अलवर लिंचिंग: यहां पुलिस और गौरक्षक एक ही घाट का पानी पीते हैं

सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा दिशानिर्देशों के बावजूद रकबर ख़ान की हत्या में पुलिस की भूमिका संदेहास्पद है.

WrittenBy:अमित भारद्वाज
Date:
Article image

न्यूज़लॉन्ड्री ने रकबर खान की मौत से जुड़ी सभी परिस्थितियों की पड़ताल की. इसमें पुलिस की भूमिका पर हर मोड़ पर सवाल खड़े होते हैं. तमाम ऐसे सवाल हैं जिनका अलवर पुलिस के पास कोई जवाब नहीं हैं.

“तुम्हारे पास बहुत सवाल हैं. एक बार अदालत में हत्या की जांच शुरू होने दो, हम उन सबका जवाब जज को देंगे, पत्रकारों को नहीं. यह मामला ख़त्म होने में 20 साल लग जाएंगे. तुम्हें तब तक सारे जवाब मिल चुके होंगे,” एक चिढ़े हुए पुलिस अधिकारी ने इस रिपोर्टर से कहा जब वह अलवर में हुई रकबर खान उर्फ़ अकबर खान की हत्या के मामले में पुलिस की कहानी में मौजूद खामियों के बारे में सवाल पूछ रहा था.

वह पुलिस अधिकारी इस बात को लेकर बिलकुल निश्चिन्त था कि उसके सहयोगियों को प्रशासन की ओर से किसी गुस्से का सामना नहीं करना पड़ेगा. जबकि प्रथम दृष्टया सभी सबूत और परिस्थितियां पूरी तरह से पुलिस की गैरज़िम्मेदाराना हरकतों, गौरक्षकों के साथ मिलकर काम करने और संदिग्ध परिस्थितियों, जिसमें 28 वर्षीय खान की मौत हुई, की ओर इशारा कर रहे थे. साथ ही, उसके कथन से यह भी स्पष्ट था कि सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का ज़मीनी स्तर पर महत्व शून्य के बराबर था.

पहलू खान और रकबर खान दोनों ही मामलों में पुलिस के द्वारा की गयी गैरज़िम्मेदाराना हरकतों में काफ़ी हद तक समानताएं हैं. दोनों ही घटनाएं राजस्थान के अलवर जिले में हुई. पुलिस इस बात का स्पष्टीकरण देने में पूरी तरह असफल रही कि उन्हें 6 किलोमीटर की दूरी तय करने में तीन घंटे का समय क्यों लगा और पूरी रात हत्या के आरोपी पुलिस के साथ क्यों थे?

20-21 जुलाई की रात को, राजस्थान के अलवर जिले के लालवंडी गांव में गौरक्षकों ने रकबर खान और उनके सहयोगी असलम को रास्ते में घात लगाकर पकड़ लिया. वे दो गायों को लेकर अपने घर लौट रहे थे. यह गांव अलवर के रामगढ़ ब्लॉक में एक मिश्रित आबादी वाला गांव है. असलम भागने में कामयाब रहा, और खान को कथित तौर पर धर्मेन्द्र यादव के खेत में निर्दयतापूर्वक पीटा गया. हालांकि उसके शरीर पर बाहर से ख़ून के निशान नहीं दिखे. जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो मारपीट करने वालों का हुजूम वहां से भाग चुका था. दो युवक यादव, 24, और परमजीत सिंह, 28, दो गायों को पकड़े हुए वहां पर मिले. घटनास्थल पर मौजूद तथ्यों में कई परेशान करने वाली बातें नजर आईं जो कि पुलिस द्वारा बताई जा रही कहानी से कतई मेल नहीं खाती हैं और उस पर गम्भीर सवालिया निशान खड़ा करती हैं:

प्रेस रिलीज़:

