play_circle

For a better listening experience, download the Newslaundry app

App Store
Play Store

एनएल चर्चा 290: द लेजेंड बिशन सिंह बेदी और 'रथ प्रभार' के मायने

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

    bookmark_add 
  • whatsapp
  • copy

इस हफ्ते चर्चा के प्रमुख विषय केंद्र सरकार द्वारा अपनी योजनाओं और उपलब्धियों के प्रचार हेतु लिया गया सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाने का फैसला और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी का निधन आदि रहे.  

हफ्ते की अन्य सुर्खियों में पेपर लीक मामले में राजस्थान के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के घर पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा छापेमारी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे बैभव गहलोत को ईडी द्वारा तलब करना, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा महाराष्ट्र में 7500 करोड़ रुपये की विकास योजनाओं का शिलान्यास किया और चुनाव आयोग द्वारा अभिनेता राजकुमार राव को अपना नेशनल आइकन बनाने की घोषणा आदि शामिल रहीं.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग का फैसला- मुज़फ्फरनगर में अवैध मदरसों को बंद करें या दस हजार रुपये प्रतिदिन जुमार्ना भरें, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाने के फैसले पर आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखना आदि मुद्दे भी हफ्तेभर तक सुर्खियों में बने रहे. 

नागपुर में विजयादशमी संबोधन के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख का बयान- सांस्कृतिक मार्क्सवादी कर रहे हैं देश का माहौल ख़राब और बिहार की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी जातिगत जनगणना की मांग आदि मुद्दों ने भी हफ्तेभर तक सुर्खियां बटोरी.           

इस हफ्ते चर्चा में वरिष्ठ खेल पत्रकार चंद्रशेखर लूथरा, अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार स्मिता शर्मा, एडीआर के सह संस्थापक एवं पूर्व प्रोफेसर जगदीप छोकर और वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ शामिल हुईं. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री टीम से विकास जांगड़ा ने चर्चा में हिस्सा लिया. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के प्रबंध संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा के प्रमुख विषय केंद्र सरकार द्वारा सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाने के फैसले को लेकर अतुल मेहमानों से सवाल करते हैं, “मैं ये जानना चाह रहा था कि क्यों ये एक अप्रत्याशित फैसला है और ऐसा करना सही नहीं है? साथ ही इस फैसले के दूरगामी दुष्परिणाम या सुपरिणाम क्या हो सकते हैं?”

इसके जवाब में जगदीप छोकर कहते हैं, “प्रशासनिक कार्यकारी को राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए. लेकिन सरकार का ये फैसला प्रशासनिक अधिकारियों को राजनीति में लाने का तरीका है, जिससे कि एक (पार्टी विशेष के प्रति) ‘प्रतिबद्ध नौकरशाह समूह’ का निर्माण हो सके. ये बात इंदिरा गांधी के वक्त में भी हुई थी लेकिन इतनी खुल्लम-खुल्ला नहीं हुई थी. बल्कि अगर हम याद करें तो इंदिरा गांधी का चुनाव ही इस वजह से रद्द किया गया था क्योंकि उन्होंने चुनाव में कुछ अधिकारियों की मदद ली.” 

छोकर आगे कहते हैं कि नौकरशाही का काम योजनाओं का क्रियान्वन है ना कि उनका प्रचार करना है. प्रचार के लिए सरकार के पास अलग से विभाग हैं, जैसे कि डीएवीपी है, प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो है और भी कई संस्थाएं हैं. लेकिन यहां तो प्रशासन को कहा जा रहा है कि काम मत करो बल्कि सरकार के लिए प्रचार करो. 

subscription-appeal-image

The NL-TNM Election Fund

इसी मामले पर संगीता बरुआ कहती हैं, “सरकार की ओर से जारी पत्र की भाषा पर गौर करें तो पाएंगे कि उसमें सरकार की उपलब्धियों के प्रचार का जिक्र है. पहले जो रथ प्रभारी, पन्ना प्रमख जैसे शब्द हम भारतीय जनता पार्टी की कार्यप्रणाली में सुनते थे वो अब सरकार के पत्रों में दिखने लगे हैं. इससे साफ है कि इससे नौकरशाही का राजनीतिकरण किया जा रहा है.” 

इसी सवाल पर स्मिता कहती हैं, “यह एक सत्ता की भूखी पार्टी है, इसमें कोई शक ही नहीं है. ये पार्टी खुद इस बात पर गर्व करती है कि इनको ‘इलेक्शन मशीन’ कहा जाता है.”                     

टाइम्स कोड्स

00 - 4:20 - इंट्रो और जरूरी सूचना

4:20 - 51:28 - सरकारी अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाने का केंद्र का फैसला

51:28 - 55:10 - सुर्खियां

55:15 - 1:05:42 - सब्सक्राइबर्स के मेल

1:05:42 - 1:26:05 - भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी का निधन

1:26:05 - सलाह और सुझाव 

पत्रकारों की राय क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए

स्मिता शर्मा

द हिन्दू के स्टैनली जॉनी की हमास हमले पर पॉडकास्ट सीरीज़

एन एन वोहरा की किताब- इंडियाज़ नेशनल सिक्योरिटी चैलेंजेज़ 

संगीता बरुआ

 न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी के सब्सक्राइबर बनें और 50% छूट का लाभ उठाएं

चंद्रशेखर लूथरा 

संगीता बरुआ की किताब- असम: द एकॉर्ड द डिस्कॉर्ड 

फिल्म- हवा

डेनिस लिल्ली की किताब- द आर्ट ऑफ़ फास्ट बॉलिंग  

विकास जांगड़ा

नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज़- काला पानी

विकास दिव्यकीर्ति की वीडियो- इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद की पूरी कहानी  

अतुल चौरसिया

सुरेश मेनन की किताब- बिशन: पोर्ट्रेट ऑफ़ ए क्रिकेटर   

ट्रांसक्राइब: तस्नीम फातिमा/सत्येंद्र चौधुरी

प्रोड्यूसर: चंचल गुप्ता

एडिटर: उमराव सिंह

subscription-appeal-image

The NL-TNM Election Fund

Also see
एनएल चर्चा 289: समलैंगिक विवाह से सुप्रीम कोर्ट का इनकार और निठारी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई
एनएल चर्चा 288: इज़रायल हमास का खूनी संघर्ष और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव 
newslaundry logo

Pay to keep news free

Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.
newslaundry logo

Pay to keep news free

Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like