AAP के बारे में क्या सोच रहा है Muslim मतदाता

दिल्ली में मुस्लिम वोटर एक दर्जन से ज्यादा सीटों को प्रभावित करते हैं लेकिन सात सीटें ऐसी हैं जहां उनका वोट ही तय करता है कि जीत किसकी होगी.

WrittenBy:अनमोल प्रितम
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दिल्ली में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अपने चरम पर है. यहां मतदान के लिए महज दो हफ्ते बचे हैं. एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी इसे भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही. सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए हर तरह के पैंतरे आज़मा रहे हैं. इस बीच यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली के मुस्लिम मतदाता जो कि आम आदमी पार्टी का कोर वोटर रहे हैं, पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं. 

दिल्ली दंगों के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये और उसकी बदलती राजनीतिक विचारधारा इसकी एक बड़ी वजह है.  इस नाराजगी को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने दिल्ली की दो मुस्लिम बाहुल्य सीटों मुस्तफाबाद और ओखला विधानसभा से दिल्ली दंगों के आरोपियों को प्रत्याशी बनाया है. मुस्तफाबाद से आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और ओखला से जियाउर रहमान खान को पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है. 

वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सच में आम आदमी पार्टी से मुस्लिम मतदाता नाराज हैं या नहीं? और अगर नाराज हैं तो विकल्प के रूप में वे किसे देख रहे हैं? इन सवालों का पता लगाने के लिए हमने दिल्ली की दोनों मुस्लिम बाहुल्य सीटों मुस्तफाबाद और ओखला का दौरा किया.

वैसे तो दिल्ली में मुस्लिम वोटर एक दर्जन से ज्यादा सीटों को प्रभावित करते हैं लेकिन सात ऐसी सीटें हैं जहां उनका वोट ही तय करता है कि जीत किसकी होगी. इन सात सीटों में सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, बल्लीमारान, मटिया महल और ओखला शामिल हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इन सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी. इससे पहले 2015 में 6 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने और मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी.

ऐसे में इस बार के चुनाव में मुस्लिम मतदाता किसके साथ जा रहे हैं? एक तरफ जहां दोनों सीटों के मतदाताओं के मन में एआईएमआईएम की प्रत्याशियों को लेकर सहानुभूति है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर भी है. लेकिन क्या वे इन दोनों पार्टियों को विकल्प के रूप में देख रहे हैं? या फिर आम आदमी पार्टी के अलावा उनके पास कोई और ठोस विकल्प नहीं है? 

जानने के लिए देखिए हमारी यह ग्राउंड रिपोर्ट.

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