लोकसभा चुनाव: महिला पहलवानों के आंदोलन का हरियाणा में क्या है असर? 

हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान होना है. विपक्षी दल महिला पहलवानों के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को घेर रहे हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
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हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान होना है. प्रचार अपने आखिरी चरण में है. राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. विपक्षी दल महिला पहलवानों के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को घेर रहे हैं. 

इस बीच जनवरी, 2023 की उस सुबह की भी चर्चा हो रही है जब अंतराष्ट्रीय पदक विजेता पहलवान साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन पर बैठ गए थे. तब महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के तत्कालीन प्रमुख और बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह और कुश्ती महासंघ के अतिरिक्त सचिव विनोद तोमर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.   

महिला पहलवानों ने सिंह को पद से हटाने की मांग की. इसकी शिकायत भी उन्होंने दिल्ली पुलिस में दी लेकिन एफआईआर कराने के लिए इन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सिंह पर दो एफआईआर दर्ज हुईं. पहली एक नाबालिग पहलवान की ओर से की गई यौन उत्पीड़न की शिकायत पर पॉस्को अधिनियम के तहत और दूसरी अन्य महिला पहलवानों द्वारा दायर शिकायत से संबंधित थी.

आगे चलकर नाबालिग पहलवान ने अपने आरोप वापस ले लिए थे. जिसके बाद इस मामले में सिंह को राहत मिल गई. लेकिन अन्य महिला पहलवानों की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने जांच की. अब इस मामले में दिल्ली की कोर्ट ने सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न, धमकी और महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप तय किए. हालांकि सिंह खुद को अभी भी बेगुनाह बताकर केस लड़ने की बात कर रहे हैं. 

इन सब के बीच वो लगातार विपक्षी दलों के निशाने पर रहे हैं. लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ने लंबे समय तक कैसरगंज  लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार नहीं तय किया. सिंह यहीं से सांसद हैं. अनुमान लगाया जा रहा था कि बीजेपी उनका टिकट काट देगी. बीजेने ने बृजभूषण का टिकट तो काटा लेकिन किसी और को नहीं उनके ही बेटे करण भूषण को यहां से टिकट दिया.  

जिसके बाद प्रदर्शन करने वाले पहलवानों ने सवाल उठाये. बजरंग पूनिया ने तब एक्स पर लिखा, ‘‘बीजेपी अपने आपको दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी मानती है पर अपने लाखों कार्यकर्ताओं में से बृजभूषण के बेटे को टिकट दिया, वह भी जब प्रजव्वल रेवन्ना के मामले पर बीजेपी घिरी हुई है. पंजाब हरियाणा के आंदोलनों में एक नारा यहां के लोग लगाते हैं, “सरकारों से ना आस करो, अपनी रखवाली आप करो.” यह देश का दुर्भाग्य है कि मेडल जीतने वाली बेटियां सड़कों पर घसीटी जाएंगी और उनका यौन शोषण करने वाले के बेटे को टिकट देकर सम्मानित किया जाएगा.’’

ऐसे ही अन्य पहलवानों ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया. पहले से बृजभूषण के मामले में बीजेपी को घेर रही विपक्षी दलों ने सिंह के बेटे को टिकट देने पर सवाल उठाए. 

इस आंदोलन को जो महिला पहलवान नेतृत्व कर रही थीं वो हरियाणा से हैं. हरियाणा में लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियां इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी पर हमला कर रही है. 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रचार करने आए तो उन्होंने कहा,  ‘‘हमारी पहलवान बेटियों से इन्होंने कितनी बदतमीजी की थी. देखा आप लोगों ने? घसीट-घसीट कर. और जिस आदमी ने बेटियों के साथ बदतमीजी करी. जिसने उनके सम्मान पर हाथ डाला. उसके बेटे को टिकट दे दिया. एक तरह से सारे हरियाणा के लोगों को ये अंगूठा दिखा रहे हैं. जो करना है कर लो. इस बार कर के दिखाना तुम लोग. जिन लोगों ने हमारी पहलवान बेटियों की इज्जत पर हाथ डाली इस बार बटन दबाकर के उन्हें ऐसा सबक सिखाना कि दोबारा हमारी बेटियों की तरफ आंखें उठाकर न देखे’’

कांग्रेस भी इस मुद्दे को उठा रही है. लेकिन क्या हरियाणा में यह कोई चुनावी मुद्दा है. हरियाणा के चरखी दादरी, रोहतक और कुरुक्षेत्र का दौरा करके हमने ये जानने की कोशिश की. 

