आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य पत्रिका की ताजा आवरण कथा प्लेजरिज्म और कॉपी-पेस्ट का दुर्लभ उदाहरण है.
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के लगभग पांच महीने हो गए हैं. सरकार और किसान नेताओं के बीच आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद से बातचीत बंद है. वहीं पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के कारण मीडिया से भी किसानों का मुद्दा गायब हो चुका है. लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुखपत्र पाञ्चजन्य किसानों को नहीं भूला है. भले ही उसकी मंशा किसान आंदोलन को गलत ठहराने की हो, लेकिन ताजा-ताजा अप्रैल का अंक उसने कृषि विशेषांक के रूप निकाला है.
पाञ्चजन्य की कवर स्टोरी का स्वर कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को गलत ठहराना है. इससे किसी को क्या ऐतराज, मीडिया संस्थान इस पर अलग-अलग राय रख सकते हैं. पान्चजन्य ने मोदी सरकार की तारीफ करते हुए 14 सफल और कुछ अनोखा करने वाले किसानों की कहानी छापी है.
‘देश की दशा और दिशा बदल रहे किसान’ शीर्षक से छपी इस रिपोर्ट की शुरुआत में रिपोर्टर राकेश सैन लिखते हैं, ‘‘वर्तमान में कृषि सुधार कानूनों को लेकर खूब हो-हल्ला मचा है. आंदोलजीवी किसानों को फुसला रहे हैं कि केंद्र द्वारा लाए गए ये कानून उनको बर्बाद कर देंगे. परंतु धरातल पर वस्तुस्थिति कुछ और दिखाई दे रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के प्रयास खेतों व किसानों के जीवन में बदलाव लाते दिखाई दे रहे हैं. अनेक भूमिपुत्र अपनी मेहनत और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर देश की दशा और दिशा बदलने में जुटे है.’’
रिपोर्ट में आगे लिखा है- ‘‘इन भूमिपुत्रों से जब इनके खेत में जाकर बात की गई तो सुखद अनुभव हुआ और देश में खेती किसानी को लेकर उभरते जोश की अनुभूति हुई. ऐसे ही कुछ बदलाव लाने में जुटे किसानों से हुई बातचीत गौर करने लायक है.’’
पत्रिका ने दावा किया है कि इन किसानों से उनके खेत पर उन्होंने मुलाकात की लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि इस रिपोर्ट में शामिल सभी किसानों की कहानी अलग-अलग वेबसाइट से सीधे उठा ली गई है. कुछ कहानियां शब्दशः छापी गई हैं, कुछ में मामूली बदलाव किया गया है. यहां तक की कई किसानों की तस्वीर भी जहां से स्टोरी उठाई गई है, वहीं से ली गई है. लेख में कहीं भी उन वेबसाइट को या उनके पत्रकारों को क्रेडिट नहीं दिया गया है.
मोदी सरकार की तारीफ करने के लिए मनमोहन सरकार के दौर की स्टोरी छापी
पत्रिका ने मोदी सरकार की तारीफ करने के लिए राजस्थान के जयपुर जिले के कीरतपुरा गांव के रहने कैलाश चौधरी की कहानी छापी है. लेकिन यह कहानी असल में साल 2010 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने छापी थी. एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा. कहानी आईसीएआर की और तारीफ मनमोहन सिंह सरकार के दौर की. लेकिन पान्चजन्य ने दोनों को मथकर मोदी सरकार की तारीफ वाली लस्सी तैयार कर दी.
पाञ्चजन्य ने 72 वर्षीय कैलाश चौधरी की सिर्फ कहानी ही आईसीएआर की वेबसाइट से नहीं चुरायी है बल्कि बिल्कुल वही तस्वीर भी उठा ली है जो आईसीएआर पर छपी थी. आईसीएआर ने ये खबर 2010 में अपनी वेबसाइट पर छापी है. तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे.
