छत्तीसगढ़ चुनाव: भाजपा और कांग्रेस का धान खरीद पर दांव लेकिन किसान किसके साथ?

छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए धान, धन कमाने का तो नेताओं के लिए वोट बटोरने का माध्यम नजर आता है.  

WrittenBy:बसंत कुमार
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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में धान की खरीद एक बड़ा मुद्दा है. भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने अपने घोषणा पत्र में धान की खरीद को प्रमुखता से रखा है. भाजपा ने घोषणा पत्र में धान खरीद प्रति क्विंटल 3100 रुपये तो कांग्रेस ने 3200 रुपए प्रति क्विंटल करने का वादा किया है . छत्तीसगढ़ में किसानों के लिए धान धन कमाने का तो नेताओं के लिए वोट बटोरने का माध्यम है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर किसान किसके साथ जाएगा. 

इसी सिलसिले में कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों की कर्ज माफ़ी की भी घोषणा कर दी है. कुल मिलाकर इस चुनाव में किसानों पर दोनों दल दांव खेल रहे हैं. ऐसे में हमने किसानों से बात कर जानने की कोशिश की कि पूर्व में हुए वादे कितने पूरे हुए और वर्तमान में किए जा रहे वादों पर कितना यकीन है.  

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से जगदलपुर जाते हुए रास्ते में रायकोट गांव पड़ता है. यहां के 25 वर्षीय किसान भक्तजन सेठिया अपने खेत से धान की कटाई करा रहे हैं. 

भक्तजन सेठिया बघेल सरकार की धान खरीद से खुश हैं. पिछले साल इन्होंने 29 क्विंटल धान की बिक्री की थी. सेठिया कहते हैं, “धान की खरीद को लेकर सरकार ने जो वादा किया था वो पूरा कर दिया है. जब हम धान बेचने जाते हैं तो करीब दो हज़ार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसे मिलते हैं. उसके बाद 600 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बोनस है जो चार किस्तों में मिलता है. मेरी इस साल की तीन किस्त आ गई हैं.’’

हालांकि, कई जगहों से किस्त में देरी की खबरें भी आईं लेकिन सेठिया को समय पर मिलती हैं. 

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते भक्तजन सेठिया 

रायकोट के ही रहने वाले दयाराम सेठिया के खेतों से मज़दूर धान काटकर ला रहे हैं और वो उसे ट्रॉली में रखवा रहे हैं. डेढ़ एकड़ में धान की खेती करने वाले दयाराम ने पिछले साल 22 क्विंटल धान की बिक्री की थी. इन्हें 2500 रुपए प्रति क्विंटल मिले. 

कांग्रेस सरकार द्वारा धान की खरीद पर किए गए वादे पर दयाराम कहते हैं, ‘‘किसान को 2500 रुपए प्रति क्विंटल बेचने पर भी कोई खास फायदा नहीं होता है. उसमें कुछ बचता नहीं है. यहां गांवों में पानी की सुविधा नहीं है. ऊपर वाले के भरोसे खेती करते हैं. कम से कम 3000 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए तो ही किसानों को फायदा होगा.’’

बता दें कि प्रदेश में धान की खरीद केंद्र सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर ही होती है, लेकिन राज्य सरकार प्रति क्विंटल 500 रुपए का बोनस देती है. यह बोनस किस्तों में दिया जाता है. 

दयाराम सेठिया

कांग्रेस से पहले 15 सालों तक छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. शुरुआती दो कार्यकालों में धान की खरीद पर किसी तरह का बोनस नहीं दिया जाता था. केंद्र सरकार जो एमएसपी तय करती थी उसी पर खरीद होती थी. 

2013 के चुनाव में पहली बार भाजपा ने प्रति क्विंटल 300 रुपए बोनस देने का वादा किया. तब भाजपा ने कहा था कि सरकार बनने पर धान की खरीद 2,100 रुपए प्रति क्विंटल होगी. वहीं धान पर 300 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस दिया जाएगा.

