दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते महाराष्ट्र में आहत आस्था समाज वाले औरंगजेब से सीधे कुणाल कामरा पर शिफ्ट हो गए. उन्होंने सवा तीन सौ साल लंबी छलांग मारी है ताकि अभिव्यक्ति पर अंधेरा कायम रहे. कामरा ने किसी का नाम लिए बिना एक गाना बनाया था, शिवसेना शिंदे ग्रुप के लोगों ने मान लिया कि ये सारे गुण एकनाथ शिंदे के ही हो सकते हैं, सो वे नाराज हो गए.
हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां बिना बात की बात पर दंगे फसाद का सामान रेडीमेड उपलब्ध है. सांप्रदायिक नेता, प्रोपगैंडाबाज मीडिया और भ्रम की शिकार बेरोजगारों की फौज. नागपुर की घटना हिंसा के ऐसे ही रेडीमेड मॉडल का नतीजा है. इलाहाबाद उर्फ प्रयागराज की पवित्र कर्मभूमि से निकले जस्टिस यशवंत वर्मा चर्चा में हैं. दिल्ली हाईकोर्ट में जज वर्माजी जस्टिस करते थे, उनके साथ पोएटिक जस्टिस हो गया. कैसे? यह जानने के लिए टिप्पणी देखें.