंने कभी भी आपसे पत्रिके के भविष्य के बारे में बात नहीं की?

गौरी: नहीं, हकीकत तो यह है कि वह पिछले दो साल से एक सांध्यकालीन अख़बार शुरू करने पर विचार कर रहे थे. घर में हम सभी ने इस विचार को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि हम नहीं समझते थे कि ऐसा करने के लिए उनका स्वास्थ्य ठीक था. वह सदैव ही यह महसूस करते थे कि उन्हें उस समय तक ही जीवित रहना चाहिए जब तक वह किसी मकसद को पूरा कर रहे हैं. और मैं समझती हूं यह भी उसी दर्शन को आगे बढ़ा रहा है.

इसका मतलब, आप पत्रकारिता में इस उद्देश्य से नहीं आई थीं कि एक दिन आपको इस साप्ताहिक को देखना होगा?

गौरी: क्या मुझे इस नौकरी के लिए तैयार किया जा रहा था? निश्चित ही नहीं, क्योंकि मेरे पिता ने लगभग उस वक्त पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जब मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही थी. उस समय एक प्रकाशन की दृष्टि से मेरे लिए विरासत में कुछ भी नहीं था. वास्तव में, मेरी पहली पसंद डॉक्टर बनना था परंतु ऐसा नहीं हुआ, तो मैंने पत्रकार बनने का निर्णय लिया. इन बीस सालों के दौरान मैंने पत्रिके के लिए सिर्फ एक बार लिखा. मैं जानबूझ कर इस प्रकाशन से दूर रही क्योंकि यह एक कठोर और आक्रामक पत्रिका है और मैं मुख्यधारा की अंग्रेज़ी मीडिया के लिए काम कर रही थी.

आपके आलोचक कहते हैं कि आपका करियर ग्राफ बहुत अधिक प्रभावशाली नहीं रहा और पिछले करीब एक दशक से आपके करियर में ठहराव आ गया था या फिर पतन की ओर अग्रसर है. क्या आपको लगता है कि यह आपके लिए सुनहरा अवसर है?

गौरी: मैं यह स्वीकार करने वाली पहली व्यक्ति होऊंगी कि मेरे करियर में ठहराव आ गया था, इससे किसी का कोई सरोकार नहीं. शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं जोखिम नहीं उठाना चाहती थी. हो सकता है कि ऐसी इसलिए भी रहा हो क्योंकि मेरी निजी जिंदगी बहुत शानदार नहीं थी. मैं अपने करियर पर ध्यान देने की बजाए अपनी व्यक्तिगत खुशियों पर अधिक ध्यान दे रही थी. आज, मैं अपने आप से खुश हूं और इसके लिए चुकाई गई कीमत की मुझे परवाह नहीं है.

क्या आप अब अपनी निजी और पेशेवर दोनों जिंदगी से खुश हैं?

मैं एक व्यक्ति के रूप में स्वयं से बहुत खुश हूं. पिछले साल मैंने फैसला किया कि अंततः अकेले रहने में मुझे कोई परेशानी नहीं थी, अपनी सारी व्यक्तिगत भ्रांतियों को हल कर लिया था और अब अपने करियर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार थी. इसी वक्त, मेरे पिता के निधन ने मेरे मामले का फैसला कर दिया और मुझे लौटकर आना पड़ जब मेरा करियर सही दिशा में आगे बढ़ रहा था. जहां तक संपादन करने का सवाल है तो मुझे कतई यह नहीं लगता कि मैंने यह हासिल किया है. मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास यह सुनिश्चित करने के लिए कर रही हूं ताकि मैं अब इसे अर्जित करूं.

आपको एक ऐसी साप्ताहिक का संपादक बनने में कैसा महसूस हो रहा है जिसकी छवि अभी तक उसके स्टाफ और पाठकों के बीच पुरुष प्रधान रही है?

