हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी कोटे में सब कैटेगराइजेशन (उप-वर्गीकरण) के फैसले के विरोध में भारत बंद और केंद्र सरकार द्वारा यूपीएससी में लेटरल एंट्री के फैसले को वापस लेने के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई.
इसके अलावा महाराष्ट्र के बदलापुर में नाबालिग बच्चियों से यौन शोषण का मामला, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्रियों के यौन उत्पीड़न को लेकर गठित जस्टिस हेमा कमिटी की रिपोर्ट, कोलकाता रेप और मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र को महिला-सुरक्षा हेतू टास्क फ़ोर्स गठन का निर्देश, और एडीआर द्वारा जारी रिपोर्ट में वर्तमान भारतीय संसद एवं विधानसभाओं में 151 सांसदों /विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में 16 बलात्कार के मामले आदि जैसी खबरें प्रमुख रहीं.
वहीं, जम्मू एवं कश्मीर में 10 सालों बाद विधानसभा चुनाव की घोषणा, एमपॉक्स वायरस के संभावित खतरे को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा भारतीय अस्पतालों और हवाई अड्डों के लिए जारी दिशा- निर्देश, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्वी यूरोप के दौरे पर जाना एवं बांग्लादेश की राजनैतिक स्थितियों में सुधार के साथ-साथ शेख हसीना के खिलाफ दर्ज 30 आपराधिक मामलों में से 27 हत्या के मामले जैसी खबरों ने भी लोगों का ध्यान खींचा.
इस हफ्ते चर्चा में बतौर मेहमान दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर और स्तम्भकार (कॉलमनिस्ट) अदिति नारायण पासवान, जेएनयू के प्रोफेसर हरीश वानखेड़े और न्यूज़लॉन्ड्री टीम से स्तंभकार आनंद वर्धन और प्रबंध संपादक मनीषा पांडे शामिल हुईं. वहीं, चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के प्रबंध संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी, एसटी कोटे में सब कैटेगराइजेशन (उप-वर्गीकरण) के फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है, आखिर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे तकनीकी कारण क्या हैं?”
इस सवाल के जवाब में आनंद कहते हैं, “संविधान में आरक्षण का प्रावधान सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर किया गया है. आप देखेंगे कि पिछले कुछ सालों में, कई राज्यों में एक नया सामाजिक वर्ग तैयार हुआ है. जैसे 2005 के बाद बिहार में नीतिश कुमार महादलित वर्ग की एक नई अवधारणा के साथ सामने आते हैं. इससे एक नया राजनीतिक और सामाजिक वर्ग तैयार हुआ, जिसकी अपनी अलग जरूरतें और मांग थी .उसी प्रकार उत्तर-प्रदेश में दलित समुदाय के अंदर जाटव और गैर-जाटव का एक अलगाव दिखता है. इस प्रकार कालांतर में आए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को लिया है.”
सुनिए पूरी चर्चा-
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