चुनाव जीतने के बाद रमन सिंह सरकार यह वादा भूल गई. आलोचना के बाद राज्य सरकार ने बोनस देने की शुरुआत तो की लेकिन किसानों को इसका फायदा तीन सालों तक ही मिल पाया. वहीं, राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 और 2017-18 का बोनस नहीं दिया. बोनस पर यह रोक केंद्र की भाजपा सरकार के कहने पर की गई थी. केंद्र सरकार का तर्क था कि ऐसी मांग अन्य राज्यों से भी उठ रही है.

किसानों को दो साल का बोनस नहीं मिला. इसे कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में मुद्दा बनाया. कांग्रेस ने वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनती है तो धान की खरीद 2500 रुपए क्विंटल के हिसाब से करेगी. साथ ही दो साल का बकाया बोनस भी देगी. सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने धान खरीद का अपना वादा पूरा किया. रमन सिंह सरकार की तुलना में धान की भी ज़्यादा खरीद हुई, लेकिन किसानों को दो साल का बकाया बोनस नहीं मिला.

कांग्रेस और भाजपा ने इस बार काफी देरी से अपना घोषणा पत्र जारी किया है. दोनों दल एक दूसरे के घोषणा पत्र का इंतज़ार कर रहे थे. आखिर भाजपा ने ‘मोदी की गारंटी नाम’ से अपना घोषणा पत्र जारी किया, जिसमें 3100 रुपए प्रति क्विंटल और एक एकड़ में 21 क्विंटल धान की खरीद का वादा किया है. वहीं, उसके बाद कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 3200 रुपए प्रति क्विंटल और एक एकड़ में 20 क्विंटल धान खरीदने का वादा किया है. 

कांग्रेस का धान खरीद का विज्ञापन 

अपने राज में बोनस रोकने वाली भाजपा एक बार फिर धान खरीद में बोनस देने की बात कर रही है. शायद यही वजह है कि इस बात पर ज़्यादातर किसान भरोसा करने से कतराते नज़र आते हैं. नारायणपुर के बेलूर थाने के पास मिले बालचंद्र मणिकूपी कहते हैं, ‘‘हमारे यहां एक कहावत है कि ‘जब कान्हा खीर खाएगा तब पतियाना’. भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में धान पर बोनस नहीं दिया था. किसानों के करोड़ों रुपये पचा गई. ऐसे में उनके वादे पर कौन भरोसा करेगा.’’

‘होनी चाहिए कर्ज माफ़ी’

 इस बार यहां बारिश नहीं होने के कारण धान की पैदावार पर असर पड़ने वाला है. भक्तजन सेठिया बताते हैं कि पिछले साल उन्होंने 29 क्विंटल धान की बिक्री की थी, अबकी बार 12 क्विंटल भी उपज हो जाए तो बड़ी बात होगी. धान को काफी नुकसान हुआ है.  

कम पैदावार की स्थिति में किसान चाहते हैं कि उनका कर्ज माफ़ हो जिसका वादा कांग्रेस पार्टी ने किया है. भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कर्ज माफी का जिक्र नहीं किया है.

2018 के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने कर्ज माफ़ी का वादा किया और सरकार बनते ही इसे पूरा भी किया. बीते दिनों सीएम बघेल ने बताया था कि तब 20 लाख किसानों के 10 हजार करोड़ रुपये हमने माफ किए.

उस समय जगदलपुर के दुगनपाल गांव के रहने वाले विजय शंकर गोयल का 70 हज़ार का कर्ज माफ़ हुआ था. अभी उन पर 90 हज़ार रुपये का कर्ज है.

क्या कर्ज माफ़ी होनी चाहिए? इस सवाल के जवाब में गोयल कहते हैं, ‘‘बिल्कुल होनी चाहिए. इस बार धान की फसल खराब हुई है. पैदावार कम होगी. हम लोग धान बेचकर ही कर्ज चुकाते हैं. ऐसे में सरकार को कुछ करना चाहिए. सूखे की स्थिति है. सरकार को कुछ न कुछ तो करना चाहिए.’’

