हरियाणा: धमकी के बाद पलायन करते मुसलमान, शांति सभाएं करते किसान और खुलेआम घूमते हेट स्पीच के आरोपी

नूंह हिंसा के बाद हांसी में बजरंग दल, वीएचपी और दूसरे हिंदूवादी संगठनों ने एक यात्रा निकाली थी. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को शहर छोड़ जाने की धमकी दी थी.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
   

31 जुलाई को नूंह में हुई हिंसा के बाद हरियाणा के अलग-अलग शहरों से भी हिंसा की खबरें सामने आईं. हिसार जिले के हांसी शहर में भी शांति बिगाड़ने की कोशिश हुई. यहां बजरंग दल, वीएचपी और दूसरे हिंदूवादी संगठनों ने एक ‘रोष यात्रा’ निकाली. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को शहर छोड़ने और काम से हटाने की धमकी भरी ‘मांग’ की गई. असर यह हुआ कि रेहड़ी-फेरी लगाने वाले प्रवासी लोग अपने घरों को लौट गए. इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. 

ये पूरा मामला 2 अगस्त को शुरू हुआ. जब यहां रोष यात्रा निकाली गई. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ. इसमें दो लोग समुदाय विशेष के खिलाफ बोलते और नारे लगाते दिख रहे हैं. वहीं भीड़ पीछे-पीछे चल रही है.

नारे लगाने वालों में पहला शख्स, कृष्ण गुर्जर है. यह बजरंग दल का स्थानीय कार्यकर्ता है. वह वीडियो में कहता नजर आ रहा है, ‘‘एक-एक दुकानदार कान खोलकर सुन ले. उनके दुकान में जो भी बाहरी मुसलमान काम करता है, उन्हें अपनी दुकानों से निकाल दें. सिर्फ दो दिन का समय है. उसके बाद भी किसी दुकानदार ने किसी मुसलमान को काम पर रखा तो उसकी दुकान के बाहर बहिष्कार का बोर्ड लगाकर उसे कौम का गद्दार घोषित करेंगे.’’

इसके बाद माइक दूसरे शख्स के हाथ में आता है. ये हैं अनिल चावला. हांसी सब्जी मंडी यूनियन के प्रधान चावला एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते हैं, ‘‘हिंदू क्षत्रिय है. क्षत्रियों के सम्मान पर जब-जब हमला हुआ है, उन्होंने हथियार उठाए हैं. जब भी क्षत्रिय हथियार उठाएगा कोई भी बाकी नहीं रह जाएगा.’’ इसके बाद चावला, ‘‘जब मु... काटे जायेंगे, राम-राम चिल्लायेंगे’’ का नारा लगते हैं. यह नारा भीड़ भी कई बार दोहराती है.

इसके बाद अगले दिन, 3 फरवरी को एक पुलिस अधिकारी इस मामले में एक एफआईआर दर्ज कराते हैं. जिसमें वे चार लोगों- कृष्ण गुर्जर, विनोद चौहान, भूपेंद्र राठौर और प्रवीन्द्र लोहान को नामजद करते हैं. वहीं 12 अज्ञात लोगों को भी आरोपी बनाते हैं.  यह एफआईआर आईपीसी की धारा, 147 (उपद्रव या दंगा करना ), 149, 153A (सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश),  505 (2 ) (सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध करने के मकसद से झूठे बयान देना)  और 506 के तहत दर्ज की गई है. हालांकि, इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

हमने इस मामले में एक नामजद आरोपी कृष्ण गुर्जर से बात की. वह कहते हैं कि पुलिस अपनी जांच कर रही है. हम उसमें उनकी मदद कर रहे हैं. वीडियो वायरल होने के बाद हमें एसडीएम ने बुलाया था. उन्होंने कहा कि इससे समाज में गलत मैसेज गया है तो हमने अपने बयान पर खेद जता दिया.

इस मामले के दूसरे आरोपी भूपेंद्र से जब हमने पूछा कि उस दिन जो कुछ हुआ उसको लेकर कोई अफसोस है तो वे इसका जवाब ना में देते हैं. भूपेंद्र, मोनू मानेसर को अपना आइडियल मानते हैं. मालूम हो कि तथाकथित गौरक्षक मोनू मानेसर पर जुनैद और नासिर की हत्या का आरोप है. फिलहाल, पुलिस को मोनू की तलाश है.