गौरी: पत्रिके में महिलाओं के लिए उनका स्थान रहा होगा परंतु इसका फोकस निश्चित ही खालिस ख़बरों, तफ्तीश और पुरुषों की दिलचस्पी वाले क्षेत्रों पर रहा है, जैसा कि अधिकांश जिलों में पुरुष पत्रकार खबरें लिखते हैं. मैं इस कथन से असहमत हूं कि हमारे पाठक मुख्य रूप से पुरुष हैं. हमने कुछ श्रेष्ठ कन्नड़ महिला लेखकों को भी जगह दी है. जैसे वैदेही, ललिता नायक और भानु मुश्ताक. वे अभी भी हमारी साप्ताहिक में पहले प्रकाशित होना पसंद करती हैं क्योंकि हम उन्हें बहुत ही खास पाठकवर्ग उपलब्ध कराते हैं. मेरे पिता ने भी अनेक महिलाओं को कन्नड़ में पत्रकार बनने के लिए प्रेरित किया.

आपके पिता को अक्सर ही जान के खतरे, मुकदमों से जूझना पड़ा और उन्हें तरह तरह के नामों से पुकारा गया. उन्होंने इन सभी को अपनाया. बंगलोर में अपेक्षाकृत युवा, अकेली रहने वाली महिला के नाते क्या आपको इस तरह के दबावों का सामना करना पड़ता है?

गौरी: जितने लोगों ने मेरे पिता के खिलाफ मुकदमे दायर किए थे, उनके कहीं अधिक संख्या में लोगों ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि वह सही थे. मैं इस साप्ताहिक की मारक क्षमता को कम किए बगैर ही इसे और अधिक पेशेवर ढंग से चलाने की कोशिश कर रही हूं. मैं समझती हूं कि इस स्थिति में महिला होना काफी मददगार है क्योंकि यदि किसी भी संवाददाता की किसी ऐसे नेता से मुलाकात हुई जो मेरे पिता से नाराज था, तो वह उनके लिए बेहद भद्दी भाषा का इस्तेमाल करेगा. परंतु वे महिला के प्रति निंदनीय भाषा का प्रयोग करेंगे तो वह समाज में अपना सम्मान और प्रतिष्ठा ही गंवाएंगे. अतः महिला होना ही इस समय मेरी सुरक्षा है.

ठीक है, लोग आपके लिए निंदनीय भाषा का प्रयोग नहीं करें परंतु महिला होने की वजह से वे आप पर हमला कर सकते हैं जैसा कि उन्होंने समय समय पर आपके पिता के साथ किया था. उन्हें पता चल जाएगा कि विशेष रूप से आप एक महिला होने के नाते कमजोर हैं.

मैं शारीरिक हमले को लेकर बिल्कुल भी भयभीत नहीं हूं. अभी एक पखवाड़े पहले तक मैं अंधेरी रात में तड़के तीन बजे घर लौटती रही हूं. मैं ऐसे ही एक अवसर पर सिर्फ उस समय रुकी जब मैंने साड़ी में लिपटे एक व्यक्ति को बीच सड़क पर पड़ा देखा. अब मैं घर पहुंचने तक अपने ड्राइवर को साथ रखती हूं. इसके अलावा, मुझे कोई भी ऐसा फोन नहीं आया जिसमें दूसरी ओर से कोई बोल नहीं रहा हो. मुझे कुछ फोन आए जिनमें तालुका स्तर के ‘ब्लैकमेल’ समाचारपत्रों में मेरी निजी जिंदगी के बारे में मुझे ब्लैकमेल करने का प्रयास किया गया. उन्होंने भी फोन करना बंद कर दिया जब मैंने कहा, ‘‘लिखिए, आप जो कुछ भी मेरे बारे में लिखना चाहें. मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है जिसके खुलासे को लेकर भयभीत होऊं.

(गौरी लंकेश की चुनिंदा रचनाओं के संकलन मेरी नजर से का यह अंश किताब के प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like