गांधी शांति प्रतिष्ठान ने 2021 व 2022 के कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान से अजित अंजुम और आरफा खानम शेरवानी को नवाजा.
गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से 2021 व 2022 का कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान शनिवार को दिल्ली के राजेंद्र भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया गया. वर्ष 2021 का यह सम्मान वरिष्ठ पत्रकार व यूट्यूबर अजीत अंजुम को तो वहीं 2022 के लिए द वायर की पत्रकार आरफा खानम शेरवानी को दिया गया.
सम्मान मिलने के बाद अजीत अंजुम ने खुशी जाहिर की और गांधी शांति प्रतिष्ठान का आभार व्यक्त किया. उन्होंने न्यूज़लांड्री को बताया, “जब मुझे सूचना मिली कि मुझे कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान के लिए चुना गया है तो मैं यही सोच रहा था कि क्या मैं इस सम्मान के लिए योग्य हूं या नहीं. क्योंकि मैं मानता हूं जिस अवार्ड में कुलदीप नैयर जैसे बड़े पत्रकार और गांधी शांति प्रतिष्ठान का नाम जुड़ा हो उसके लिए शायद मैं अयोग्य हूं. लेकिन फिर भी चयन समिति ने मुझे चुना है तो उन्होंने जरूर कुछ देखा होगा. इस सम्मान ने मेरी जिम्मेदारी बढ़ा दी है. मैं कोशिश करूंगा की मैं इस जिम्मेदारी को और बेहतर ढंग से निभा पाऊं.”
अजीत अंजुम कहते हैं, “पत्रकारिता प्रतिरोध की आवाज होती है, आलोचना की आवाज होती है, सत्ता से सवाल पूछने की आवाज होती है. वो आवाज इस दौर में खतरे में है. हमें जितना स्पेस मिला है यू ट्यूब प्लेटफार्म के तौर पर मैं कोशिश करूंगा कि मेरे जीते जी वो आवाज बंद न हो. चाहे कोई भी सत्ता में हो.”
डिजिटल मीडिया के जरिए पत्रकारिता की नई पारी की शुरुआत को अंजुम अपना पुनर्जन्म मानते हैं. वह कहते हैं, “यूट्यूब और फेसबुक के जरिए पत्रकारिता के तीन साल मेरे करियर के पिछले 28 साल पर भारी हैं. मैंने जो 28 सालों में किया उससे 100 गुना बेहतर काम मैंने बीते तीन सालों में किया है. मुझे कम से कम अब सुकून रहता है मेरे ऊपर किसी तरह का दबाव नहीं है. न टीआरपी का दबाव है ना विज्ञापन का दबाव है ना किसी संपादक का दबाव है. मैं जो खबरें दिखाना चाहता हूं वह दिखाता हूं, जिन खबरों पर बोलना चाहता हूं उस पर बोलता हूं और सबसे बड़ी बात चैन की नींद सोता हूं कि मैं किसी दबाव में नहीं काम कर रहा."
वहीं इस सम्मान पर द वायर की पत्रकार आरफा खानम शेरवानी कहती हैं, “ऐसे वक्त में ये अवार्ड आया है जब मैं और मेरे लिए बहुत से लोगों ने मरसिए लिख दिए हैं. बहुत से ऐसे लोग हैं जो हमारे जनाजे उठाने के लिए तैयार हो रहे हैं. ऐसे वक्त में इस अवार्ड ने मुझमें मेरी पत्रकारिता और मेरे संस्थान में नई रूह फूंकने का काम किया है.”
वह आज के दौर की पत्रकारिता पर कहती हैं कि ये ऐसा दौर है जो एंकर ज्यादा जहरीला होगा उसे और ज्यादा प्रमोशन दिया जाएगा. ये जो नफरत है ये पिछले आठ साल की देन है.
वह द वायर पर हुई कार्रवाई पर कहती हैं कि जब हमारे दफ्तर में रेड की गई तब मैं दफ्तर में ही मौजूद थी. जिनके नाम केस में दर्ज हैं उनके तो फोन लिए ही गए साथ ही उनके भी ले लिए गए जिनका उस केस से कोई लेना देना नहीं है. ये हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है. ये सिर्फ एक पत्रकार के अधिकारों का हनन नहीं है बल्कि जनता के अधिकारों का हनन है.
