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एनएल चर्चा 329: गठबंधन की बैसाखियों पर टिका बजट और सरकारी कर्मचारी बनेंगे स्वयंसेवक

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं. 

     

इस हफ्ते केंद्र सरकार द्वारा पेश बजट और सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल होने पर मिली छूट आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई. 

हफ्ते की प्रमुख खबरों में दिल्ली के पटेल नगर में एक छात्र की करंट लगने से दर्दनाक मौत, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दुकानों के बाहर पहचान संबंधी सूचना लगाने की अनिवार्यता पर रोक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नीट परीक्षा रद्द करने संबंधी मांग को खारिज करना और मध्य प्रदेश सरकार द्वरा गायों के हित और धार्मिक स्थलों के लिए दी गई एक बड़ी राशि का हिस्सा अनुसूचित जाति/जनजाति के फंड से दिया जाना आदि शामिल रहीं. 

इसके अलावा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक घोटाले में घसीटने के चलते ईडी अधिकारी खिलाफ एफआईआर दर्ज, जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति पद की रेस से हटे, बीजेपी नेता द्वारा ध्रुव राठी पर एफआईआर और दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्रकार धन्या राजेंद्रन के खिलाफ आपत्तिजनक वीडियो हटाने के दिए आदेश आदि ख़बरों ने भी लोगों का ध्यान खींचा. 

इस हफ्ते की चर्चा में बतौर मेहमान जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर अरुण कुमार और सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के प्रोफ़ेसर डॉक्टर अनिल कुमार रॉय शामिल हुआ. इसके अलाव न्यूज़लॉन्ड्री टीम से शार्दूल कात्यायन और वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने हिस्सा लियाा. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के प्रबंध संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, “90 के सुधारों के बाद से लगभग हर क्षेत्र में रिफॉर्म की बात चलती थी और काफी बड़ी स्कीम देखने को मिलती थी लेकिन इस बजट में कोई बड़ा रिफॉर्म देखने को नहीं मिला, ऐसा कोई घोषणा भी नहीं हुई, क्या ये गठबंधन की सरकार में जाने की मजबूरी हो गई या इसमें कुछ ऐसी घोषणाएं हैं, जिसे हम नहीं पढ़ पा रहे हैं?”

इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “रिफॉर्म का मतलब क्या है, ये हमें समझना पड़ेगा. रिफॉर्म का मतलब ये है कि हमारी नीतियों की जो दिशा है, वो किस प्रकार से बदलेंगी ताकि आम जनता का फायदा हो. लेकिन हमारी सरकार ने  जो नीतियां अपनाई हैं, वो एकतरफा हैं, वो कॉरपोरेट और संगठित क्षेत्र के हित में हैं. जबकि 94% लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. उनको इन नीतियों से नुकसान पहुंच रहा है. जैसा कि हमने नोटबंदी और जीएसटी के बाद देखा भी.”

सुनिए पूरी चर्चा -

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