इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी में, ईडी-सीबीआई की कार्रवाई से सिर्फ भाजपा के विरोधियों पर ही नहीं बल्कि भाजपा पर भी उल्टा असर पड़ने की संभावना की पड़ताल करते श्रीनिवासन जैन.
प्रधानमंत्री का भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान विवादों के घेरे में आ गया है. एजेंसियों के दुरूपयोग के आरोप लगाए जा रहे है. लोगों में इस धारणा को बल मिला है कि विपक्ष के मत्थे सारा आरोप मढ़ दिया जाता है भले ही खुद भाजपा किसी भी खराब रिकार्ड वाले दल या व्यक्ति को अपने साथ ले लेती है.
2024 के लोकसभा चुनावों में इस “वाशिंग मशीन परिघटना” के बारे में मतदाता क्या सोचते हैं यह जानने के लिए श्रीनिवासन जैन की जमीनी पड़ताल.
एक तरफ अरविंद केजरीवाल समेत अपने शीर्ष नेतृत्व के जेल में होने की वजह से अनुपस्थिति के बावजूद आम आदमी पार्टी, भाजपा से टक्कर ले रही है.
पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज कहते हैं, “भाजपा की यह रणनीति थी कि हमारे शीर्ष नेताओं को इस तरह गिरफ्तार किया जाए कि कोई भी आप के चुनावी अभियान के लिए न बचे.”
वह भी तब, जब एक शराब व्यवसायी सह राजनेता आंध्र प्रदेश से एनडीए का प्रत्याशी बनकर चुनाव अभियान चला रहे हैं. और हरियाणा के कुरुक्षेत्र में भाजपा ने व्यवसायी नवीन जिंदल को मैदान में उतारा है. भाजपा कार्यकर्ता पूर्व कांग्रेसी नेता रहे जिंदल पर कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को भूल से गए हैं. वे कहते हैं कि जिंदल कोयले में हीरे की तरह हैं जिनको उनकी सही जगह मिल गई है.
लेकिन क्या मतदाता इन दोहरे मानदंडों को देख पा रहे हैं? क्या “वाशिंग मशीन” का दांव उलट पड़ सकता है?
इन सवालों के जवाब के लिए जनादेश 2024 : दावे बनाम तथ्य की ताजा कड़ी देखिए.
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