पुलिस ने अपनी प्रेस रिलीज़ में कहा की उन्हें रामगढ़ निवासी नवल किशोर शर्मा से जानकारी मिली कि कुछ गौ तस्कर गायों को राजस्थान से हरियाणा ले जा रहे थे. जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो वहां मौजूद भीड़ एक वाहन पर सवार होकर भाग गई. सिर्फ दो लोग यादव और सिंह गायों को पकड़े हुए वहीं मौजूद थे. रकबर मिट्टी में पड़ा हुआ था, और उसने अपनी पूरी कहानी बताई कि उसे किस प्रकार से प्रताड़ित किया गया. खान बाद में बेहोश हो गया. पुलिस उसे वहां से उठाकर अस्पताल (सीएचसी रामगढ़) ले गयी, जहां पर उसे मृत घोषित कर दिया गया.

ये नवल किशोर शर्मा कौन है?

शर्मा, उर्फ़ नवल किशोर मिश्रा, रामगढ़ में विश्व हिंदू परिषद की गौरक्षा शाखा का प्रमुख है. उसे धर्मेंद्र यादव ने सतर्क किया था कि उन्होंने एक मवेशी तस्कर पकड़ा था. यादव और सिंह कथित रूप से गांव में सक्रिय एक गौरक्षा समूह का हिस्सा हैं. शर्मा ने न केवल पुलिस को सतर्क किया, बल्कि उनके साथ गांव और घटनास्थल तक भी गया.

प्राथमिकी:

प्राथमिकी के अनुसार शर्मा ने पुलिस को सुबह 12.41 पर फ़ोन करके सूचना दिया. सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह, दो कॉन्स्टेबल और एक ड्राइवर शर्मा के साथ भागकर घटनास्थल पर गए. रकबर ने पुलिस को अपना बयान दिया. पुलिस वैन उसे लेकर सीएचसी रामगढ़ गयी. एक कॉन्स्टेबल को पीछे गायों को लेकर आने के लिए छोड़ दिया गया था. पुलिस ने गायों को अलवर में बगड़ तिराहा पर मौजूद सुधानगर गौशाला में छोड़ दिया. खान को सीएचसी में मृत घोषित कर दिया गया. न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा सीएचसी के रिकार्ड को देखा गया, जो दिखाता है कि एक अनजान मृत शरीर वाहन सुबह चार बजे पुलिस द्वारा लाया गया था. डॉ हसन अली खान ने कहा, “पुलिस खान को सुबह चार बजे लेकर आयी. वह यहां मृत अवस्था में लाया गया था. ऐसा लग रहा था कि उसे आंतरिक रूप से कई घाव थे.”

उन्होंने आगे बताया, “मोहन सिंह, कुछ कॉन्स्टेबल और सादे कपड़ों में तीन लोग- नवल किशोर और दो अन्य युवा धर्मेन्द्र और परमजीत खान को अस्पताल में लेकर आए.”

चूंकि, सीएचसी में मेडिकल बोर्ड के मानदंडों को पूरा करने के लिए पर्याप्त डॉक्टर नहीं थे इसलिए पोस्टमार्टम अलवर के सरकारी अस्पताल में किया जाना था. पुलिस ने लालवंडी पहुंचने के समय से लेकर खान को सीएचसी लेकर जाने के लिए लगभग तीन घंटे का समय लिया. सीएचसी रामगढ़ पुलिस स्टेशन से मात्र कुछ मीटर दूर है. लालवंडी गांव पुलिस स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूर है- वही दूरी जो पुलिस को सूचना मिलने पर लगभग 20 मिनट तय की गई थी.

प्रश्न यह है कि पुलिस को एक घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में तीन घंटे का समय क्यों लगा? उन्होंने ये घंटे कहां बिताए? खान इस बीच कहां था और इस दौरान क्या हुआ?

सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह, जो की लालवंडी गांव में पुलिस की टीम का नेतृत्व कर रहे थे, के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था. उन्होंने संवाददाता को बताया, “मैंने समय का ध्यान नहीं रखा. कितना समय लगा, मैं इस बारे में बात करने की स्थिति में नहीं हूं लेकिन हम उसे [खान] सीधे अस्पताल ले गए.”