हमने कैलाश चौधरी से बात की. उन्होंने पाञ्चजन्य के रिपोर्टर से किसी भी तरह की बातचीत से सीधा इनकार किया. वे कहते हैं, ‘‘मुझसे पाञ्चजन्य के किसी आदमी ने बात नहीं की. जिस कहानी की आप बात कर रहे हैं वो तो दस साल पहले छपी थी. उस तस्वीर में मैं हरजी राम बुरडकजी के साथ हूं. तब वे राजस्थान के कृषि मंत्री हुआ करते थे. उन्हें मैं अचार दिखा रहा हूं. अब तो मैंने अचार का काम भी बंद कर दिया है. हरजी राम बुरडक का भी निधन हो गया है.’’
देश में चल रहे किसान आंदोलन की कुछ मांगों से जहां कैलाश चौधरी सहमत नज़र आते हैं तो कुछ मांगों से असहमत. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘एक तो सबको न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिले, उनकी इस मांग का हम समर्थन करते हैं. जहां तक रही तीनों कानूनों को रद्द करने की बात तो इसको लेकर हमारा मानना है कि उसमें जो गलत है उसका संशोधन किया जाए.’’
पत्रिका ने मुख्य रूप से दैनिक जागरण और ‘अपनी खेती’ नाम की संस्था से स्टोरी उठाई है.
दैनिक जागरण से कॉपी
किसान आंदोलन के दौरान दैनिक जागरण के कवरेज पर लगातार सवाल खड़े हुए. जागरण संदिग्ध रूप से किसान आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में अपने चार प्रचार वैन भेजकर योगी सरकार की कृषि से जुड़ी योजनाओं को प्रोमोट कर रहा था. प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ भ्रामक खबरें प्रकाशित कर रहा था. विरोध में किसानों ने अख़बार की प्रतियां भी जलाई.
पाञ्चजन्य ने अपनी स्टोरी में शामिल 14 कहानियों में से सात कहानी दैनिक जागरण से उठाई है. हैरानी की बात यह है कि दैनिक जागरण की एक स्टोरी को तीन भाग में करके पत्रिका ने तीन लोगों की कहानी बता दी है. यहां कुछ वाक्य शब्दशः तो कुछ थोड़े से बदलाव के साथ उठाए गए हैं.
दैनिक जागरण ने 25 फरवरी, 2021 को 'हटे बिचौलिये, खुली मुनाफे की राह, किसान उत्पादक संगठन योजना से पंजाब में किसान हो रहे मालामाल' शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की थी. अपनी इस रिपोर्ट में जागरण ने कुछ किसानों से बातचीत का दावा करते हुए बताया है कि पंजाब के ये किसान तीनों कृषि कानून से खुश हैं. उन्हें लगता है कि नए कानून से किसानों का भला होगा. जागरण ने अपनी स्टोरी में जिन किसानों से बात की उनमें से किसी की तस्वीर नहीं लगाई है साथ ही ये किसान किस गांव के रहने वाले हैं यह भी नहीं बताया. सिर्फ उनके जिले का जिक्र है.
जागरण की इस एक रिपोर्ट को पाञ्चजन्य ने तीन भागों में बांटकर लिखा है. जागरण और पत्रिका की खबरों की शुरुआत में कुछेक शब्दों की हेरफेर की गई है. मसलन, जागरण ने लिखा है- “केंद्रीय कृषि विभाग की छह से अधिक एजेंसियां इन किसान समूहों का सहयोग कर रही हैं. इन्हें सरकार सब्सिडी भी दी दे रही है.” पाञ्चजन्य ने सब्सिडी वाला वाक्य हटा दिया है. बाकी वैसे ही लिख दिया है.
जागरण ने अपनी रिपोर्ट में उपशीर्षक लिखा है- “आढ़ती को कमीशन नहीं, किसानों को भरपूर मुनाफा”. पाञ्चजन्य ने इसे बदलकर लिखा दिया है- ‘कोई कमीशन नहीं, किसान मुनाफे में’. बाकी खबर में पाञ्चजन्य ने जागरण के होलसेल रेट को थोक मूल्यों और रिटेल रेट को खुदरा मूल्यों में बदल दिया है, बाकी सब कुछ एक जैसा ही है.
