हरियाणा के गांवों से उठती आवाज: बेटी, पहलवानी और पगड़ी बचाओ

विनेश फौगाट के गांव बलाली सहित हरियाणा के तमाम गांवों के लिए पहलवानों की लड़ाई सम्मान, पहलवानी बचाने और बेटियों के सुरक्षा की लड़ाई बन चुकी है. उधर, सरकार ने भी पहलवानों और जनता के तेवर देख अपने रुख में नरमी के संकेत दिए हैं.

WrittenBy:अनमोल प्रितम
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28 मई को दिल्ली पुलिस द्वारा जंतर-मंतर से आंदोलनरत पहलवानों का धरना खत्म किए जाने को सरकार भले ही अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही हो लेकिन हकीकत इसके उलट है. हमने चार दिन तक हरियाणा के रोहतक, झज्जर, चरखी दादरी, जींद और कुरुक्षेत्र के ग्रामीण इलाकों से गुजरते हुए पाया कि हर जगह पहलवानों को लेकर ही चर्चा हो रही है.

विनेश फौगाट के गांव बलाली सहित तमाम गांव-कस्बों से गुजरते हुए दो बातें साफ तौर पर महसूस की जा सकती हैं. पहली- महिला पहलवानों की लड़ाई हरियाणा के लोगों के लिए सम्मान और पहलवानी बचाने की लड़ाई बन गई है. दूसरी-महिला पहलवान और उनके परिजनों के बीच भविष्य को लेकर असुरक्षा का भाव का पैदा होना. 

विनेश फौगाट के गांव बलाली के सरपंच बिंदराज सांगवान कहते हैं, "इज्जत से बढ़कर कुछ नहीं होता. हमारी बेटियां अगर अपना सब कुछ दांव पर लगा कर न्याय की मांग कर रही हैं तो जरूर उनकी बात में सच्चाई है. बेटियों की इज्जत और पहलवानी बचाने के लिए हमें जो भी करना पड़े, हम करेंगे लेकिन पीछे नहीं हटेंगे."

खानपुर खुर्द गांव की दो बहनें अंजली और सुनीता कई बार नेशनल खेल चुकी हैं. इनका सपना है कि वह देश के लिए ओलंपिक मेडल लाएं. लेकिन अब उन्हें अपने भविष्य को लेकर चिंता हो रही है. 

अंजली कहती हैं, “विनेश और साक्षी दीदी अपने लिए नहीं हमारे लिए आवाज उठा रही हैं. ताकि भविष्य में हमारे साथ कुछ गलत न हो, अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो जब हमारे साथ गलत होगा तो हमें कहां से न्याय मिलेगा."

वहीं कबड्डी खिलाड़ी नवीन के पिता बुधराम भी अपनी बेटी के भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. बुधराम खुद कबड्डी ट्रेनर हैं और अपनी बेटी के साथ गांव की 15 और लड़कियों को ट्रेनिंग देते हैं. 

बुधराम कहते हैं, "अगर ओलंपिक मेडल लाने वाली बेटियां सुरक्षित नहीं हैं तो हम जैसे गरीब लोगों की बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा. बृजभूषण जैसे लोग अगर सिस्टम में रहेंगे तो हम अपनी बेटियों को खेल में आगे कैसे भेज पाएंगे? बेटी की इज्जत दांव पर लगाने से अच्छा होगा कि हम उसे बाहर खेलने ही न भेजें." 

महिला पहलवान अंजलि हो, बुधराम या फिर बलाली गांव के सरपंच इन सब की बातों में रोष, चिंता और असुरक्षा की भावना के पीछे दो घटनाएं जिम्मेदार नजर आती हैं.

पहली दिल्ली पुलिस द्वारा 28 मई को पहलवानों को घसीटने, कथित तौर पर मारपीट करने और गिरफ्तार किए जाने की घटना ने जहां आम लोगों के मन में पहलवानों के लिए हमदर्दी पैदा की है. वहीं दूसरी तरफ, सात महिला पहलवानों द्वारा कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर की डिटेल्स सामने आने के बाद लोगों के अंदर यह मान्यता आ गई है कि पहलवानो के आरोप सही हैं और सरकार बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार नहीं करके पहलवानों के साथ नाइंसाफी कर रही है.

कृष्ण कुमार झज्जर जिले के खानपुर खुर्द गांव में अखाड़ा संचालित करते हैं. उनके अखाड़े में करीब 60 पहलवान रोजाना अभ्यास करते हैं. उनके द्वारा सिखाए गए कई पहलवान नेशनल और एशियाई कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं और मेडल भी जीत चुके हैं. अखाड़े की दीवारों पर विनेश फौगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया, गीता और बबीता फौगाट के पोस्टर लगे हैं. 

पोस्टर की तरफ इशारा करते हुए किशन कुमार बताते हैं, "यह लड़कियां (विने‌श फौगाट, साक्षी मलिक) सिर्फ खिलाड़ी नहीं हैं. हमारे समाज के लिए बदलाव की प्रतीक हैं. इन लड़कियों को देखकर समाज की सैकड़ों लड़कियों और मां-बाप में यह भरोसा आया कि वह भी देश-दुनिया में उनका नाम रोशन कर सकती हैं और आज उन्हीं लड़कियों के मान-सम्मान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है." 

