पीड़ित परिवार का कहना है कि हिंदुत्ववादियों ने नाबालिग के अपहरण की कोशिश के इस मामले को सांप्रदायिक रंग दे दिया जबकि ये पूरा मामला सिर्फ “सॉरी बोलने” से खत्म हो सकता था.
उत्तराखंड के पुरोला में हुए जिस तथाकथित लव जिहाद कांड को लेकर देश में पिछले काफी दिनों से हिंदुत्ववादियों और मीडिया ने हल्ला मचा रखा है, वह पूरा मामला कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों, नेताओं और एक पत्रकार की कारस्तानी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि जानबूझकर इस मामले को सांप्रदायिक रंग दिया गया और मुसलमानों को पुरोला से पलायन पर मजबूर किया गया. आगे इस ख़बर में इस पूरे मामले की हम परत दर परत पड़ताल करेंगे.
इस मामले में पीड़िता का परिवार सबसे अहम कड़ी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने परिवारवालों से विस्तार से बात की. परिवारवालों ने बताया कि हिंदुत्ववादी संगठनों ने घटना को ‘लव जिहाद’ और ‘सांप्रदायिक रंग’ दिया. हालांकि, पीड़िता का परिवार ये जरूर कहता है कि नाबालिग लड़की को अगवा करने की कोशिश की गई, जिसके चलते ये मामला पुलिस तक पहुंचा. वे कहते हैं कि इसे लव जिहाद का रंग देने के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों ने उनसे कई बार संपर्क किया था.
परिवार ने यह भी बताया कि जब वह पहली बार शिकायत दर्ज कराने पुलिस चौकी पहुंचे तो वहां पर एक स्थानीय पत्रकार अनिल आसवाल ने घटना को ‘लव जिहाद’ का एंगल देने के लिए खुद ही एक फर्जी शिकायत पत्र तैयार किया. जिसमें केवल उबैद खान को आरोपी बताया गया. जबकि इस घटना में दो लोग शामिल थे. एक हिन्दू जितेंद्र सैनी और दूसरा मुसलमान उबैद खान. अपने शिकायत पत्र में अनिल ने घटना को ‘लव जिहाद’ और ‘देह व्यापार’ से जोड़ दिया. अनिल आसवाल पुरोला में ‘बीबीसी खबर डॉट इन' नाम से वेबसाइट चलाते हैं और पूर्व में एबीवीपी और आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं. पहले पढ़िए पत्रकार द्वारा लिखी गई उस शिकायत में क्या कुछ लिखा था:
"उक्त विपक्षी (उबैद खान) कई दिनों से प्रार्थी की भांजी का पीछा करता आ रहा था और शादी का झांसा देकर फरार करने की फिराक में था. विपक्षी बहुत शातिर किस्म का व्यक्ति है तथा विपक्षी का मकसद नाबालिग लड़की को फरार कर देह व्यापार में झोंकने का है. विपक्षी इतना शातिर है कि विपक्षी ने अपना नाम अंकित बता कर उक्त पीड़ित लड़की को धोखा देता रहा है. यह प्रार्थी की भांजी को बहला-फुसलाकर बहुत बड़ी घटना को अंजाम देना प्रतीत होता तथा विपक्षी को नाबालिग लड़की लव जिहाद का एवं नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर अवैध व्यापार में सम्मिलित करने की साजिश के तहत कठोर कानूनी कार्रवाई तथा तत्काल गिरफ्तार कर आवश्यक धाराओं में वाद दर्ज किया जाना अति आवश्यक है.
विपक्षी का मकसद धार्मिक उन्माद तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का है जिससे समाज में अशांति का माहौल पैदा होने की पूरी आशंका है"
पीड़िता के मामा राकेश (बदला हुआ नाम) ने बताया कि थाने में जब पत्रकार ये शिकायत पत्र लेकर आए तो मैंने इस पर दस्तखत करने से मना कर दिया और साथ ही कड़ा एतराज जताया कि जब ऐसा कोई मामला ही नहीं है तो फिर लव जिहाद का एंगल क्यों दिया जा रहा है?
राकेश को इस बात पर भी ऐतराज था कि इसमें सिर्फ एक आरोपी उबैद खान का ही नाम क्यों है? दूसरे आरोपी जितेंद्र सैनी का नाम क्यों नहीं लिखा गया?