जागरण ने अपनी स्टोरी में उपशीर्षक ‘बड़ी फार्मा कंपनियों को सप्लाई कर रहे शहद’ लिखा है जिसे पाञ्चजन्य ने बदलकर ‘फार्मा कंपनियों को शहद की आपूर्ति’ कर दिया है. जागरण ने ‘ग्रुप’ लिखा है उसे पाञ्चजन्य ने ‘समूह’ कर दिया है. बाकी पूरी कहानी जस की तस है.
'ना मेरे पास जागरण वाले आए और ना पाञ्चजन्य वाले'
पाञ्चजन्य ने मोहाली जिले के तंगोरी गांव के रहने वाले किसान सुरजीत सिंह की सफलता की कहानी लिखी है. सुरजीत सिंह पंजाब पुलिस से रिटायर होकर जैविक खेती करते हैं.
सुरजीत सिंह की कहानी दैनिक जागरण ने अपनी वेबसाइट पर 14 दिसंबर, 2020 को प्रकाशित की थी. जिसका शीर्षक 'पंजाब के किसान सुरजीत सिंह ने किए खेती में अद्भुत प्रयोग, बिजाई से पहले ही फसल की बुकिंग' है.
वहीं पाञ्चजन्य ने अपनी खबर का शीर्षक ‘जैविक खेती को जीवन में मिशन बनाया: सुरजीत’ दिया है. बाकी पूरी खबर एक जैसी है. कुछ एक शब्द को बदल दिया गया है. जागरण की स्टोरी लम्बी है तो उसके कुछ हिस्सों को पाञ्चजन्य ने हटा दिया है.
न्यूजलॉन्ड्री ने फोन पर 66 वर्षीय सुरजीत सिंह से बात की. वे कहते हैं, ‘‘मुझसे तो जागरण के लोग भी नहीं मिलने आए थे. विभाग (कृषि) के लोगों ने उन्हें बताया था तो उन्होंने लिख दिया था. पाञ्चजन्य वाला भी कोई मेरे पास नहीं आया था.’’
एक तरफ जहां पाञ्चजन्य ने किसान आंदोलन की आलोचना करते हुए सुरजीत की सफलता की कहानी छापी है वहीं सुरजीत खुद किसानों के आंदोलन का हिस्सा हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मेरा तो पूरा पिंड सिंधु बॉर्डर पर ही है. मेरा बेटा अभी वहीं है. मैं खुद सात दिन रहकर पिछले दिनों लौटा हूं. सरकार को तीनों कानूनों को वापस लेना होगा नहीं तो हम अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार है.’’
क्या आप जो काम कर रहे हैं उसमें सरकार कोई सहयोग करती है. इस सवाल पर हंसते हुए सुरजीत कहते हैं, ‘‘ना जी कोई मदद नहीं करता है. मैं जैविक खेती करता हूं तो खाद भी उसके लिए खुद ही तैयार करता हूं. यहां तो जैविक खेती का मार्केट भी नहीं है. मैं खुद ही उसे बेचता हूं. जैसे मैं जैविक गन्ना का उत्पादन करता हूं तो खुद ही गुड़ बनाता हूं. मैं तो खुद से काम करता हूं. सरकार मदद करती तो हम आंदोलन ही नहीं करते.’’
बातचीत के दौरान सुरजीत को लगा कि हम शायद पुलिस या बीजेपी से है. इसके बाद उन्होंने कहा, ‘‘तुम पत्रकार हो तो अच्छी बात है. अगर बीजेपी वाले हो तो जान लो पीछे नहीं हटेंगे. कुर्बानी ज़रूर करेंगे.’’
