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एनएल चर्चा 265: मणिपुर हिंसा पर चुप्पी और फ्रीडम इंडेक्स में रसातल की ओर जाता भारतीय मीडिया

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     

इस हफ्ते चर्चा में बातचीत के मुख्य विषय मणिपुर में हुई हिंसा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार का इस्तीफा देने के बाद पार्टी के दबाव में उसे वापस लेने का ऐलान, कर्नाटक चुनाव में भाजपा और कांग्रेस द्वारा घोषणा पत्रों को जारी करना, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का 161वें स्थान पर खिसकना, केंद्र सरकार के 56% प्रोजेक्ट्स देरी से चलने पर रिपोर्ट आना, विवाह के समान अधिकार (समलैंगिक विवाह) के मामले में केंद्र सरकार का रुख बदलना, दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरनारत पहलवानों की दिल्ली पुलिस से झड़प और बिहार में जातिगत जनगणना पर पटना हाईकोर्ट द्वारा रोक की घोषणा रहे.

चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, गुवाहाटी से पत्रकार अमित कुमार (कार्यकारी संपादक, ईस्टमोजो) और वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के सह-संपादक शार्दूल कात्यायन ने किया.

चर्चा की शुरुआत करते हुए शार्दूल मणिपुर की हिंसा को लेकर अमित कुमार से सवाल करते हैं कि इस हिंसा का मूल क्या है?

अमित इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “मैती समुदाय को आदिवासी घोषित किए जाने की मांग 2013 से की जा रही है. यह मामला 27 मार्च 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट में आया. इसके बाद अदालत ने मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को आदेश दिया. 19 अप्रैल को जब ये आदेश कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ तो तब लोगों ने प्रतिक्रिया देना शुरू किया.”

इसी क्रम में शार्दूल उमाकांत से सवाल करते हैं, “बड़े बड़े मीडिया संस्थानों तक ने पूर्वोत्तर राज्यों में अपने ब्यूरो बंद कर दिए हैं. लोग अब सोशल मीडिया से खबरें उठाकर लिख रहे हैं. खबरों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न उठ रहा है. इन राज्यों में मीडिया की उपस्थिति की जो आवश्यकता है, उसके बावजूद यह सूखा क्यों है?”

उमाकांत इस सवाल के जवाब में कहते हैं, “मीडिया पूरी तरह से प्रॉफिट ओरिएंटेड हो गया है. ऐसे में मौजूदा दौर में मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारी भी प्रभावित हो रही है. सरकार द्वारा नियंत्रित और पोषित मीडिया की कोई खास क्रेडिबिलिटी बची नहीं है. वहीं, खुद को मेनस्ट्रीम कहने वाले प्राइवेट मीडिया को पूर्वोत्तर के इस मामले में अपना कोई प्रॉफिट नजर नहीं आ रहा. इसलिए वहां के मुद्दों से उन्हें कोई सरोकार नहीं है. यह मीडिया की बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है.”

मणिपुर में हिंसा के कारणों और राजनीतिक हालात क्या हैं, जानने के लिए सुनिए पूरी चर्चा. साथ ही सुनिए भारत के मीडिया की गिरती रैंकिंग पर विस्तार से बातचीत. 

टाइम कोड्स:

00:00:00 - 00:06:32 - इंट्रो व हेडलाइंस 

00:06:33 - 00:46:24 - मणिपुर हिंसा  

00:46:30 - 01:25:30 - प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग 

01:25:30 - ज़रूरी सूचना व सलाह और सुझाव

पत्रकारों की राय क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए

उमाकांत लखेड़ा 

हृदयेश द्वारा अनुवादित किताब एटकिन का हिमालय 

हृदयेश जोशी 

जॉर्ज ऑरवेल का निबंध- नोट्स ऑन नेशनलिज्म 

अमित कुमार 

कैफी आजमी की किताब सरमाया 

सुपर कमांडो ध्रुव कॉमिक्स  

शार्दूल कात्यायन 

पूजा भूला का लेख- मीडिया का मालिक कौन : इंडियन एक्सप्रेस 

धीरेन ए सदोकपम का लेख- एसटी डिमांड फॉर मैती

वेब सीरीज़ - सक्सेशन  

ट्रांस्क्राइबः तस्नीम फातिमा 

प्रोड्यूसरः आशीष आनंद 

एडिटर: उमराव सिंह 

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