हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
इस हफ्ते अमेरिकी शोध कंपनी हिंडनबर्ग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सेबी चेयरपर्सन माधवी बुच और उनके पति धवल बुच पर अडानी की ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी का खुलासा, पश्चिम बंगाल के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में 30 वर्षीय महिला डॉक्टर से बलात्कार और हत्या के बाद देश भर में रेजिडेंट डॉक्टर्स की हड़ताल और 14 अगस्त की रात आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स के विरोध प्रदर्शन के दौरान बड़ी संख्या में गुंडों की घुसपैठ जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई.
इसके अलावा इस हफ्ते, जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद आसाराम बापू का 7 दिन की पैरोल पर बाहर आना, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को 21 दिन का फरलो दिया जाना, बांग्लादेश में जारी सियासी हलचल के बीच मोहम्मद यूनुस द्वारा वहां के ढाकेश्वरी मंदिर की यात्रा और अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने का वादा, बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश उबैदुल हसन का पद से हटना और भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा कई मीडिया संस्थानों के विरोध के बाद ब्रॉडकास्टिंग बिल के मसौदे को वापस लेने जैसी खबरें प्रमुख रहीं.
इसके अलावा विपक्ष के विरोध के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा उत्तराखंड के ऊपरी गंगा कैनाल पर 111 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा मार्ग के लिए करोड़ो पेड़ों की अवैध कटाई की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन, पर्यावरण अनुसंधान संस्था टॉक्सिक लिंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के हर ब्रांड की चीनी और नमक में माइक्रो प्लास्टिक मौजूद, भारतीय पहलवान विनेश फोगाट की पेरिस ओलंपिक में रजत पदक की अपील ख़ारिज, गाजा पर इजरायल द्वारा किए गए हमले में 100 आम नागरिकों की मौत और चुनाव आयोग द्वारा हरियाणा और जम्मू एवं कश्मीर के लिए विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान करने जैसी ख़बरों ने भी लोगों का ध्यान खींचा.
इस हफ्ते चर्चा में बतौर मेहमान वरिष्ठ संपादक एवं पत्रकार माधवन नारायणन, एनडीटीवी की सीनियर पत्रकार मोनोदीपा बनर्जी, प्रणब मंडल और न्यूज़लान्ड्री टीम से वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी शामिल हुए. वहीं, चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के प्रबंध संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, “कोलकाता के इस जघन्य कृत्य में जिस प्रकार से अस्पताल पर हमला किया गया है, उससे कई सवाल खड़े होते हैं. क्या इसे केवल लॉ एंड आर्डर की विफलता के तौर पर देखा जाना चाहिए या इसमें कुछ राजनीतिक शक्तियां काम कर रही हैं, जिसके कारण पूरी सच्चाई सामने नहीं आ पा रही है? पूरे देश में डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं, उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि पुलिस और जांच व्यवस्था से न्याय नहीं मिल पा रहा है?”
इस सवाल के जवाब में मोनोदीपा कहती हैं, “पूरे मामले को जिस असंवेदनशीलता के साथ हैंडल करने का प्रयास किया गया है, अगर टाइमलाइन को देखें तो पहले पीड़ित के अभिभावक को कहा गया कि ये आत्महत्या है, फिर उसके बाद कहा जाता है कि उनकी हत्या हुई है. हाईकोर्ट ने भी इस केस को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर्स पर जिस तरीके से भीड़ ने हमला किया और पुलिस नदारद रही. इन सारी घटनाओं से ये तो स्पष्ट है कि कुछ छिपाया जा रहा है.”
सुनिए पूरी चर्चा -
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