जैसा की स्टोरी की शुरुआत में इस बात का जिक्र है कि किसान आंदोलन के दौरान जागरण चालाकी भरी रिपोर्टिंग के जरिए यह साबित करता रहा कि देश के ज़्यादातर किसान केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों से बेहद खुश है. इसी तरह की एक स्टोरी पंजाब से जागरण ने 6 दिसंबर, 2020 को की थी. यह वह समय था जब किसान दिल्ली की सरहद पर आए ही थे.
‘पंजाब के दो प्रगतिशील किसानों ने समझाया कैसे फायदेमंद हैं Agricultural Laws, कहा- खुलेगी नई राह’ शीर्षक से लिखी स्टोरी में जागरण ने बताया कि कृषि कानूनों से बठिंडा के किसान जसकरण सिंह और बलविंदर सिंह खुश है. उन्हें लग रहा है कि इससे उन्हें फायदा होगा. पाञ्चजन्य ने अपना शीर्षक ‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से होगा लाभ’ देते हुए जागरण की स्टोरी में थोड़ा बहुत बदलाव कर छाप दिया है. हैरानी की बात है कि जो तस्वीर जागरण ने इस्तेमाल की है वहीं तस्वीर पाञ्चजन्य में भी इस्तेमाल किया गया है.
न्यूजलॉन्ड्री ने जसकरण और बलविंदर सिंह से बात करने की कोशिश की. इसके लिए हमने बठिंडा जागरण के ब्यूरो प्रमुख गुरु प्रेम लहरी से मदद मांगी लेकिन वो हमें इन दोनों प्रगतिशील किसानों का नंबर उपलब्ध नहीं करा पाए. हमने खुद से भी इन किसानों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन हमें सफलता नहीं मिली.
दैनिक जागरण ने 8 जनवरी, 2020 को बिहार के मोतिहारी के कुछ गांवों की स्टोरी की थी. जहां आईसीएआर द्वारा बीते चार सालों से कुछ गांवों को गोद लेकर किसानों को जागरूक करने का अभियान चल रहा है. इसका फायदा किसानों को हो रहा है. इस स्टोरी को थोड़े बहुत बदलाव के बाद पाञ्चजन्य ने छापी है. कुछ वाक्य एक जैसे ही है.
न्यूजलॉन्ड्री ने गोद लिए चार गांवों में से एक जसौली पट्टी के रविंद्र सिंह से बात की. सिंह ने हमें बताया, ‘‘आईसीएआर के सहयोग से ना सिर्फ मेरा उत्पादन बढ़ा बल्कि आमदनी में भी वृद्धि हुई. उन्होंने हमें खाद और बीज उपलब्ध कराने के अलावा सलाह भी दिया. उनके सलाह से पशुपालन में भी मैं बेहतर किया.’’
आईसीएआर के सहयोग से रविन्द सिंह का उत्पादन तो बढ़ गया लेकिन बेचने के मार्केट नहीं है. सिंह, आलू की खेती करते हैं, साथ में मक्का भी उपजाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मक्का तो हम अपनी मुर्गियों को खिला देते हैं. आलू कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं और अगले साल जब बुआई का समय आता है तो निकालकर बेच देते हैं.’’
इसके अलावा एक और स्टोरी जागरण से पाञ्चजन्य ने उठाई है. यह स्टोरी जागरण ने एक अप्रैल को ही छापी है. इसमें जागरण ने पंजाब के फरीदकोट जिले में मनरेगा के तहत बने तालाबों के बारे में बताया है. जागरण की स्टोरी में जो दर्शन सिंह सरपंच हैं, पाञ्चजन्य की स्टोरी में वे किसान हो जाते हैं. बाकी स्टोरी एक जैसी ही है.
पांच किसानों की कहानी ‘अपनी खेती’ वेबसाइट से
पंजाब के मोहाली से ‘अपनी खेती’ नाम की एक वेबसाइट चलती है. इस वेबसाइट के जरिए किसानों को खेती की सलाह देने के साथ ही उन किसानों की भी कहानी सामने लाई जाती है जो कृषि के क्षेत्र में बेहतर कर रहे हैं.