इस सारी घटना के साक्षी पुरोला थाने के एसएचओ खजान सिंह चौहान भी हैं. उन्होंने बताया, “घटना लव जिहाद से संबंधित नहीं थी और शिकायत में ‘लव जिहाद’ लिखा गया था और यह बताया गया कि उबैद खान पीड़िता से अंकित बन कर बात करता था. जबकि यह बात झूठ है. हमने दोनों के कॉल रिकॉर्ड चेक किए हैं. पीड़िता की उवैद खान या जितेंद्र सैनी में से किसी से बात नहीं होती थी.”
पीड़िता के मामा और एसएचओ के एतराज के बाद लव जिहाद वाले शिकायत पत्र को बाद में फाड़ दिया गया. हालांकि, पत्रकार अनिल आसवाल ने ऑन रिकॉर्ड हमसे यह शिकायत पत्र लिखने की बात से इनकार किया. लेकिन उन्होंने यह पत्र अपने मोबाइल में सेव कर रखा था और हम जब उनसे एक हिंदुवादी कार्यकर्ता बनकर मिले तो उन्होंने यह पत्र हमसे साझा किया.
खार चौकी पर हुई घटना के बाद पीड़िता के मामा राकेश ने खुद एक नया शिकायत पत्र लिखा, जिसमें लव जिहाद का जिक्र नहीं था.
बताते चलें कि 14 वर्षीय नाबालिग के मां-बाप की मौत बचपन में ही हो गई थी. तब से वह अपने मामा-मामी के साथ पुरोला में रहती है. उसके मामा-मामी ही उसके अभिभावक हैं. पीड़िता के मामा राकेश पुरोला में सरकारी अध्यापक हैं. आसपास के लोग उन्हें ‘मास्टरजी’ बुलाते हैं. शनिवार की सुबह-सुबह जब हम पुरोला शहर से एक किलोमीटर दूर मास्टरजी के घर पहुंचे तो हमने पाया कि एक नए बने घर में मास्टरजी ने खुद को एक कमरे के अंदर बंद कर रखा था और दरवाजा बाहर से बंद था.
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने जब उन्हें बात करने के लिए निवेदन किया तो उन्होंने कड़े शब्दों में मना कर दिया और कहा कि आज जो कुछ भी पुरोला में हो रहा है, वह मीडिया की वजह से हो रहा है. हालांकि, थोड़ी देर के बाद वे कमरे से बाहर आ गए.
'पत्रकारों और हिंदुत्ववादियों ने मेरा जीना मुहाल किया'
राकेश बताते हैं, “पत्रकारों और हिंदुत्ववादी संगठन के लोगों ने मेरा जीना मुहाल कर रखा है. मैं लगभग एक महीने से घर से नहीं निकल पाया हूं. पुलिस अपना काम ठीक से कर रही है लेकिन फिर भी मेरे कंधे पर बंदूक रखकर हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाया जा रहा है. शुरू के एक-दो दिन जब वे लोग (हिंदुत्ववादी संगठन) आए तो मैं उनसे मिला लेकिन जब देखा कि मामले को किसी और ही दिशा में धकेला जा रहा है तब उसके बाद मैं किसी से नहीं मिला.”
राकेश ने हमें बताया कि वह हिंदुत्ववादी संगठन और मीडिया की गढ़ी गई कहानी से इतना तनाव में आ चुके हैं कि 26 मई के बाद से वह घर से ही नहीं निकले हैं. यहां तक कि उन्हें एक नया मोबाइल नंबर लेना पड़ा.
मालूम हो कि 26 मई के बाद पुरोला में हिंदुत्ववादी संगठनों ने तीन बार प्रदर्शन किया. लेकिन राकेश किसी भी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए. जबकि हिंदुवादी संगठन घटना को ‘लव जिहाद’ का रंग देने के लिए उनसे लगातार संपर्क कर रहे थे और उन्हें प्रदर्शन में बुला रहे थे. राकेश कहते हैं, “मैं जानबूझकर किसी प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ क्योंकि यह सब कुछ झूठ था और राजनीतिक मकसद से किया जा रहा था.”
'मैं बस माफी मंगवाना चाहता था'
राकेश बताते हैं, “26 मई की दोपहर को करीब तीन बजे के करीब मुझे एक फोन आया. बताया गया कि दो लोग मेरी भांजी को नौगांव ले जाने की फिराक में हैं. तब मैं गांव में नहीं था, तो तुरंत अपने दोस्त अजय (बदला हुआ नाम) को फोन किया और उसे जल्दी से घटनास्थल पर पहुंचने के लिए कहा.”
