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एनएल चर्चा 337: दिल्ली में केजरीवाल का ‘आतिशी’ दांव और एक देश, एक चुनाव का ‘शिगूफा’

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं. 

     

इस हफ्ते आतिशी मार्लेना का नाम दिल्ली मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित होना और केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा एक राष्ट्र, एक चुनाव के प्रस्ताव को मिली मंजूरी पर विस्तार से चर्चा हुई.

इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री अमित शाह द्वारा 2021 से लंबित जनगणना का काम जल्दी पूरा करने के बयान, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 24 सीटों के लिए 61% मतदान, सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुलडोजर न्याय मामले में एक सख्त आदेश पारित करते हुए 1 अक्टूबर तक किसी भी इमारत को बुलडोजर के माध्यम से ध्वस्त करने की कार्यवाही पर रोक लगाना और पिछले हफ्ते शिमला में एक कथित अवैध मस्जिद के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन मामले में  पुलिस द्वारा लगभग 50 लोगों को नामजद करना, जिसमें भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के लोगों के नाम शामिल आदि खबरें प्रमुख रहीं.

इसके अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा पूर्व सत्ताधारी पार्टी वाईएसआरसीपी पर तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मछली के तेल और एनिमल फैट का उपयोग करने की साजिश का आरोप लगाते हुए कथित मामले में सीबीआई जांच की मांग, बिहार के नवादा में दलितों की झुग्गियों को जलाने की घटना मामले में पुलिस द्वारा अब तक 15 लोगों को गिरफ़्तारी और इस हफ्ते लेबनान में हजारों पेजर का बम की तरह फटना, जिसमें 12 लोगों की मौत और 2800 लोगों का घायल होने जैसी खबरों ने भी लोगों का ध्यान खींचा.

इस हफ्ते चर्चा में बतौर मेहमान (ऑनलाइन) वरिष्ठ पत्रकार रूही तिवारी, न्यूज़लॉन्ड्री टीम से शार्दूल कात्यायन और विकास जांगड़ा  शामिल हुए. वहीं, चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के प्रबंध संपादक अतुल चौरसिया  ने किया.

चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, “आतिशी अब दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी. आमतौर पर यह देखा जाता है कि जब व्यक्ति जेल जाता है तब इस्तीफा देता है. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने उलट काम करते हुए, जेल से आने के बाद इस्तीफा दिया. आखिर ऐसी कौन सी स्थिति रही और इसे कैसे देखा जाना चाहिए?”

इस सवाल के जवाब में शार्दूल कहते हैं, “देखिए मेरा यह शुरू से मानना रहा है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली वालों से वादा तो कर दिया है, लेकिन राजनीतिक दूर दृष्टि से देखें तो वह एक प्रकार से बेड़ियों में बंधे मुख्यमंत्री थे. अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता होने के बावजूद भी वह एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिसके पास कोई पावर नहीं है. यह शुद्ध रूप से एक राजनीतिक दांव-पेंच का मामला है.”

सुनिए पूरी चर्चा -

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