जहां एक तरफ लोग निजी नाव से अपने मवेशियों और जरूरी सामान निकालने की जुगत लगा रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सरकार द्वारा लगाए गए राहत शिविर से जरूरी सुविधाएं गायब हैं.
1978 में बनाए गए सर्वकालिक रिकॉर्ड को तोड़ते हुए और खतरे के निशान को पार करते हुए राजधानी दिल्ली में यमुना का जलस्तर गुरुवार सुबह 208.48 मीटर तक पहुंच गया. नतीजा, यमुना के फ्लडप्लेन (बाढ़ का मैदान) में बनी सभी सड़कें, कालोनियां, गांव और सार्वजनिक जगहों पर बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं. यहां तक कि यमुना का पानी रिंग रोड, सिविल लाइन, आईटीओ और लाल किले तक पहुंच गया.
यमुना में बढ़े जलस्तर के कारण करीब 27 हजार लोगों को यमुना के तटीय इलाकों से निकालकर राहत शिविर में शिफ्ट किया गया है. अकेले पूर्वी दिल्ली में करीब 1700 टेंट लगाए गए हैं. वहीं, उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में करीब 200 टेंट लगाए गए हैं.
सरकार की तरफ से हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. एनडीआरएफ, दिल्ली पुलिस, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड सहित राज्य और केंद्र की कई एजेंसियां काम कर रही हैं.
वहीं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी का दौर भी शुरू हो गया है.
जब हमने राहत शिविरों और प्रभावित इलाकों का दौरा किया तो हमें पता चला कि तमाम इंतजामों और दावों के बावजूद बाढ़ से प्रभावित लोगों के पास जरूरी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. कहीं पर सिर्फ टेंट लगा दिया गया है तो पीने का पानी नहीं है. कहीं पर पानी है तो टॉयलेट और बाथरूम नहीं है.
वजीराबाद से खजूरी खास चौक के बीच के इलाके पूरी तरह पानी में डूब चुके हैं. खजूरी खास के पास करीब 1500 की आबादी वाला ओल्ड मांडू गांव पूरी तरह से जलमग्न हो चुका है. इस गांव में करीब ढाई सौ मकान हैं.
गुरुवार सुबह पुलिस गांव से लोगों को निकाल ले गई और राहत शिविर में पहुंचा दिया लेकिन उनका सामान और मवेशी गांव में ही छूट गए. लोग अब निजी नाव के जरिए अपने मवेशियों को बचाने और घर से जरूरी सामान निकालने के लिए अपनी जान का जोखिम उठा वापस गांव में जा रहे हैं.
बाढ़ में किसी की दुकान डूब गई है तो किसी का मकान और सामान. बाढ़ की वजह से इन लोगों का घर तो डूबा ही इनका व्यवसाय भी पूरी तरह से तबाह हो गया है. लेकिन उनके सामान और मवेशियों को निकालने के लिए सरकार की तरफ से फिलहाल कोई कोशिश होती दिख नहीं रही है. देखिए हमारी यह वीडियो रिपोर्ट.