पेरिस से भारत लौटी विनेश बोलीं- हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई, सन्यास पर संशय

विनेश को देखने के लिए कोई राजस्थान से पहुंचा तो कोई दिल्ली से. सबकी एक ही चाहत थी कि ‘चैंपियन’ को देखना है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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शनिवार 17 अगस्त, रात के 12 बजे, हरियाणा के चरखी दादरी से 14 किलोमीटर दूर बलाली गांव.  पहलवानों के गांव से मशहूर यहां लोग 8-9 बजे तक सो जाते हैं क्योंकि सुबह-सुबह पशुओं के लिए चारा लाना होता है, खेत में काम करने जाना होता है लेकिन आज लोग जगे हुए हुए हैं. महिलाएं और पुरुष सड़क किनारे बैठकर इंतज़ार कर रहे हैं. छोटे बच्चे गांव के ही मंदिर के पास बने टेंट में चहलकदमी करते नजर आ रहे हैं. 

गांव का महौल ऐसा है जैसे कोई उत्सव हो. हमने चलते-चलते एक बुजुर्ग महिला से से पूछा कब तक इंतज़ार करेंगे तो वो उत्साह से कहती हैं, ‘‘जब तक म्हारी छोरी नी आ जाती. रात भर जागैंगे.’’

यह छोरी, रेसलर विनेश फौगाट है. जिसने पेरिस ओलिंपिक में जापानी खिलाड़ी यूई सुसाकी को हराया. सुसाकी इससे पहले एक भी मुकाबले में नहीं हारी थीं. सुसाकी को हराने के साथ ही फौगाट ने 50 किलोग्राम कैटेगरी के फाइनल में जगह बना ली थी. सिल्वर तो तय हो चुका था. जिस तरह वो खेल रही थीं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता था कि गोल्ड उनका है. 

विनेश के लिए झज्जर से परमजीत मलिक 30 किलो घी लेकर आए. वह जाने-माने फिजियो हैं. दिल्ली में जब विनेश और बाकी पहलवान प्रदर्शन करने आए थे तो सबसे पहले इन्होंने ही आवाज़ उठाई थी. 

मलिक कहते हैं, ‘‘विनेश अपने शानदार फॉर्म में थी. दुनिया की सबसे ताकतवर खिलाड़ी को हरा चुकी थी. जिस अमेरिकन खिलाड़ी से इसका मुकाबला था, उसे तो कुछ महीने पहले ही हराया था. ऐसे में यह कहना कि गोल्ड हमारा था, यह गलत नहीं होगा.’’

हमने जिनसे भी बात की उनका कहना था कि विनेश के साथ साजिश हुई है. यह बात आसपास के लोगों के मन में बैठ गई है. मलिक, जिनकी पत्नी पहलवान है. खुद वो भी योगेश्वर दत्त, गीता-बबीता और बजरंग पूनिया के साथ काम कर चुके हैं. उनसे हमने पूछा तो वो कहते हैं, ‘‘वजन ज़्यादा होने पर अयोग्‍य करार दिए जाने का नियम है. विनेश का तो 100 ग्राम वजन ज़्यादा था. किसी का 10 ग्राम भी ज़्यादा हो तो नियम के मुताबिक, उन्हें खेलने से रोका जा सकता है. लेकिन यह जिम्मेदारी उसके साथ गए डॉक्टर, फेडरेशन के अन्य सदस्यों की ही थी कि वो खिलाड़ी पर नजर रखे. उसकी डाइट का ख्याल रखे.’’

सुबह के 11 बजे के करीब विनेश दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर पहुंचीं. वहां कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा, ओलिंपिक खिलाड़ी बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक समेत सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे. यहां से वो एक खुली जीप की छत पर बैठकर अपने गांव के लिए निकली जहां रास्ते में कई गांवों में उनका स्वागत हुआ. उन्हें सम्मानित किया गया. इस दौरान वो कभी रोती तो कभी हंसती नजर आईं. उन्होंने कहा, ‘हमारे अपनों ने हमें गोल्ड मेडल से ज्यादा से नवाजा है. इस इज्जत, मान-सम्मान के सामने हज़ारों गोल्ड मेडल फीके हैं.’’

विनेश को शाम पांच बजे अपने गांव पहुंचना था लेकिन अलग-अलग गांवों में कार्यक्रम करते-करते रात के 12:20 मिनट के करीब वो अपने गांव पहुंची. रास्ते में मौजूद महिलाओं ने फूल बरसाए और बड़ों ने आशीर्वाद दिया. 

