तीन शहरों की पड़ताल के बाद पता चला कि ओडीओपी के बाद से रोजगार में कमी आई है. फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं और कारीगर मजदूर बन गए हैं.
महाजन हमें आगे बताते हैं, ‘‘अब जब टेंडर निकलता है तो उसमें बताया जाता है कि इतना टर्न ओवर होने पर ही आप टेंडर भर सकते हैं. कभी यह पांच करोड़ होता है तो कभी 10 करोड़. कुछ में तो यह तक लिख देते हैं कि स्टार्टअप वाले हिस्सा नहीं ले सकते हैं. अब यहां सब छोटी कंपनियां हैं. इनका टर्न ओवर 5-10 करोड़ नहीं है. इस कारण वे टेंडर भर ही नहीं पाती हैं. पहले टर्न ओवर की लिमिट नहीं होती थी. ऐसे में सब लोग भर सकते थे. उसमें जो सबसे कम कीमत में जूता तैयार करने की बात करता था. उसे 50 प्रतिशत काम मिलता था. बाकी दूसरों को. अब तो हम हिस्सा ही नहीं ले पाते हैं. दूसरा क्लॉज, मशीन को लेकर किया. वो जिस मशीन से बनाने की बात करते हैं और हम जिस मशीन से बनाते हैं, उसमें क्वालिटी में कोई अंतर नहीं आता है. यह सब क्लॉज सिर्फ हमें रोकने के लिए किया गया.’’
आगरा बूट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुनील गुप्ता एक और हैरान करने वाली जानकारी साझा करते हैं. गुप्ता बताते हैं, ‘‘बड़ी कंपनियां सरकार को ठगती भी हैं. दरअसल जब हम जैसे छोटे कारोबारी टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाते तो बड़ी कंपनियां आपस में तय कर एक जोड़ी जूते की ज्यादा कीमत लगाती हैं. मान लीजिए उन्होंने 1400 रुपए जोड़ी जूते की कीमत लगाई. करते क्या हैं कि वो जूता हमसे 600 रुपए में बनवा लेते हैं. क्योंकि हमारी क्वालिटी और उनकी क्वालिटी में कोई अंतर नहीं होता है. इस तरह वो 800 रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा लेते हैं.’’
ओडीओपी को लेकर गुप्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी सिर्फ उनको मिलती है जिनकी बैंक लिमिट्स हैं. अगर मेरी 50 लाख की लिमिट है तो मुझे उसी अनुपात में ओडीओपी की मदद मिलेगी. हम ओडीओपी की मदद नहीं चाहते. हम चाहते हैं काम. मान लेते हैं कि आज हमको ओडीओपी से 10 लाख रुपए मिल जाते हैं, और काम नहीं है तो ये छह से आठ महीने में खत्म हो जाएगा. फिर हम क्या करेंगे. अगर काम मिलता है तो हम पैसे का इंतजाम कहीं से भी कर सकते हैं. वैसे भी ओडीओपी में लोन के अलावा मिलता ही क्या है.’’
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गगन रमानी आगरा में ओडीओपी का खास असर नहीं मानते हैं. रमानी के मुताबिक, ''ओडीओपी से आगरा के जूता उद्योग पर फायदा नहीं दिखा. सरकार ने घोषणा तो कर दी, लेकिन इसका क्रियान्वयन कैसे होगा, लोगों तक इसका लाभ कैसे पहुंचायेंगे? इसका कोई प्रारूप तैयार नहीं किया गया. कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई. जिस वजह से इसका कोई असर नहीं दिख रहा है."
रामनी कहते हैं, "मैं भाजपा का एक कार्यकर्ता हूं, लेकिन आप व्यापार की बात करेंगे तो मैं कहूंगा आगरा में ओडीओपी में कुछ नहीं है. जहां तक ऋण देने का सवाल है, तो वह एमएसएमई और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत भी मिल जाता है. ऋण से कुछ नहीं होगा. आधारभूत ढांचा तैयार करें, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाएं हो, कुशल मजदूर तैयार करने के लिए ट्रेनिंग आदि सुविधाएं होनी चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है."
रमानी आगे कहते हैं, "सवाल यह है कि ओडीओपी को किस संस्था के तहत रखा जाएगा? एमएसएमई, जिला उद्योग केंद्र या कोई और संस्था? अगर आगरा की ही बात करें तो काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट की यूनिट है वो देखेंगी? इसके बारे में भी कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है. गाइडलाइन नहीं होने की वजह से हमें पता नहीं चलता कि हम किसके पास जाएं? किससे व्यापार की बात करें?"
आगरा में जूता कारोबार बंद होने के सवाल पर रमानी कहते हैं, "हां यह बात सही है कि बहुत सारे छोटे -छोटे कारखाने बंद हुए हैं. जूता उद्योग को नोटबंदी की बड़ी मार पड़ी है. इससे हम उबरे ही थे, जीएसटी लागू कर दी. जब देखो जीएसटी में संशोधन ही होता रहता है. अब जीएसटी 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया है. इन सब की वजह से आगरा का 50 प्रतिशत चमड़ा उद्योग बंद हो गया है."