वो आगे बताते हैं, “अजय, मुझसे पहले घटनास्थल पर पहुंचे. उसके थोड़ी देर बाद मैं पहुंचा. लेकिन वहां पहले ही भाजपा, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के लोग पहुंच चुके थे. भीड़ को देखकर उबैद और जितेंद्र सैनी वहां से भागकर अपनी दुकान पर आ गए. उबैद और सैनी की दुकान वहां से करीब 200 मीटर दूर पुरोला बाजार में है.”
आगे वो कहते हैं, “हम, लड़की को लेकर उबैद की दुकान पर पहुंचे. वहां पर मैंने उनसे कहा कि तुम लोगों ने जो भी किया है, उसके लिए माफी मांग लो तो पुलिस में शिकायत नहीं की जाएगी. इसके बावजूद दोनों ने माफी नहीं मांगी और अकड़ दिखाने लगे. जिसके बाद मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और दोनों पर अपहरण का आरोप लगाया.”
राकेश ने बताया कि इसके बाद अगले दिन हिंदुत्ववादियों ने घटना को ‘लव जिहाद’ बताकर हंगामा शुरू कर दिया. तब उन्होंने पुरोला थाने के एसएचओ से एफआईआर दर्ज न करने का निवेदन किया. हालांकि, तब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी.
पुरोला थाना के एसएचओ खजान सिंह चौहान ने भी राकेश की इस बात की पुष्टि न्यूज़लॉन्ड्री से की. उन्होंने कहा, “27 जनवरी को राकेश ने हमसे एफआईआर दर्ज न करने को कहा था लेकिन तब तक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी, आरोपी गिरफ्तार हो चुके थे और कानूनी प्रक्रिया शुरू हो गई थी, इसलिए कुछ नहीं हो सकता था.”
राकेश कहते हैं, “उबैद और जितेंद्र मेरी भांजी को अगवा करने की नीयत से ले जा रहे थे लेकिन फिर भी मैं उन्हें माफ कर देता क्योंकि मैं उबैद को जानता था और साथ ही कोर्ट-कचहरी के चक्करों से बचना चाहता था.”
‘मुसलमानों का पलायन गलत’
मुसलमानों को पुरोला से भगाने के सवाल पर राकेश कहते हैं, “यह एक अपहरण का केस था, जिसमें पुलिस अच्छे से काम कर रही है. मुझे कानून पर भरोसा है. पुरोला में कभी हिंदू-मुस्लिम की दरार पैदा नहीं हुई. लेकिन हिंदुवादी संगठनों ने इस मामले को इतना सांप्रदायिक बना दिया कि मुसलमानों को शहर छोड़कर जाना पड़ा. यह गलत है. दोषी के खिलाफ कानून कार्रवाई कर रहा है. मैं चाहता हूं कि जो (मुसलमान) लोग पुरोला छोड़ कर चले गए हैं, वह वापस आ जाएं.”
ऐसे आगे बढ़ी ‘लव जिहाद’ की झूठी कहानी
जब फर्जी पुलिस शिकायत से बात नहीं बनी तो पत्रकार अनिल आसवाल ने दूसरा रास्ता अपनाया. यह जानते हुए भी कि घटना का ‘लव जिहाद’ से कोई संबंध नहीं है. अनिल ने अपनी वेबसाइट ‘बीबीसी खबर डॉट इन’ पर एक ख़बर प्रकाशित कर दी जिसका शीर्षक था- “नाबालिग लड़की को शादी का झांसा देकर भगाने के आरोप में दो गिरफ्तार, लव जिहाद का मामला, हिंदू संगठनों में उबाल”
अनिल की इस ख़बर की जल्दी ही पूरे इलाके में चर्चा होने लगी और हिंदुत्ववादी संगठन भी सक्रिय हो गए. पुरोला से विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष विरेन्द्र सिंह रावत, भाजपा महामंत्री पवन नौटियाल, युवा मोर्चा के मंडल महामंत्री दिवाकर उनियाल, पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान और उपाध्यक्ष दीपक नौटियाल ने मुस्लिम व्यापारियों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.
27 मई को पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान ने पुरोला के व्यापारियों के व्हाट्सएप ग्रुप से मुस्लिम व्यापारियों को हटा दिया.
इसके बाद पुरोला नगर के आस-पास के गांव के प्रधान भी मामले को बढ़ावा देने लगे. 28 मई को पुरोला ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष प्रदीप राज ने सभी ग्राम प्रधानों के नाम एक लेटर जारी किया. जिसमें 29 मई को पुरोला बाजार बंद करने और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विशाल प्रदर्शन करने का आह्वान किया गया.