उन्होंने बताया कि पुलिस औपचारिकताओं को पूरा करने में व्यस्त थी, और वे लालवंडी गांव और सीएचसी के बीच कहीं नहीं रुके. इसके बावजूद उन्हें खान को अस्पताल ले जाने में ढाई घंटे का समय लग गया. एक अन्य कमी दिखी जब सिंह ने यह दावा किया कि खान अस्पताल के रास्ते में बात कर रहा था. लेकिन पुलिस द्वारा 21 जुलाई को जारी की गयी प्रेस रिलीज़ के अनुसार लालवंडी गांव में अपना बयान देने के बाद खान बेहोश हो गया था और सीएचसी लाने पर उसे मृत घोषित कर दिया गया था.

तो यहां झूठ कौन बोल रहा है? शर्मा द्वारा ली गयी तस्वीरें इस बात को प्रमाणित करती हैं कि खान पुलिस की जीप में जीवित था, होश में था. तब वास्तव में उसकी मृत्यु कब हुई? सिंह इस प्रश्न का जवाब देने में भी असमर्थ रहे.

यहां दो सम्भावनाएं हैं. पहला, 1.10 से 4 बजे के बीच में जो कुछ हुआ और पुलिस की अनदेखी और उसे तत्काल चिकित्सीय सुविधा मुहैया न करवाने के कारण खान की मृत्यु हुई. संवाददाता ने पुलिस के कुछ काग़ज़ात, जिसमें खान के शरीर पर घावों के बारे में लिखा गया था, देखे हैं. उसका बायां पैर दो जगहों से टूटा हुआ था, दोनों हाथों में चोट के निशान थे, उसकी हथेलियों में चोट के निशान थे, उसकी नाक, कान और उसकी पीठ पर चोट लगने के निशान थे.

imageby :

रामगढ़ सीएचसी में पुलिस की इंट्री

इस मामले में जांच अधिकारी सुभाष चंद शर्मा- घटना और आरोपी के बारे में सवालों के जवाब देने के दौरान- इस देरी के बारे में पूछने पर स्तब्ध रह गए. हालांकि, उन्होंने कहा, “खान को पुलिस स्टेशन नहीं लाया गया था.” ध्यान देने वाली बात ये है की जब उनसे पुलिस स्टेशन में लगे सीसीटीवी कैमरों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “ये काम नहीं कर रहे हैं.”

गौशाला में सुपुर्दगी:

गायों को गौशाला छोड़ना पुलिस की प्राथमिकता लग रही है. खान को अस्पताल 4 बजे लाया गया लेकिन गायों को अलवर में सुधा सागर गौशाला, बगड़ तिराहा पर 3.26 बजे ही पहुंचा दिया गया था. खान को सीएचसी पहुंचने से लगभग आधे घंटे पहले.

सुभाष चंद शर्मा ने माना है कि पुलिस गायों को गौशाला छोड़ने गयी थी. गौशाला के रखवाले, कपूर जैन ने बताया कि उस रात उसे दो फ़ोन कॉल वीएचपी के शर्मा ने की. “मुझे पहली कॉल सुबह 3.10 पे आयी और नवलजी ने मुझे बताया कि वे गाय तस्करों से जब्त दो गायों को लेकर आ रहे हैं. मुझे अगली कॉल 3.26 पर आई जिसमें हमें गौशाला का दरवाज़ा खोलने के लिए कहा गया था क्योंकि वे लोग आ चुके थे.”

उनके कर्मचारी ने दरवाज़ा खोला और नवल किशोर शर्मा जो पुलिस के साथ थे, ने गौशाला में गायों को सौंप दिया. गौशाला में प्रवेश का रिकॉर्ड बताता है, “थाना रामगढ़ से दो गायें.” जैन ने बताया कि यह उनकी नीति है कि वे गौरक्षकों द्वारा छापे के दौरान पकड़ी गयी गायों को यहां पर नहीं लेते जब तक वे पुलिस द्वारा उन्हें नहीं दी जाती. अब भी यह सवाल खाली छूट जाता है: पुलिस ने गायों को सुपुर्द करना अपनी प्राथमिकता क्यों रखा?

