वेटलैंड्स दुर्लभ इकोसिस्टम हैं जो हज़ारों जन्तु और वनस्पति प्रजातियों का बसेरा हैं और प्रदूषित पानी को साफ करने का काम करते हैं. इसलिये इन्हें धरती की किडनी कहा जाता है.
वेटलैंड यानी आर्द्रभूमि धरती पर महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र बनाते हैं. इसमें दलदल, समुद्री घास, तालाब या नमभूमि वाली सारी जगहें आती हैं. लेकिन शहरी विकास, कृषि या निर्माण के लिये बड़ी आसानी से इन वेटलैंड्स को खत्म किया जा रहा है.
देश के कई संरक्षित क्षेत्रों में काम कर चुके वैज्ञानिक फय्याज़ अहमद ख़ुदसर कहते हैं, “जब जंगलों पर संकट छाता है और वहां अवैध वृक्ष कटान की ख़बर आती है तो लोगों की आवाज़ उठती है लेकिन अगर वेटलैंड में ऐसी दिक्कत आती है तो हम चुप रह जाते हैं. क्योंकि वेटलैंड के लिये हमारी अडरस्टैंडिंग बन नहीं पाई.”
भारत में आज 7.5 लाख छोटे-बड़े वेटलैंड हैं. करीब सवा दो लाख वेटलैंड ऐसे हैं जिनका क्षेत्रफल 2 हेक्टेयर से अधिक है. इनमें करीब 60,000 वेटलैंड ही संरक्षित वनक्षेत्र में हैं. इस क्षेत्र में काम कर रही अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ वेटलैंड इंटरनेशनल के मुताबिक, भारत में पिछले 30 साल में कोई 40 प्रतिशत वेटलैंड या तो उजड़ गये या उनकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है.
कंज़रवेशन एक्सपर्ट और दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रो वाइस चांसलर रह चुके प्रोफेसर सी आर बाबू कहते हैं, “वेटलैंड को वेस्टलैंड समझा जाता है. कई जगह आर्द्रभूमि की लोगों को पहचान ही नहीं होती वह उसे ख़राब भूमि समझ कर उस पर निर्माण कर देते हैं या कचरे का ढेर खड़ा कर देते हैं जबकि ऐसा करने से हम पूरे एक इकोसिस्टम को तबाह करते हैं.”
फिर भी कुछ जगह वेटलैंड को बचाने और पुनर्जीवित करने की कोशिश हुईं हैं. इनमें से एक दिल्ली विकास प्राधिकरण का यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क है. जिसे पिछले 20 सालों में पुनर्जीवित किया गया है. पूरी दुनिया में विशेष महत्व के वेटलैंड्स को संरक्षित करने के लिये 1970 के दशक में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसे रामसर कन्वेंशन कहा जाता है. आज भारत की 75 वेटलैन्ड्स इस संधि के तहस दुनिया की प्रमुख संरक्षित धरोहर हैं लेकिन कई कारणों से ख़तरा बढ़ता भी जा रहा है.
बाबू कहते हैं कि दिल्ली का जहांगीरपुरी इलाका वेटलैंट की बर्बादी की एक जीती जागती मिसाल है. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के आसपास 2 किलोमीटर के दायरे में कम से कम 10 से 12 वेटलैंड हैं जिन्हें पिछले 6 महीने में पाट दिया गया है. अब अगर आप इस संख्या के आधार पर पूरे देश का हिसाब लगायें तो देश में हज़ारों वेटलैंड हर साल नष्ट किये जा रहे हैं.”
ग्लोबल वॉर्मिंग या जलवायु परिवर्तन के रूप में उसके कुप्रभावों से निपटने में वॉटर बॉडीज़ और वेटलैंड्स काफी मददगार हैं क्योंकि बाढ़ पर काबू पाने के साथ-साथ यह कार्बन को सोखने में अहम रोल अदा करते हैं. ख़ुदसर बताते हैं कि धरती के कुल 1 प्रतिशत हिस्से में वेटलैंड हैं लेकिन कार्बन सोखने में इनका योगदान 20% है.
आभार- इस रिपोर्ट में कुछ वीडियो और तस्वीरों के लिये हम यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में कार्यरत मोहन सिंह का शुक्रिया अदा करते हैं.
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