मुरादाबाद की तरह आगरा में भी लोग ओडीओपी से बदलाव की बात नहीं करते हैं. एक तरफ जहां सरकार रोजगार बढ़ाने की बात करती है. वहीं यहां मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और व्यापारी अपनी फैक्ट्री बंद कर रहे हैं.
अलीगढ़, जहां कारोबार पर लग रहे ताले!
अलीगढ़ के ताले बेहद मशहूर हैं. इसे “तालों का शहर” के नाम से भी जाना जाता है. ओडीओपी योजना के तहत यहां से ताले एवं हार्डवेयर के कारोबार को लिया गया.
उत्तर प्रदेश में चुनाव में प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सपा-बसपा ने अलीगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ताला उद्योग पर ही ताला लगा दिया था. मोदी जी व योगी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने 'एक जिला-एक उत्पाद' योजना के अंतर्गत, अलीगढ़ के ताला उद्योग को पुनः विश्व में नई पहचान दिलाने का काम किया है.’’
पर सच यह नहीं है. अलीगढ़ में तालों के कारोबार में भारी गिरावट आई है. लोग अपना कारोबार बंद करने को मजबूर हैं. न्यूज़लॉन्ड्री यहां के अपर कोट इलाके में पहुंचा. यहां घर-घर में ताले की फैक्ट्री है.
यहां हमारी मुलाकात इकबाल अंसारी से हुई. ताले के व्यापारी अंसारी व्यापर में आई भारी गिरावट की बात करते हैं. अंसारी के मुताबिक इसकी मुख्य वजह कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि और जीएसटी है. वे बताते हैं, ‘‘हमें इसके अलावा कोई काम आता नहीं है और कारोबार का इतना बुरा हाल है कि करने का कोई फायदा नहीं है. ताला बनाने के लिए सरिये का इस्तेमाल होता है. इसकी कीमत पहले 42-43 रुपए किलो थी जो अब बढ़कर 70 रुपए हो गई है. इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल और बिजली की कीमतें भी बढ़ी हैं. वहीं जो ताला हम पहले 32-34 रुपए में बेचते थे अब 40 रुपए में बेच रहे हैं. कच्चे माल और दूसरी चीजों की कीमतें तो बढ़ीं लेकिन उस अनुपात में तालों की कीमत नहीं बढ़ी. ऐसे में कोई कैसे काम करे. ऊपर से जीएसटी 18 प्रतिशत है.’’
अंसारी आगे कहते हैं, ‘‘नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण यहां बहुत सी फैक्ट्रियां बंद हो गईं. आप समझिए कि 20 से 25 प्रतिशत कारखाने बंद हो गए हैं. काम कम होने के कारण जहां हमारे यहां पहले 10 लोग काम करते हैं, अब सिर्फ छह हैं, बाकी को हटाना पड़ा. यह स्थिति हर एक कारखाने की है. चाइना की टक्कर ताले के मामले में अलीगढ़ ने ही दी फिर भी हमें कोई सुनने वाला नहीं है.’’
ओडीओपी को लेकर पूछे गए सवाल पर अंसारी हमसे ही इसका मतलब पूछने लगते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम ज्यादा पढ़े-लिखे तो हैं नहीं. ऐसे में हमें इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिलती है. हम पढ़ लिख नहीं पाए. जैसे तैसे कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं उन्हें इस कारोबार में नहीं लाएंगे.’’
अपर कोट में ही हमारी मुलाकात मोहम्मद जमीर अहमद से हुई. अहमद का फर्नीचर लॉक का कारोबार था. बढ़ती महंगाई और कारोबार में आई कमी के कारण उन्होंने फैक्ट्री बंद कर दी. इन्हें भी ओडीओपी की जानकारी नहीं है. अहमद कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का नाम मैंने पहली बार आपसे सुना है. हमारे यहां तो लोन भी जल्दी नहीं मिल पाता है.’’
अलीगढ़ के ज्वालापुरी में रहने वाले अभिषेक शर्मा भाजपा समर्थक हैं. वे किसी तरह के नुकसान की बात नहीं करते. हमारे पूछने पर की कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और जीएसटी का क्या असर है. वे कहते हैं, ‘‘हां, कच्चे माल की कीमतें बढ़ती रहती हैं तो असर तो होता ही है. अगर मेटल का एक ही रेट हो तो कारोबार करने में परेशानी नहीं होती. लेकिन हर रोज उसमें वृद्धि हो जाती है. ऐसे में आपने आज ऑर्डर लिया और कल कच्चे माल की कीमत बढ़ गई तो नुकसान होता है. वहीं जीएसटी की बात है तो अभी 18 प्रतिशत है. अगर उसे कुछ कम कर दिया जाए तो कारोबार में फायदा होगा.’’
अभिषेक शर्मा को भी ओडीओपी की जानकारी नहीं है.