क्या पुलिस गौरक्षा समूहों के साथ में काम कर रही है?

पूरी कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा नवल किशोर शर्मा, उर्फ मिश्रा है. वीएचपी गाय संरक्षण विंग के प्रमुख को लालवंडी के गौरक्षकों से एक कॉल आती है. लालवंडी के मूल निवासी शर्मा, मोहन सिंह को बुलाते हैं. दोनों दो कॉन्स्टेबल और एक ड्राइवर के साथ गांव छोड़ते हैं. धर्मेंद्र यादव और परमजीत सिंह उनके लिए घटनास्थल पर इंतजार करते हैं. वीएचपी के शर्मा बताते हैं कि, खान को नहलाया गया और एक गौरक्षक द्वारा एक जोड़ी शर्ट और पैंट की व्यवस्था की गई. सिंह और शर्मा ने मिलकर खान को पुलिस वैन में बिठाया. यादव और परमजीत सिंह को गायों के साथ टेम्पो कैरियर में आने के लिए कहा. जब पुलिस ने गायों को गौशाला को सौंपा तब सभी वहां मौजूद थे. बाद में, यादव और परमजीत सिंह भी सीएचसी पहुंच गए, यह बात डॉ हसन अली खान ने बताई.

इसका मतलब है कि कम से कम 4 बजे तक, खान की हत्या के आरोपी न केवल स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे, बल्कि पुलिस के साथ मिलकर काम भी कर रहे थे. यहां तक कि अपने आखिरी घंटों में, जब खान दर्द और पीड़ा में था, उसपे हमला करने वाले पुलिस के साथ तालमेल बिठाकर काम कर रहे थे- आत्मविश्वास से भरे हुए और अपने “कर्तव्यों” को पूरा करते हुए.

imageby :

पुलिस जीप में रकबर खान

सुबह, खान की मौत के कुछ ही घंटों बाद यादव और परमजीत सिंह दोनों को गिरफ्तार किया गया था. 22 जुलाई को, एक अन्य आरोपी, नरेश राजपूत को पुलिस ने गिरफ्तार किया. चौथे संदिग्ध, विजय, लालवंडी गांव के निवासी, के छोटे भाई और पिता को पुलिस ने रामगढ़ पुलिस स्टेशन में हिरासत में ले लिया. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 34, 143, 341, 323 और 302 के तहत उन्हें गिरफ्तार किया है. जितने घंटे शर्मा, यादव और परमजीत ने पुलिस के साथ उस रात बिताए, और उनकी गतिविधियां, पुलिस के साथ उनकी निकटता व रामगढ़ पुलिस के कामकाज के तरीके को प्रदर्शित करती हैं. शर्मा ने दावा किया कि पहले भी, उसने “मवेशी तस्करों” के बारे में पुलिस को सूचना दी है, और पुलिस ने इस पर कार्रवाई भी की है.

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रामगढ़ पुलिस ने शर्मा को संदिग्ध तक नहीं बनाया है. अलवर पुलिस अधीक्षक राजेंद्र सिंह ने कहा, “निश्चित रूप से, हम इस मामले में नवल किशोर शर्मा की भूमिका की जांच करेंगे.” जब उनसे पूछा गया कि पुलिस इस तथ्य को कैसे नजरअंदाज कर सकती है कि वह केवल सूचना देने वाला पहला व्यक्ति नहीं था, बल्कि वह स्वयं एक गौरक्षा समूह का अध्यक्ष भी है, सिंह ने कहा, “अगर हम उसके खिलाफ एक भी सुराग प्राप्त करेंगे तो हम नवल किशोर के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. हम अभी यह कहते हैं कि हम इस मामले की निष्पक्ष तरीके से जांच कर रहे हैं.”