दूसरी ओर, पुरोला व्यापार मंडल ने भी इस प्रदर्शन में लोगों से शामिल होने की अपील की. ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष प्रदीप राज और पुरोला व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान दोनों ही भाजपा के कार्यकर्ता हैं.
विरोध प्रदर्शन की खबर को भी अनिल ने जोर-शोर से प्रसारित किया. अनिल ने इस बारे में भी खबर प्रकाशित की. जिसका शीर्षक था, “कल लव जिहाद के खिलाफ पुरोला में होगा प्रदर्शन”
ध्यान देने वाली बात है कि अनिल हर खबर में ‘लव जिहाद’ का जिक्र कर रहे थे जबकि उन्हें अच्छे से पता था कि यह मामला ‘लव जिहाद’ का नहीं है लेकिन फिर भी वह जानबूझकर ऐसा कर रहे थे.
इसके बाद 29 तारीख को पुरोला में भारी प्रदर्शन हुआ. प्रदर्शन के दौरान भीड़ उग्र हो गई और मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. बाजार में चुन-चुन कर मुस्लिमों की दुकानों में तोड़फोड़ की गई. इन सबसे मुस्लिम व्यापारियों के बीच डर और असुरक्षा का भाव बढ़ने लगा. लिहाजा कुछ व्यापारी अपने परिवार के साथ शहर छोड़कर जाने लगे.
इसके बाद 4 जून को उत्तरकाशी के हिंदुत्ववादी नेता दर्शन भारती पुरोला पहुंचे. वे ‘देवभूमि रक्षा अभियान’ नाम से संगठन चलाते हैं. भारती, हरिद्वार में आयोजित ‘धर्म संसद’ में भी शामिल हुए थे, जहां मुस्लिमों के खिलाफ मंच से खुलेआम सांप्रदायिक भाषा का इस्तेमाल किया गया था. दर्शन अतिवादी और मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए जाने जाते हैं. वे स्थानीय हिंदुत्ववादी संगठनों में भी प्रभावशाली माने जाते हैं. यहां तक कि कई बार उन्हें उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के साथ भी देखा गया है.
दर्शन भारती अपने साथियों के साथ रात को पुरोला में रुके. ये वही रात है, जब करीब 9 बजे मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों पर 15 जून तक पुरोला छोड़कर जाने की चेतावनी वाले पोस्टर लगाए गए. 4 जून के सीसीटीवी फुटेज में भी एक युवक को पोस्टर लगाते हुए साफ देखा जा सकता है और पोस्टरों के अंत में ‘देवभूमि रक्षा अभियान’ लिखा हुआ था.
जब इस मामले पर हमने दर्शन भारती से बात की तो उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया. उनका कहना था, “यह पोस्टर मैंने नहीं लगवाए हैं लेकिन अगर किसी ने मेरे संगठन के नाम से लगाए हैं तो मैं मना भी नहीं करूंगा."
अब तक 41 मुस्लिम परिवार कर चुके हैं पलायन
पोस्टर लगाए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय में रातों-रात दहशत फैल गई और 15 जून को होने वाली ‘हिंदू महापंचायत’ से पहले ही वो शहर छोड़कर जाने लगे. इस बीच यह घटना मीडिया में भी चर्चा में आ चुका था. हालात दिन ब दिन बिगड़ने लगे.
आखिरकार, 14 जून आते-आते शहर से करीब 41 मुस्लिम परिवार शहर छोड़कर जा चुके थे. इस बीच ये मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट भी पहुंच गया. पुलिस ने 14 जून को ही धारा 144 लगाकर पूरे पुरोला शहर को छावनी में तब्दील कर दिया. प्रशासन ने 15 जून को होने वाली ‘हिंदू महापंचायत’ को अनुमति नहीं दी. शहर में बाकी बचे कुछ मुस्लिम परिवारों के घरों के सामने पुलिस सुरक्षा भी मुहैया कराई लेकिन यह सब होने से पहले ही बहुत से मुस्लिम परिवार शहर छोड़ कर जा चुके थे.
इस तरह एक पत्रकार और हिंदुत्ववादी संगठनों ने अपहरण की कोशिश के एक मामले को तथाकथित लव जिहाद और सांप्रदायिक रंग देकर पूरे मुस्लिम समुदाय को पलायन के लिए मजबूर कर दिया.
पुलिस ने उबैद खान और जितेंद्र सैनी के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज करके उन्हें जेल भेज दिया है.
(सुरक्षा के मद्देनजर इस ख़बर में कुछ लोगों के बदले हुए नाम इस्तेमाल किए गए हैं.)