इस एफआईआर में अनिल चावला का नाम नहीं है जबकि वीडियो में सबसे ज्यादा भड़काऊ बयान देते वही नजर आ रहे हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब चावला से उनके बयान को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया. 

चावला, गुर्जर और राठौर से हमारी मुलाकात हांसी की नई सब्जी मंडी में दो नंबर दुकान पर हुई. यहां ये कुछ स्थानीय पत्रकारों के साथ बैठे हुए थे.   

लोग डर के कारण घर भागे 

हांसी में मुस्लिम आबादी बेहद कम है. एक स्थानीय पत्रकार की मानें तो यहां के स्थायी निवासी मुस्लिमों की आबादी 2500 से 3000 के बीच है. वहीं, कुछ लोग यूपी- बिहार से यहां काम करने आए हैं. कुल मिलाकर पांच हजार तक मुस्लिम हांसी शहर में हैं. जबकि हांसी शहर की जनसंख्या 1 लाख 60 हजार के आसपास है. 

2 अगस्त की शाम, जब से यह भड़काऊ नारेबाजी और धमकी देने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो रातों-रात ही यहां से प्रवासी मुसलमानों ने पलायन करना शुरू कर दिया. हांसी के फल विक्रेता बुजुर्ग वजीर सिंह बताते हैं कि यूपी के शामली और बागपत क्षेत्र के रहने वाले मुसलमान ने मंडी में गोदाम के पास 15 कमरे किराए पर लिए हुए थे. वहां करीब 50-60 लोग रहते थे. जिस शाम वीडियो वायरल हुआ वे लोग उसी रात अपने घर लौट गए.  

वजीर सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमारे यहां शांति है लेकिन एक दिन झगड़ा हुआ था. जिसमें कहा गया कि जितने मुसलमान हैं, वो दो दिन में यहां से चले जाओ. उसके बाद वे यहां से चले गए. मेरे गोदाम के बगल में ही पचास-साठ प्रवासी मुसलमान रहते थे. कोई रेहड़ी लगाता था तो कोई फेरी का काम करता था. उनमें से एक मेरे बेटे से नाई का काम भी सीखता था. वो सब चले गए. अब यहां कोई भी नहीं है. वो रातों-रात हमें बिना बताए ही निकल गए. सब पांच-छह सालों से मिलते जुलते थे. ऐसे में उनके जाने का अफसोस तो है.’’

यहां से मुसलमान दुकानदारों के जाने की यह कहानी सिर्फ वजीर सिंह ही नहीं बल्कि अंबेडकर चौराहे पर रेहड़ी-पटरी लगाने वाले अन्य कई लोग भी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं. चाट-पानीपुरी बेचने वाले वाले 19 वर्षीय नरेश कुमार कहते हैं, “‘वीडियो वायरल होने के बाद यहां से मुस्लिम समुदाय के लोग चले गए हैं. हमारी कॉलोनी वाली तो सारे ही चले गए.” 

इनके पास ही ठेले पर पान-गुटखा बेचने वाले प्रेम कुमार बताते हैं, “70 से 75 प्रतिशत मुस्लिम रेहड़ी-फेरी वाले शहर छोड़ गए हैं.  एकाध इधर-उधर दुबके हुए हों तो कुछ कह नहीं सकते. लेकिन ये सब लोग धमकी मिलने के बाद गए हैं.” 

हांसी में मशहूर चार कुतुब दरगाह के प्रमुख चांद मियां भी यह मानते हैं कि वीडियो वायरल होने के बाद लोगों के दिलों में दहशत बैठ गई है. अब वे देर-सवेर अपने घरों को लौट रहे हैं. हालांकि, वे इसे पलायन नही मानते. वह कहते हैं, ‘‘वैसे तो हमारे यहां शांति है लेकिन कुछ लोगों ने झगड़ा किया तो ये (मुस्लिम) अपने घर चले गए हैं. कुछ दिनों में वे वापस आ जायेंगे. इसे मैं पलायन नहीं मानता. यह चंद दिनों की बात हैं.’’