शर्मा ने स्वयं इस संवाददाता को बताया कि यादव और परमजीत उसी के निर्देशों पर अपराध स्थल पर रुके रहे, ताकि पुलिस को खान को ढूढ़ने में मुश्किल न हो.

खान के खिलाफ समानांतर जांच:

दिलचस्प बात यह है कि रामगढ़ पुलिस को राजस्थान बोवाइन पशु अधिनियम की धारा 5 और 8 के तहत खान के खिलाफ दिनांक 24 दिसंबर, 2014 को दर्ज एक प्राथमिकी मिली है. एफआईआर (संख्या 355/14) नवगांव पुलिस स्टेशन, हरियाणा जो कि राजस्थान सीमा से कुछ किलोमीटर दूर है, में दर्ज की गई थी.जब राजेंद्र सिंह, एसपी अलवर से पूछा गया कि पुलिस खान और असलम के खिलाफ समानांतर जांच शुरू करने की योजना क्यों बना रही है, तो उन्होंने कहा, “कौन कह रहा है कि ऐसी जांच की योजना बनाई जा रही है?” जब हमने उन्हें ब्यौरा दिया, तो उन्होंने जवाब दिया, “यह जांच की एक मानक प्रक्रिया है. हम गवाहों के लिए भी ऐसी चीजें रिकॉर्ड करते हैं.”

उन्होंने इस बात पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या पुलिस आधिकारिक तौर पर खान और उनके सहयोगी असलम के खिलाफ समानांतर प्राथमिकी दर्ज करेगी.

खान की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई, विश्व हिंदू परिषद का दावा:

43 वर्षीय रामगढ़ निवासी नवल किशोर शर्मा ने सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह को घटना के बारे में जानकारी दी थी. उसने न्यूज़लॉन्ड्री को 20 और 21 जुलाई की रात किए फोन कॉल के रिकॉर्ड दिखाए. उसने दावा किया कि वह, यादव, परमजीत और पुलिस सबने खान को लालवंडी से लाया.

imageby :

“रकबर पुलिस जीप में जिंदा था. 1.30 बजे के करीब, हम (सबके साथ) गोविंदगढ़ मोड़ के पास चाय पीने के लिए रूके. हम लोग धर्मेन्द्र और परमजीत का इंतजार कर रहे थे. वे गायों को लेकर टेम्पो से आ रहे थे,” शर्मा ने कहा.

उसने कहा कि सिंह गायों की जानकारी क्रॉसिंग पर ही लिखना चाहता था क्योंकि गौशाला पर रोशनी नहीं होती. शर्मा ने पुलिस पर संगीन आरोप लगाए हैं. “पुलिस जीप का ड्राइवर रकबर को गालियां दे रहा था और पीट रहा था. वे रकबर को पुलिस स्टेशन लाए और अंदर भी जमकर पीटा,” उसने कहा. शर्मा ने कहा, “रकबर कॉन्सटेबल से कह रहा था, वह उसके पैर पर न मारे. इसके बावजूद, वो उसे मारते रहे.”

इस बात को सब इंस्पेक्टर मोहन सिंह और आईओ सुभाष चंद्र शर्मा ने सिरे से खारिज कर दिया. उसने कहा कि वे 3 बजे सुधा सागर गौशाला के लिए निकले और गायों को 3.30 बजे सुबह छोड़ दिया. “जब हम 4 बजे सुबह स्टेशन लौटे, रकबर होश में नहीं था. वह मृत था,” शर्मा ने कहा. “अगर इन बच्चों ने रकबर की हत्या की होती तो वे वहां खड़े क्यों रहते और पुलिस की सहायता क्यों करते. सच तो यह है कि वे रकबर के मृत शरीर के पास कम से कम घंटे भर खड़े रहे और पुलिसवाले आपस में इस बात पर माथापच्ची करते रहे कि इस केस को संभालें कैसे.”

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like