वह आगे कहते हैं, "सरकार महिला खिलाड़ियों की बात न सुनकर देश की लाखों लड़कियों के साथ अन्याय कर रही है. यह मसला सिर्फ विनेश और साक्षी का नहीं है बल्कि उन लाखों लड़कियों का है, जो आगे बढ़ना चाहती हैं, देश और समाज के लिए कुछ करना चाहती हैं."

विनेश फौगाट के ताऊ और गीता-बबीता के पिता महावीर फौगाट बलाली गांव में कुश्ती अकादमी चलाते हैं. महावीर फौगाट बताते हैं, "जब मैंने अपनी बेटियों को पहलवानी शुरू कराई थी तो उस वक्त हरियाणा क्या देश में कोई लड़कियों से पहलवानी नहीं कराना चाहता था. लेकिन मैंने खुद गांव-समाज से लड़कर बेटियों को उस मुकाम तक पहुंचाया. जिससे लोगों के अंदर यह भावना आई कि लड़कियां भी आगे बढ़ सकती हैं और गोल्ड मेडल ला सकती हैं."

वह कहते हैं, "किसी को पहलवान बनाने के लिए एक गरीब मां-बाप को बहुत परेशानियों से गुजरना पड़ता है. एक पहलवान पर एक साल का कम से कम एक लाख रुपए खर्च आता है. मैंने खुद अपनी बेटियों के लिए अपनी जमीन बेची थी. लेकिन आज फेडरेशन के अंदर जो हो रहा है, उससे महिला खिलाड़ियों और उनके परिजनों के बीच बहुत गलत संदेश जा रहा है. मेरी अकादमी में पहलवानी कर रही चार लड़कियों को उनके परिजन वापस घर लेकर चले गए. उनका कहना था कि जब आगे बेटियां सुरक्षित ही नहीं रहेंगी तो फिर खेलने से क्या फायदा?"

कुल मिलाकर, हरियाणा के लगभग हर गांव में छोटी-बड़ी पंचायतें हो रही हैं. यहां तक कि विनेश फौगाट के गांव बलाली में महावीर फौगाट खुद पंचायतों में हिस्सा ले रहे हैं. महिलाएं मंदिरों में पूजा-पाठ कर रही हैं. सरकार समझे या नहीं समझे लेकिन हरियाणा के लोग यह स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं कि खिलाड़ी सही हैं और उनके साथ न्याय होना चाहिए. 

खेलमंत्री से बातचीत के बाद प्रदर्शन स्थगित

उधर, पहलवानों की ओर बढ़ते जन समर्थन को देखते हुए सरकार ने भी पहलवानों से बातचीत शुरू कर दी है. जहां एक तरफ बीते शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह ने पहलवानों से मुलाकात की. वहीं 7 जून को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी मुलाकात की. बातचीत के बाद पहलवानों ने 15 जून तक अपने प्रदर्शन को स्थगित कर दिया है.

खिलाड़ियों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के सामने कुल पांच मांग रखी हैं.

  1. बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज मामले की जांच 15 जून तक पूरी की जाए.

  2. 30 जून तक भारतीय कुश्ती महासंघ का चुनाव संपन्न कराया जाए.

  3. भारतीय कुश्ती महासंघ के अंदर एक आंतरिक शिकायत कमेटी बनाई जाए, जिसकी अध्यक्ष कोई महिला हो. 

  4. भारतीय कुश्ती महासंघ के किसी भी पद पर बृजभूषण शरण सिंह और उनसे संबंधित लोगों को न चुना जाए ताकि महासंघ अच्छे से काम कर सके.

  5. जिन प्रदर्शनकारी खिलाड़ियों, अखाड़ों और कोच के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं, वे सभी मुकदमे वापस लिए जाएं. 

खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि खिलाड़ियों से छह घंटे तक लंबी बातचीत हुई. बातचीत काफी सकारात्मक रही और सभी मांगों को आपसी सहमति से मान लिया गया है.

पहलवान बजरंग पूनिया ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताया कि खेल मंत्री के भरोसे के बाद फिलहाल 15 जून तक प्रदर्शन को स्थगित कर दिया गया है.

कुल मिलाकर बात ये है कि पहलवानों के कड़े तेवर और हरियाणा-यूपी में मिलते जनसमर्थन को देखकर सरकार एक कदम पीछे हट गई है. सरकार ने पहलवानों से बातचीत के जरिए इस मसले को सुलझाने की राह पकड़ी है. हालांकि, 15 जून तक सरकार और पहलवानों के बीच शांति स्थापित हो गई है लेकिन पहलवानों ने बार-बार ये संकेत दिए हैं कि अगर इस मामले में उन्हें न्याय मिलता नजर नहीं आता है तो वे लंबे संघर्ष की राह पकड़ेंगे.

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