पाञ्चजन्य ने अपनी स्टोरी में पांच किसानों की कहानी इसी वेबसाइट से उठाई है. किसी को शब्दशः तो किसी में मामूली बदलाव के साथ. इसमें से ज़्यादातर स्टोरी ‘अपनी खेत’' पर साल 2019-20 में लिखी गई है.
‘खेती देखने तो सीएम और कृषि मंत्री तक आए लेकिन..’
देहरादून के विवेक उनियाल सेना से रिटायर होने के बाद से मशरूम की खेती कर रहे हैं. खेती करने के साथ-साथ वो बीजेपी से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं.
विवेक न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अपनी खेती के लोगों ने साल 2019 में मेरी कहानी छापी थी. जहां तक पाञ्चजन्य वालों से बातचीत का सवाल है तो मेरी उनसे कोई बातचीत नहीं हुई है. मुझसे किसी ने संपर्क नहीं किया.’’
विवेक की कहानी में थोड़े बहुत बदलाव के साथ पाञ्चजन्य ने छाप दिया है. मसलन जहां ‘अपनी खेती’ में लिखा है, मशरूम फार्मिंग के साथ ही विवेक जैविक खेती की तरफ भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. पिछले 2 वर्षों से वे जैविक खेती कर रहे हैं. वहीं पाञ्चजन्य ने अपने यहां 2 वर्ष की जगह कई वर्ष कर दिया है. इसके अलावा सब कुछ एक जैसा ही है.
पाञ्चजन्य ने विवेक की तस्वीर भी अपनी खेती वेबसाइट से उठाई है.
न्यूजलॉन्ड्री ने उनियाल से फोन पर संपर्क किया. वे अपने काम को लेकर बताते हैं, ‘‘2016 से मशरूम की खेती कर रहा हूं. खेती करने के अलावा ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाता हूं. एग्रीकल्चर कॉलेजों के छात्र प्रैक्टिकल करने के लिए मेरे यहां आते हैं. उत्तराखंड में अब तक करीब 50 के ऊपर लोगों के प्लांट लगवा चुका हूं.’’
आपको सरकार से कोई मदद मिलती है. इस सवाल के जवाब में उनियाल कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं, कोई मदद नहीं मिलती है. जब से मैं इस क्षेत्र में आया तब से बीजेपी की ही सरकार यहां रही है. त्रिवेंद्र रावत जी तो मेरे प्लांट में आए थे. इसके अलावा केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' जी भी आ चुके हैं. यहां के कृषि मंत्री भी आ चुके हैं लेकिन कभी किसी ने सपोर्ट नहीं किया.’’
दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन से उनियाल असहमत नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘पुरानी व्यवस्था से किसानों को फायदा नहीं हो रहा था. किसान आत्महत्या कर रहे थे. ऐसे में सरकार उसमें बदलाव कर रही है तो इसमें प्रदर्शन की क्या ज़रूरत. किसान पुरानी व्यवस्था क्यों मांग रहे हैं. मंडी के बाहर अगर कोई बेहतर मूल्य दे रहा तो क्यों न बाहर ही बेचा जाए. मंडी में ही बेचने की क्या ज़रूरत.’’
पाञ्चजन्य ने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के त्रिपाठी बंधु की कहानी भी अपनी खेती से उठाई है. विवेक उनियाल की तरह सिर्फ खबरें ही नहीं तस्वीर भी छाप दी है.
अमितेश और अरुणेश त्रिपाठी की कहानी ‘अपनी खेती’ ने काफी डिटेल में छापी है. जिसे पाञ्चजन्य ने काट-छांट कर छाप दिया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने बहराइच के कई बड़े केला किसानों से इनके बारे में जानने के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई भी हमें इनके बारे में बता नहीं पाया.