अरावली पहाड़ी के पास स्थित एक पुराने मंदिर के प्रांगण में सम्मान समारोह रखा गया था. यहां पहुंचने के बाद सबसे पहले वो मंदिर गई. वहां माथा टेकने के बाद मंच पर पहुंची. जहां आसपास के कई गांवों के सरपंच, बड़े नेता और महावीर फौगाट मौजूद थे. सबसे पहले वहां विनेश को सम्मानित किया गया. कोई पैसे दे रहा था तो कोई स्मृति चिन्ह तो कोई रुपये. यह सिलसिला देर रात दो बजे तक चला. इस दौरान थकी-हारी विनेश मंच पर ही सो गईं. 

सम्मान समरोह के दौरान हमने सुना कि स्थानीय कलाकारों ने विनेश को लेकर गाने भी बना दिए, जिसमें वो उनकी तुलना झांसी की रानी से करते हुए उन्हें साजिश का शिकार बताते हैं. यहां आए ज़्यादातर लोगों को लगता है कि विनेश साजिश का शिकार हुई है. 

इस दौरान एक चीज़ हमें और देखने को मिली. चरखी-दादरी शहर से लेकर उनके गांव तक स्वागत में कई होर्डिंग्स लगे हुए थे. जिसमें एक भी बीजेपी नेता का नहीं था. ना ही उनके गांव में कोई बीजेपी नेता पहुंचा. यहां तक कि उनकी अपनी बहन और 2019 में चरखी दादरी से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी बबीता फौगाट भी नहीं पहुंची थी. 

दीपेंद्र हुड्डा का एयरपोर्ट जाना क्या आने वाले समय में राज्य में होने वाले चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए था? इस पर गांव के एक सदस्य संजीव सांगवान कहते हैं, ‘‘एक बात बताओ, यहां बीजेपी नेताओं को आने से किसी ने रोका है? नहीं न? इलाके की बेटी नाम करके आई है. जिसको ख़ुशी होगी वो आएगा न. विजेंद्र सिंह बीजेपी में है, वो गया था उसे किसी ने रोका? इनकी लड़ाई बृजभूषण सिंह और फेडरेशन के कामों को लेकर है. बीजेपी ने इसे अपनी लड़ाई बना लिया है तो क्या कर सकते हैं.’’

संन्यास पर संशय   

ओलिंपिक में अयोग्य ठहराए जाने के बाद विनेश फौगाट ने सोशल मीडिया पर कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी थी. उन्होंने तब लिखा था, ‘‘मां कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई. माफ़ करना, आपका सपना मेरी हिम्मत सब टूट चुके, इससे ज़्यादा ताक़त नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी माफी.’’

हालांकि, विनेश के गांव में मिली महिलाओं ने कहा कि उसको हमलोग बैठाकर समझायेंगे कि अभी और चार साल खेल ले. वो हमारी चैंपियन है लेकिन उसे हमारे लिए ओलिंपिक जीतना है. 

देर रात मीडिया को संबोधित करते हुए विनेश ने भी ऐसा कुछ कहा जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में वो संन्यास को लेकर फिर से फैसला कर सकती हैं.  विनेश ने कहा, ‘‘बहुत गहरा धक्का ओलिंपिक मेडल का है. मुझे लगता है कि इससे उबरने में समय लगता है. लेकिन देशवासियों का, परिवार का जो प्यार मिला है उससे मुझे हिम्मत मिलेगी. और शायद जिस कुश्ती को मैं छोड़ना चाहती हूं, मैं अभी कुछ बोल नहीं सकती कि मैंने कुश्ती छोड़ दी हैं या मैं करूंगी.’’

विनेश ने आगे कहा, ‘‘जिंदगी की लड़ाई बहुत लंबी है. हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. एक छोटा सा हिस्सा मैं अभी पार करके आई हूं लेकिन मुझे लगता है कि वो भी अधूरा रह गया. आप जानते हैं कि डेढ़ साल से हम एक लड़ाई लड़ रहे हैं. वो जारी रहेगी. उम्मीद करते हैं कि सच सामने आएगा.’’

रात के तीन बजते ही लोग अपने घरों के लिए लौट गए. विनेश के पति सोमवीर राठी यहां आए मेहमानों को खिलाने में व्यस्त थे. हमसे बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘100 ग्राम वजन से मैच से बाहर होना एक दुःखद सपने जैसा था. उस पर बात करना मेरे लिए मुश्किल है. कुछ दिन रुकिए हम हर सवाल पर बात करेंगे.’’

देखिए विनेश के गांव से हमारी ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट. 

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