वह आगे कहती हैं, “मैं और मेरे जैसे दर्जनों पत्रकारों के लिए जो संस्थागत पत्रकारिता है वो बची रहनी चाहिए. क्योंकि जो पोलिटिकल इम्यूनिटी है वो हर पत्रकार को नहीं है कि कोई भी पत्रकार माइक लेकर चल देगा और उसके साथ कुछ नहीं होगा. 30-40 लोग जब एक साथ खड़े होते हैं तो वह ज्यादा मजबूत होते हैं. वहां एक संस्था होती है, एक सिस्टम होता है. संस्थागत पत्रकारिता को बचाए रखना बहुत जरूरी है.”
इस सम्मान ने मेरी जिम्मेदारी को और बढ़ा दिया है.
इस मौके पर वरिष्ठ लेखक व गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत कहते हैं कि आप अपने साथ जिस गांधी को ले जा रहे हैं उसके हाथ में छड़ी नहीं कलम है. इसका ध्यान रखिएगा. इस सम्मान का जो प्रतीक है वह शांतिनिकेतन के कला गुरु नंदलाल बसु का बनाया विश्व प्रसिद्ध स्केच है. जो डांडी यात्रा के वक्त में उन्होंने बनाया था. इसलिए हमने उनके हाथ में डंडे की जगह कलम रखा है.
वह कहते हैं, "पत्रकारिता में जो हम देखते हैं वो लिखते हैं. गांधी जी ने इसमें इतना जोड़ दिया कि जो हम देखते हैं वो लिखते हैं, और जो लिखते हैं, वह हम करते हैं. गांधी परंपरा की जो पत्रकारिता है वह जो देखती है, वो लिखती है, जो लिखती है, वो करती है, और जो करती है, वो दूसरों को करने के लिए भी प्ररेरित करती है. इसिलिए पत्रकारिता में कुछ बदला नहीं है, बस दो तीन आयाम उसमें जुड़ गए हैं. मैं गांधी परंपरा की पत्रतारिता का इन दोनों (आरफा खानम शेरवानी और अजीत अंजुम) को उसका प्रतीक मानता हूं.
वह आगे कहते हैं कि सत्ता को सत्य पसंद नहीं होता है. और सत्य को हमेशा सत्ता में असत्य दिखता है. ये खींचतान होती रहती है. ये कोई बड़ी बात नहीं है. बस फर्क अभी इतना हो गया है. सत्य को नहीं मानने वाला एक दर्शन स्थापित हो रहा है. बस इतना सा फर्क हुआ है. एक दर्शन है जो ये मानता है कि सत्य की जगह समाज में नहीं होनी चाहिए, सिर्फ सत्ता होनी चाहिए. इसलिए ये बहुत ज्यादा खतरनाक हो गया है. लेकिन कोई खतरा ऐसा नहीं है जो हमेशा के लिए हो. ये तो लोकतंत्र की विशेषता है कि उसमें हमेशा चीजें बदलती रहती हैं क्योंकि उसमें आप जैसे लोग हैं.
वहीं मंच पर मौजूद जाने माने समाजशास्त्री आशीष नंदी कहते हैं कि इस बार सम्मान देने का मकसद था कि उन आवाजों को सम्मान दिया जाए जो आवाज टीवी और अखबार से इतर समाज के उस हिस्से तक पहुंच रहे हैं, जहां मेंनस्ट्रीम मीडिया नहीं पहुंच पाती. ऐसे दौर में जब टीवी शोर-शराबे और अखबार प्रचार सामग्री से भर गए हैं तो ऐसे में डिजिटल मीडिया के जरिए जनता की आवाज उठाना महत्वपूर्ण है.
ऐसा नहीं है कि डिजिटल मीडिया पर सब सही हो रहा है लेकिन फिर भी डिजिटल मीडिया बेहतर कर रहा है. अजीत अंजुम और आरफा खानम शेरवानी जैसे पत्रकार डिजिटल मीडिया के जरिए देश की हकीकत को देश के सामने रख रहे हैं.
बता दें कि यह सम्मान हर वर्ष ऐसे पत्रकार को दिया जाता है जिसने मौजूदा दौर पर अपनी खास छाप छोड़ी हो. गांधी शांति प्रतिष्ठान ने 2017 में सच्ची व स्वतंत्र पत्रकारिता का सम्मान करने के लिए कुलदीप नैयर की प्रेरणा से यह सम्मान शुरू किया था.
इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार इस सम्मान से नवाजे जा चुके हैं.
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