अपर कोट में एक ताला फैक्ट्री में काम करने वाले अफसार अंसारी बताते हैं, ‘‘काम तो जैसे तैसे चल रहा है. घर वाले महीने में दो हजार रुपए की मांग करते हैं. मजदूरी इतनी कम है कि खर्चा नहीं निकल पाता है. अब ठेकेदार भी कैसे मजदूरी बढ़ाएं जब उसका माल ही नहीं बिकेगा. आमदनी है नहीं और महंगाई रोज बढ़ रही है. हम लोग जितना काम करते हैं, उतना ही पैसा मिलता है. ऐसे में बिजली चली जाए तो काम भी नहीं हो पाता है.’’
अफसर की तरह दूसरे मजदूर वीरेंद्र सैनी भी मजदूरी कम होने और काम की कमी होने की बात कहते हैं. सैनी बताते हैं, ‘‘हर रोज 200 से 300 रुपए की आमदनी होती है. आज सरसों का तेल 200 रुपए लीटर है. हर चीज की कीमत बढ़ रही है. जैसे तैसे परिवार चला पाते हैं. काम कम है तो मजदूरी के लिए लड़ते भी नहीं क्योंकि हमारे जैसे सैकड़ों मजदूर बैठे पड़े हैं.’’
तालानगरी औद्योगिक विकास एसोसिएशन के महामंत्री सुनील दत्ता से न्यूज़लॉन्ड्री ने अलीगढ़ में ताला उधोग और ओडीओपी को लेकर बात की. ताला कारोबारियों के हालात पर बोलते हुए दत्ता कहते हैं, ‘‘पिछले चार-छह महीने से कच्चे माल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. लगभग 40-50 प्रतिशत सभी कच्चे माल की कीमतें बढ़ चुकी हैं, तो इस वजह से कारोबार काफी प्रभावित हुआ है और इसका असर प्रोडक्शन पर भी पड़ा है. ऐसे में हम अपना प्राइस फिक्स ही नहीं कर पा रहे हैं. हर पांचवें-दसवें दिन कीमतों में वृद्धि हो जाती है. दूसरी बात यह है कि जब कच्चे माल की कीमतें इस कदर बढ़ जाती हैं तो तैयार उत्पाद की कीमत भी बढ़ती है. ऐसे में तालों की कीमतें बढ़ जाए तो मार्केट उसे स्वीकार नहीं करता है.’’
कच्चे माल की बढ़ी कीमतों का जिक्र करते हुए दत्ता बताते हैं, ‘‘ताले के निर्माण में 70 प्रतिशत आयरन सीट का इस्तेमाल होता है. एक साल पहले इसकी कीमत 40-45 रुपए थी जो अब बढ़कर 70-75 रुपए के करीब हो गई है. पहले पीतल 380 रुपए किलो थी जो अब बढ़कर 570-580 रुपए हो गई है. एलुमिनियम मिल रही थी 120 रुपए जो अब 180 रुपए किलो मिल रही है. जिंक जिसकी कीमत 350 रुपए के आसपास है जो पहले 240 से 250 रुपए थी. इस तरह से लगातार कीमतों में वृद्धि हुई है.’’
ओडीओपी से फायदे के सवाल पर दत्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का काफी फायदा है. जो छोटे स्टार्टअप हैं. जिन्हें लोन नहीं मिल पाते. इस योजना के तहत उन्हें लोन मिल जाता है. इस योजना का लक्ष्य सिर्फ आर्थिक रूप से मदद करना भर नहीं है. यह आने वाले समय में मार्केटिंग में भी मदद करेंगे. तकनीकी विकास में भी मदद करेंगे.’’
स्थानीय कारोबारियों को इसकी जानकारी नहीं होने के सवाल पर दत्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का प्रचार तीन तरह से हुआ है. एक तो सरकार ने किया है. इसके बाद जिला उद्योग केंद्र है, उसने किया. फिर तीसरा जो एसोसिएशन होती है, उन्होंने किया. ऐसे में इसका प्रचार तो काफी हुआ है. इसमें लोन भी दिए गए हैं. इसकी समीक्षा भी हुई हैं. यह अच्छी योजना है.’’
अलीगढ़ में 6000 हजार रजिस्टर्ड ताला यूनिट हैं. इतनी ही बिना रजिस्टर्ड भी हैं. ये करीब 1.50 से दो लाख लोगों को रोजगार देते हैं. दत्त फैक्ट्री के बंद होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘कोरोना हार्ड टाइम रहा. छोटे उद्योग बंद भी हुए क्योंकि काम हो नहीं रहा था. लेकिन यहां फैक्ट्री का खुलना और बंद होना चलते रहने वाली प्रक्रिया है.’’
सरकार ओडीओपी योजना के तहत हर साल पांच लाख लोगों को रोजगार देने की बात कर रही थी. इस योजना का भाजपा चुनाव में इस्तेमाल कर रही है. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि जमीन पर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. रोजगार में कमी आई है. फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं और कारीगर करने को मजबूर है.