हिंदूवादी संगठनों की धमकी के बाद ज्यादातर प्रवासी मुसलमान हांसी से पलायन कर गए हैं. वहीं बाकी मुसलमानों के मन में भय साफ महसूस किया जा सकता है. उनका कारोबार ठप पड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले अमरुद्दीन मोहम्मद यहां एक मांस की दुकान पर काम करते हैं. यह दुकान बीते कई दिनों से बंद है.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अमरुद्दीन कहते हैं, ‘‘हमारे जो ग्राहक थे, वो घर चले गए है. ऐसे में कारोबार रुक गया है. मैं भी बाहर का ही रहने वाला हूं. यहां पांच-छह साल से रह रहा हूं. मैं घर नहीं गया लेकिन डर मुझे भी लग रहा है. यहां दरगाह है. इसके आसपास ही रहते हैं. अगर ज्यादा दिनों तक कारोबार बंद रहा तो घर जाना ही पड़ेगा.’’

अगर चंद हिंदूवादी संगठन के लोगों को छोड़ दिया जाए तो यहां बाकी लोग एकता और शांति की ही बात करते नजर आते हैं. यहां के चार कुतुब दरगाह में मुस्लिमों से ज्यादा हिंदू आते हैं. 

किसान संगठनों की भूमिका 

नूंह में हिंसा के बाद जगह-जगह से ऐसी ही खबरें सामने आई. लेकिन इसी बीच किसान संगठन के लोग सक्रिय हुए और हिंसा को रोकने के लिए आगे आए. जिसका नतीजा हुआ कि नूहं की आग हरियाणा में ज्यादा दूर तक नहीं फैल पाई.

हांसी में 2 अगस्त की शाम से यह वीडियो वायरल होना शुरू हुआ. जैसे ही यहां के किसान संगठनों को जानकारी मिली तो अगले दिन सैकड़ों की संख्या में इसके प्रतिनिधि हांसी पहुंचे और उन्होंने हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए प्रशासन से उनपर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करने की मांग की. इसके बाद प्रशासन भी एफआईआर दर्ज करने पर मजबूर हुआ. 

उस रोज प्रदर्शन में शामिल हुए पेशे से वकील और किसान संगठन में काम करने वाले हर्षदीप सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘यह सब आगामी चुनावों को देखकर किया जा रहा है. हमें जैसे ही वीडियो की जानकारी मिली तो अगले ही दिन हम सड़कों पर थे. हमारे विरोध प्रदर्शन के बाद ही प्रशासन दबाव में आया और एफआईआर दर्ज की. इतना ही नहीं बजरंग दल वालों को माफी भी मांगनी पड़ी. हमने शहर में जो मुस्लिम धार्मिक स्थल या कॉलोनी हैं, वहां सुरक्षा की मांग की. इसके साथ भविष्य में ऐसा दोबारा न हो इसको लेकर हम कोशिश कर रहे हैं कि आरोपियों पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो.’’

इस बार किसान संगठन बेहद सक्रिय नजर आए. इसके पीछे क्या वजह रही? इस सवाल के जवाब में सिंह कहते हैं, ‘‘इस सरकार के खिलाफ जो भी आवाज़ उठता है उसको कुचलने की कोशिश करती है. 13 महीनों तक दिल्ली के चारों तरफ बॉर्डर पर जो किसान आंदोलन चला, उसमें हमारी काफी अच्छी ट्रेनिंग हुई है. उसमें हमने सीखा कि कैसे लोगों के साथ खड़ा होना है. तब 36 की 36 बिरादरी के लोगों ने हमारा साथ दिया था. अब उसमें से किसी को सरकार और उसके पालतू लोग परेशान करेंगे तो हमें आवाज तो उठानी होगी.’’

किसान संगठन के लोग सिर्फ तीन अगस्त को ही सड़कों पर नहीं उतरे बल्कि 9 अगस्त को हांसी से 25 किलोमीटर दूर बास गांव में सर्व समाज की बैठक बुलाई गई. इसमें शांति बहाल करने की मांग करते हुए हरियाणा के किसान नेता सुरेश कौथ ने कहा, ‘‘सामने मुस्लिम भाई हैं. किसी में हिम्मत है तो इन्हें हाथ लगाकर दिखाए.’’ यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ. 

कौथ मानते हैं कि हरियाणा में हिंसा सरकार के इशारे पर फैलाई जा रही है. हांसी में जो आरोपी हैं, उन्हें वो स्थानीय भाजपा विधायक विनोद भयाना के साथी बताते हैं. 