विनेश, चरखी दादरी के बलाली की रहने वाली हैं. गीता, बबिता और विनेश समेत अन्य पहलवानों की जीत के बाद यहां हरियाणा सरकार ने पहलवानों की ट्रेनिंग के लिए इनडोर स्टेडियम का निर्माण किया है. जिसमें कोई भी सरकारी सुविधा नहीं. यहां तक कि बिजली का कनेक्शन तक नहीं जोड़ा गया है. जिस वजह से 44 डिग्री तापमान में बिना पंखे के बच्चे यहां प्रैक्टिस करते नजर आए.

यहां तक़रीबन 25 बच्चे कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहे थे. इनके कोच फोगाट परिवार के ही नवदीप हैं. नवदीप बताते हैं, ‘‘महिला पहलवानों के आंदोलन का असर तो यहां साफ दिख रहा है. उन्होंने ज़रूरी मुद्दे उठाये थे लेकिन उन्हें सुना नहीं गया. दिल्ली में उन्हें खींच-खींचकर पुलिस ने मारा था. वह तस्वीरें हम भूले नहीं हैं और अब बृजभूषण के बेटे को टिकट दे दिया. जिसके बाद से लोग बीजेपी से बेहद खफा हैं.’’ 

नवदीप हमें एक और चीज बताते हैं कि इस आंदोलन के बाद से हरियाणा में लोगों ने अपनी बेटियों को पहलवानी करने भेजना कम कर दिया. नवदीप कहते हैं, ‘‘ये लड़कियां ओलिंपिक समेत कई बड़े मेडल जीत चुकी हैं. जब इनके साथ न्याय नहीं हुआ तो लोगों के मन में डर बैठ गया. जिसके बाद से लड़कियां कम हुई हैं.’’

यहीं हमें मनीष पहलवान मिले जो अपनी छोटी बेटी और बेटे को लेकर आए थे. जब हमने उनसे लड़कियों द्वारा पहलवानी छोड़ने को लेकर सवाल किया तो वो कहते हैं कि कमी तो आई है. क्या इस चुनाव में यह कोई मुद्दा है? इस सवाल पर वह कहते हैं, ‘‘चुनाव पर तो असर तो पड़ेगा ही क्योंकि उनकी लड़ाई सच्ची लड़ाई थी.’’

एक तरफ फोगाट के परिवार के एक सदस्य कह रहे हैं कि आंदोलन का चुनाव पर असर पड़ेगा वहीं दूसरी तरफ बबिता फोगाट बीजेपी के प्रचार में व्यस्त हैं. वो बीजेपी की नेता हैं और 2019 में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं. 

हम बबिता से बात करने उनके घर गए लेकिन उनके परिवार के लोगों ने कहा कि वो इस मुद्दे पर बात नहीं करेंगी. 

रोहतक के सर छोटूराम स्टेडियम. यहीं पर साक्षी मालिक ने ट्रेनिंग ली थी और ओलिंपिक मेडल जीत कर लाई थीं. यहां जब हम पहुंचे तो सैकड़ों लड़कियां कुश्ती की ट्रेनिंग कर रही थीं. जिसमें ओलिंपिक में क़्वालीफाई करने वाली रितिका खेड़ा भी थीं.  

यहां अपने बच्चों को लेकर आए लोगों से हमने बात की. ज़्यादातर ने कहा कि महिलाओं के आंदोलन का चुनाव पर असर तो पड़ेगा लेकिन एक व्यक्ति जो ब्राह्मण बिरादरी से थे, उन्होंने इस पूरे मामले को एक जाति का बताते हुए कहा कि इसका असर उसी खास जाति में है. इनका इशारा जाट समुदाय की तरफ था. हरियाणा की राजनीति कुछ सालों से जाट और गैर-जाट में बंटी हुई है.

महिला पहलवानों का मुद्दा हो या किसान आंदोलन का. बीजेपी के कार्यकर्ता या उससे सहानुभूति रखने वाली जनता इसे जाट समुदाय से जोड़ देती है. लेकिन रोहतक में ही मिले कृष्ण सिंह कहते हैं, ‘‘महिलाओं का सम्मान सिर्फ जाट का मुद्दा थोड़ी है. जब यह लड़कियां मेडल जीतती हैं तो भारत का झंडा वहां लहराया जाता है, ना कि किसी जात का. हमारे लिए यह मुद्दा है. हालांकि, यह सत्य है कि बड़े स्तर पर जनता के बीच यह बात नहीं पहुंच पाई है. जो थोड़ा बहुत जागरूक है वही जानता है इसके बारे में.’’

हालांकि, बीजेपी के कार्यकर्ता नहीं मानते कि महिला पहलवानों का आंदोलन कोई चुनावी मुद्दा है. रोहतक के सुनारिया से बीजेपी के मंडल प्रभारी भूप सिंह कहते हैं, ‘‘कांग्रेस ने महिलाओं को आंदोलन के लिए तैयार किया था. उनकी कोई लड़ाई नहीं थी, बाद में सब चीजें स्पष्ट हो गई थी. यह आंदोलन एक राजनीतिक स्टंट था. पूरे हरियाणा में इसका कोई जिक्र ही नहीं है. ’’

दूसरे बीजेपी कार्यकर्ता भी इस आंदोलन को कांग्रेस की चाल बताते हैं.