धान के खेतों में कटाई करते मजदूर

भक्तजन सेठिया भी कर्ज माफी की मांग करते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैंने धान की बुआई के लिए 27 हज़ार रुपये का कर्ज लिया. इस बार कर्ज माफ़ होना चाहिए. चाहे कोई भी सरकार आए. क्योंकि नुकसान बहुत हुआ है. पहले हम कर्ज लेते थे तो धान की बिक्री के समय ही वो कट जाता था. इस बार धान की उपज ही कम होगी तो उससे हम कर्ज चुकाएंगे या अपना घर चलाएंगे? कोई भी सरकार आए उसे कर्ज माफ़ी करनी चाहिए.”

हालांकि, दयाराम सेठिया कर्ज माफी के पक्ष में नहीं हैं. वे कहते हैं कि सरकार को कुछ ऐसी पहल करनी चाहिए कि किसान कर्ज ही न लें. उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं. खेती में ज्यादा कमाई तो है नहीं. वहीं, बस्तर संभाग में रोजगार के नए अवसर भी नहीं बन रहे हैं. ऐसे में हमारे युवा इधर-उधर भटक रहे हैं. सरकार कर्ज माफ करने की बजाय कमाई के अवसरों में वृद्धि करे.’’

150-200 रुपये में आठ घंटे की धान कटाई 

धान की कीमतों के बीच इसकी बुआई और कटाई में काम करने वाले मज़दूरों का हाल भी जानना ज़रूरी है. बस्तर और दुर्ग इलाके में हमें धान की कटाई करते हुए ज़्यादातर महिलाएं और लड़कियां ही नज़र आईं. 

इसमें 70 साल की बुजुर्ग महिला से लेकर 18 वर्षीय खिरमीरी नाम की एक छात्रा भी थी, जो पैसे की तंगी के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं. आठ घंटे धान काटने के उसे महज 150 रुपए मिलते हैं. माथे पर गमछा बांधे धान काटने में जुटी खिरमीरी ने 12वीं करने के बाद एक प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लिया है, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण पढ़ने नहीं जाती हैं. सिर्फ पेपर देने जाती हैं.

खिरमीरी बताती हैं, ‘मैं ‘सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक धान की कटाई करती हूं. जिसके बदले मुझे 150 रुपए मिलते हैं. मुझे बरोजगारी भत्ता भी नहीं मिलता है. 150 रुपये तो बहुत कम हैं. मैं अपने रिश्तेदारों के खेतों में ही काम करने जाती हूं. कहीं और काम करने नहीं जाती हूं.’’

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करती खिरमरी 

जगदलपुर से नारायणपुर के रास्ते पर भी हमें धान की कटाई करते हुए कुछ महिलाएं मिलीं. इनमें 18 वर्षीय आरती भी एक हैं जो 12वीं करने के बाद पढ़ाई छोड़ चुकी हैं. आरती को सुबह नौ से शाम पांच बजे तक यानी आठ घंटे के 200 रुपये मिलते हैं. धान कटाई के अलावा वो राजमिस्त्री के साथ मजदूरी का काम भी काम करती हैं. आरती बताती हैं, ‘‘पढ़ने का मन तो है लेकिन पैसे नहीं हैं.’’

हाल ही में कांग्रेस ने घोषणा की है कि अगर उनकी सरकार आती है तो केजी से लेकर पीजी तक की पढ़ाई मुफ्त की जाएगी. यह जानकारी आरती को नहीं है. आरती के साथ काम कर रहीं विनीत बघेल भी पैसों की तंगी के कारण 12वीं के बाद पढ़ाई नहीं कर पाईं.’’ 

छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को हुआ और दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होगा. वहीं, नतीजे तीन दिसंबर को आएंगे.

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