न्यूज़लांड्री से बात करते हुए कौथ कहते हैं, ‘‘नूंह में जो कुछ हुआ वो सरकार द्वारा किया गया. जब सरकार की पोल खुल गई तो उसके द्वारा प्रायोजित कुछ गुंडे टाइप के लोग, जो अपने आप को गौरक्षक मानते हैं, उन्होंने हरियाणा प्रदेश का माहौल खराब करने के लिए तरह-तरह के नारे लगाने शुरू कर दिए. कहीं मुस्लिमों को गांव छोड़ने तो कहीं शहर छोड़ने की धमकी देने लगे. कहीं उन्हें मारने- काटने की बात करने लगे. हमने सबसे पहले कहा कि यह नारे हमारे देश-प्रदेश के लिए सही नहीं हैं. मगर जब हमने देखा कि इन गुंडा तत्वों को तो सरकार की शह मिली हुई है तो पूरे समाज के लोगों की बैठक बुलाई. उनके सामने प्रस्ताव लेकर आए कि प्रदेश में शांति हो. इसके बाद सबने फैसला लिया कि वे किसी भी दंगे में शामिल नहीं होंगे.”

किसान संगठनों की इस कोशिश का नतीजा यह हुआ कि हरियाणा के कई शहर सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आने से बच गए. किसान नेताओं की मानें तो वे इस शांति की अपील को आगे लम्बे समय तक जारी रखेंगे.

कोई गिरफ्तारी नहीं और पुलिस की चुप्पी 

एक तरफ जहां इस मामले के आरोपी खुले में घूम रहे हैं. वहीं रोजगार की तलाश में यहां आए प्रवासी मुस्लिम अपने घरों को लौटने को मज़बूर हैं. 

नफरती भाषण के आरोपी कृष्ण गुर्जर और भूपेंद्र राठौर को इस बात का कोई अफ़सोस नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं कि हमारा स्थानीय मुस्लिमों से कुछ लेना देना नहीं है. हमारा मकसद तो रोहिंग्याओं को भगाना था. जब हमने पूछा कि वीडियो में तो रोहिंग्या का जिक्र तो कहीं नहीं आता? तो गुर्जर कहते हैं, ‘‘हमने बाहरी बोला. हमारे बाहरी बोलने का मतलब रोहिंग्या से ही था.’’ 

इसके बाद हमने पूछा कि वायरल वीडियो में जब आप नारा लगाते हैं- ‘और जब मु.. काटे जायेंगे तो राम-राम चिल्लायेंगे’ तो वहां कहीं भी बाहरी शब्द का जिक्र नहीं था? इसपर दोनों कहते हैं, “रोष में निकल गया लेकिन हमारा स्थानीय मुसलामनों से कोई मतभेद नहीं है. अभी भी प्रशासन पहचान कर रोहिंग्या लोगों को बाहर नहीं करता है तो हम करेंगे.”

बातचीत से ऐसा लगा कि एफआईआर के बाद ये लोग अब बाहरी और रोहिंग्या शब्द का इस्तेमाल अपने बचाव के लिए करते नजर आ रहे हैं.

गौरतलब है कि जिस रोज यह ‘रोष यात्रा’ निकली थी तो उस वक्त भारी संख्या में पुलिस भी मौजूद थी. पुलिस के सामने ही भड़काऊ नारे लगे और मुस्लिमों को शहर छोड़ने की धमकी दी गई. लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. अगले दिन जब किसान संगठनों ने प्रदर्शन किया तो मामला दर्ज हुआ. हालांकि, अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. जब हमने पुलिस से इस बारे में पूछा तो थाना शहर के एसएचओ, उदयभान गोंदर कहते हैं, “हम कोशिश कर रहे हैं लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आ रहे हैं.’’

ये विडंबना ही है कि सब आरोपी शहर में खुलेआम घूम रहे हैं. मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं लेकिन स्थानीय पुलिस की पकड़ से बाहर हैं.

देखिए ये वीडियो रिपोर्ट.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article image'उसका सबसे अच्छा दोस्त मुसलमान ही था', नूंह हिंसा में मारे गए बजरंग दल के अभिषेक के परिवार का दावा
article imageहरियाणा: मोनू मानेसर, अफवाह और पुलिस की लापरवाही बनी नूंह से गुरुग्राम तक सांप्रदायिक हिंसा की वजह? 
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like