वहीं, इसको लेकर पूर्व भारतीय वॉलीबॉल खिलाड़ी और भीम पुरस्कार पाने वाली पहली महिला खिलाड़ी जगमति सांगवान, जो कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, बताती हैं,  ‘‘हरियाणा के चुनाव के अंदर महिलाओं का सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. बीजेपी ने लगातार महिलाओं को यौन शोषण करने वालों को संरक्षण दिया है और न्याय की आवाज उठाने वाली लड़कियां हों या उन्हें समर्थन देने वाले जो लोग हैं, उनका मनोबल तोड़ा है. जिस कारण अभी भी वो गांवों में वोट मांगने जा रहे हैं तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है.’’

जानकारों की मानें तो अगर हरियाणा में महिलाएं राजनीति में ज़्यादा से ज्यादा सक्रिय होती तो उनके मुद्दे मज़बूती से उठाये जाते. राजनीति में महिलाओं की अनुपस्थिति ने हरियाणा को हाशिये पर डाला हुआ है.-

इस चुनाव की बात करें तो दोनों राष्ट्रीय दल, बीजेपी और कांग्रेस ने 10 में से सिर्फ एक सीट पर महिला उम्मीदवार को टिकट दी है. बीजेपी ने अंबाला से पूर्व केंद्रीय मंत्री रतन लाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को उतारा है. रतनलाल कटारिया 2014 और 2019 में यहां से चुनाव जीते थे. केंद्र सरकार में मंत्री थे. 2023 में उनका निधन हो गया था.

वहीं, कांग्रेस ने कुमारी शैलजा को सिरसा से चुनाव मैदान में उतारा है. वो चार बार सांसद रह चुकी हैं. इनके पिता भी सांसद थे. 

हरियाणा की स्थापना 1966 में हुई. तब से अब तक यहां से महज छह महिलाएं ही लोकसभा में पहुंच पाई हैं. चंद्रावती, सुधा यादव, कैलाशो सैनी, कुमारी शैलजा, सुनीता दुग्गल, श्रुति चौधरी. शैलजा चार बार और कैलाशो सैनी दो बार सांसद रह चुकी हैं.

अगर 2024 लोकसभा चुनाव की बात करें तो दस लोकसभा सीट पर इस बार कुल 223 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इसमें से सिर्फ 16 महिला उम्मीदवार हैं. इन 16 में से 8 पार्टियों से जुड़ी हुई हैं और बाकी निर्दलीय हैं. 

अगर लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से बात करें तो अंबाला से कुल 14 उम्मीदवार हैं, जिसमे से दो महिलाऐं हैं. बीजेपी से बंतो कटारिया और जेजेपी से किरण पूनिया. भिवानी-महेंद्रगढ़ से 17 उम्मीदवार हैं, उसमें से 2 निर्दलीय महिला हैं. फरीदाबाद से 24 उम्मीदवार हैं, उसमें से 2 महिला हैं. एक लोक जनशक्ति पार्टी से और दूसरी पीपल्स पार्टी ऑफ़ इंडिया (डेमोक्रेटिक) से. वहीं, गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से 23 उम्मीदवार हैं, उसमें से एक महिला उम्मीदवार हैं. जो राइट टू रिकॉल पार्टी से जुडी हैं. 

हिसार से 28 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें से तीन महिलाएं हैं. जेजेपी से नैना चौटाला मैदान में हैं, जो पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की मां हैं. वहीं, यहां से इनेलो की तरफ से चौटाला परिवार की ही सुनैना चौटाला उम्मीदवार हैं. एक निर्दलीय हैं. करनाल से 19 उम्मीदवार मैदान में हैं, उसमें से दो महिला निर्दलीय उम्मीदवार हैं.

कुरक्षेत्र से तो 31 उम्मीदवार मैदान में हैं. जिसमे से 1 महिला हैं. जो निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. ऐसे ही रोहतक में 26 उम्मीदवार हैं, जिसमें से दो महिला हैं. दोनों निर्दलीय हैं. सिरसा जहां से कांग्रेस की कुमारी शैलजा उम्मीदवार हैं. वहां से 19 उम्मीदवार हैं. उसमें से शैलजा अकेले महिला उम्मीदवार हैं. सोनीपत, जहां से 22 उम्मीदवार मैदान में हैं और इसमें से एक भी महिला नहीं है.

देखिए पहलवानों के असर की पड़ताल करती हमारी ये वीडियो रिपोर्ट.

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