लाखों साल पहले पूर्वी अफ्रीका में पड़े भयानक सूखे ने हमारे पूर्वजों को जलीय इलाकों में पलायन के लिए बाध्य कर दिया था. तभी से मनुष्य पानी के पीछे भाग रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, “हैरानी की बात है कि बारिश अथवा बाढ़ (वेट शॉक) के मुकाबले सूखे (ड्राई शॉक) के कारण पलायन पर पांच गुना असर पड़ता है. बार-बार सूखे के झटकों के कारण स्थानीय लोग खुद को अनुकूलित नहीं कर पाते.” पानी की कमी से उठने वाली पलायन की लहर विकासशील और गरीब देशों में अधिक प्रबल रही है.
पलायन के विभिन्न कारण हैं, जैसे बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश, उच्च शिक्षा की चाह, संघर्ष और भीषण आपदाएं. बहुत से देशों में सूखा या पानी की कमी से होने वाले पलायन को शिक्षा के लिए होने वाले पलायन के बाद रखा गया है. जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को और बढ़ा दिया है. पिछले तीन दशकों में दुनिया की औसतन 25 फीसदी आबादी को हर साल असामान्य बारिश का सामना करना पड़ा. इस तरह के झटकों का लोगों पर बड़ा आर्थिक प्रभाव पड़ता है.
जलवायु परिवर्तन को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में सूखा बढ़ेगा जिससे पलायन और तेजी से बढ़ सकता है. विश्व बैंक की रिपोर्ट में पाया गया है कि किसी क्षेत्र में सबसे गरीब बारिश का दंश झेलने को अभिशप्त होंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि 80 प्रतिशत निर्धनतम आबादी पर्याप्त पानी नहीं होने के बावजूद पलायन नहीं कर पाएगी क्योंकि आर्थिक तंगी आड़े आएगी.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
जलवायु संकट: "मौसम में आए बदलाव ने करीब 6 अरब लोगों को जोखिम में डाला"
जल संकट के कारण लोग पलायन करने को मजबूर