पाञ्चजन्य ने विवेक और त्रिपाठी बंधु की तरह जसवंत सिंह सिद्धु की कहानी भी थोड़ी फेरबदल के बाद छाप दी है. जसवंत सिंह कहां के रहने वाले हैं यह ‘अपनी खेती’ वेबसाइट ने भी नहीं बताया और ना ही पाञ्चजन्य ने, ऐसे में इनकी तलाश करना हमारे लिए मुश्किल रहा. पाञ्चजन्य के रिपोर्टर ने तस्वीर भी वेबसाइट से ही उठाई है.
सरकार मदद कर रही है, किसान आंदोलन भी ज़रूरी
पाञ्चजन्य ने हरियाणा के झज्जर जिले की मिल्कपुर गांव की रहने वाली मुकेश देवी की कहानी प्रकाशित की है. मुकेश देवी अपने पति जगपाल फोगाट के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन का काम कर रही है. यह कहानी भी ‘अपनी खेती’ वेबसाइट से ही उठाई गई है. विवेक, त्रिपाठी बंधु और जसवंत सिंह की तरह मुकेश देवी की सिर्फ कहानी नहीं बल्कि तस्वीर भी ‘अपनी खेती’ से ही उठाई है.
न्यूजलॉन्ड्री ने मुकेश देवी से संपर्क किया. मुकेश तो हमसे बात नहीं की लेकिन उनके पति जगपाल फोगाट ने हमसे बात की. फोगाट पाञ्चजन्य के किसी रिपोर्ट से बात होने से इनकार करते हैं. वहीं सरकारी मदद के सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘सरकार की तरफ से हमें कई तरह की मदद लगातार मिल रही है. हमें समय-समय पर ट्रेनिंग मिलती है. विशेषज्ञ हमें मधुमक्खी पालन के बारे में बताते हैं.’’
जगपाल एक तरफ दावा करते हैं कि उन्हें सरकार से मदद भी मिलती है वहीं दूसरी तरफ वे टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में भी शामिल हो चुके है. आखिर ऐसा क्यों? इस सवाल के जवाब में वो संतुष्ट होने वाला जवाब नहीं देते हैं. कहते हैं, ‘‘किसान है तो जाते हैं.’’ आंदोलन सही है या गलत इसका भी वे कोई खास जवाब नहीं देते. नाराज़ हो जाते हैं.
‘सरकार से एक पैसा भी मदद नहीं मिलती’
हरियाणा के सिरसा जिले के मटदादू गांव के रहने वाले किसान शमशेर सिंह संधु की कहानी भी पाञ्चजन्य ने ‘अपनी खेती’ वेबसाइट से उठायी है. सिंह के बारे में ‘अपनी खेती’ ने साल 2019 के आखिरी महीनों में छापी थी. किस तारीख या किस महीने में छपी थी, यह शमशेर सिंह को याद नहीं है.
सालों से बीजों को लेकर काम करने वाले 66 वर्षीय शमशेर सिंह से पाञ्चजन्य के रिपोर्ट ने कभी संपर्क नहीं किया. ये जानकारी हमें सिंह देते हैं. बाकियों की तरह शमशेर सिंह की कहानी भी काट-छांट कर पाञ्चजन्य ने प्रकाशित की है. तस्वीर भी ‘अपनी खेती’ से ही लिया गया है.
एक तरफ जहां पाञ्चजन्य ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इन किसानों को मोदी सरकार का सहयोग मिला. इसको लेकर सिंह कहते हैं, ‘‘नहीं सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिलती है. एक पैसे की मदद नहीं मिलती.’’
किसान आंदोलन को लेकर शमशेर सिंह कहते हैं, ‘‘मैं ओवरएज हो गया हूं इसलिए कहीं जाता नहीं. वैसे मुझे कुछ नहीं कहना. हो सकता है वे अपनी जगह सही हों. मैं ना ही किसान आंदोलन के खिलाफ हूं और ना ही समर्थन में हूं.’’
न्यूजलॉन्ड्री ने अपनी खेती के प्रमुख हुनर बरार से बात की. उन्होंने बताया, ‘‘मुझे परमिशन देने की जानकारी तो नहीं है. हालांकि आप हमारी वेबसाइट से कुछ उठा सकते हैं. कोई मनाही नहीं है.’’ लेकिन आपको लगता है कि बिना क्रेडिट दिए छापना गलत है. इस सवाल के जवाब में कहते हैं, ‘‘अगर वो देते है तो ठीक बात है.’’
दैनिक जागरण और अपनी खेती के अलावा पाञ्चजन्य ने एक ‘एक्सेस एग्रीकल्चर’ नाम की वेबसाइट से भी खबर उठाई है. यह कहानी बिहार के 27 वर्षीय नीरज कुमार की है, नीरज बिहार के लखीसराय जिले के दुरडीह गांव के रहने वाले हैं. वहां से 'खेती' नाम का एनजीओ चलाते है. पाञ्चजन्य ने एक-एक शब्द एक्सेस एग्रीकल्चर से कॉपी की है.
न्यूजलॉन्ड्री ने नीरज से बात की. पाञ्चजन्य के रिपोर्टर ने आपसे संपर्क किया था, इस सवाल का जवाब नीरज ना में देते हैं.
‘खेती’ एनजीओ बिहार के अलग-अलग गांवों के किसानों को खेती के प्रति जागरूक करने का काम करता है. किसानों को वीडियो के जरिए बेहतर खेती के गुण सिखाये जाते हैं. नीरज बताते हैं, ‘‘बिहार में ज़्यादातर किसान सिर्फ धान-गेहूं की खेती करते हैं. हम इस मोनोपोली को कम करने की बात कर रहे हैं. इसके अलावा खेतों के कौन सा पेड़ लगाया जाए ताकि किसानों को फायदा हो इसकी जानकारी भी किसानों को दे रहे हैं.’’
क्या इन सब में सरकार से मदद मिलती है. इस सवाल के जवाब में नीरज कहते है, ‘‘हम जो भी काम कर रहे हैं उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है. हम अपनी कोशिश से काम कर रहे हैं. अभी हम पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम करते हैं. सरकार को जबतक हम कुछ दिखाए नहीं तब तक वो कुछ सुनती नहीं है.’’
किसान आंदोलन को लेकर जब हमने नीरज से सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘जो किसान आंदोलन कर रहे उसमें ज़्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. एपीएमसी और एमएसपी का मुद्दा बिहार में है ही नहीं. अब सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई है जिससे किसी को नुकसान हो या न हो पंजाब-हरियाणा के किसानों को तो होगा ही होगा. वो गलत नहीं कर रहे हैं. मैं उनके समर्थन में हूं. जो कृषि कानून है उसे पहले किसी एक राज्य में लागू किया जाए. वहां उसका क्या असर होता है यह किसान जान जाएंगे.’’
बिना इजाजत पाञ्चजन्य ने उनकी कहानी प्रकाशित की है. इसको लेकर नीरज कहते हैं, ‘‘हमको तो इसके बारे में जानकारी ही नहीं है. लेकिन अगर बिना पूछे छापे हैं तो यह गलत किए हैं. कम से कम फोन तो कर ही लेना चाहिए था.’’
इस पूरे मामले पर न्यूजलॉन्ड्री ने पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर से संपर्क किया. हमने उनसे पूछा की अलग-अलग वेबसाइट से खबरें उठाकर लगाई गई. उन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया गया है. क्या उन वेबसाइट से इसकी इजाजत ली गई थी? इसपर शंकर कहते हैं, ‘‘विषय ध्यान में आया है. इस संदर्भ में संबंधित संवाद सूत्र से स्पष्टीकरण मांगा गया है. उनका जवाब आ जाने के बाद तथ्यों को देखते हुए निश्चित ही अपेक्षित कार्यवाही की जाएगी.’’