समलैंगिक विवाह से संबंधित इस समय सुप्रीम कोर्ट में लगभग 20 याचिकाएं ऐसी हैं जिनमें 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू होनी है. इस मुद्दे पर केंद्र ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पिछली बार कोर्ट को ये तर्क दिया था कि "परिवार की संरचना एक पुरुष, औरत और बच्चे के ही इर्द-गिर्द की गई है.” इसके जवाब में जब हमने कुछ याचिकाकर्ताओं से बातचीत की तो उनका कहना था की पारंपरिक परिवार की परिभाषा के माध्यम से समलैंगिक समुदाय की मुश्किलों को नहीं समझा जा सकता.
दिल्ली में हाल फिलहाल में आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में समलैंगिक समुदाय के लोगों ने जन-सुनवाई के माध्यम से परिवार द्वारा हो रही घरेलू हिंसा पर प्रकाश डालने का प्रयास किया. इस दौरान 12 राज्यों के 28 लोगों ने अपनी बात रखी. इन लोगों के कथनों के आधार पर समलैंगिक समुदाय का ये मत है कि 'पारंपरिक परिवार' की अपेक्षा उनके द्वारा 'चुना गया परिवार' उनके कठिन समय में ज़्यादा मददगार साबित हुआ है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि सरकार के पारंपरिक दृष्टिकोण के चलते समलैंगिक समुदाय की ये कानूनी लड़ाई कितनी लंबी चलने वाली है. जानने के लिए देखिए ये वीडियो रिपोर्ट-
क्या मीडिया सत्ता या कॉर्पोरेट हितों के बजाय जनता के हित में काम कर सकता है? बिल्कुल कर सकता है, लेकिन तभी जब वह धन के लिए सत्ता या कॉरपोरेट स्रोतों के बजाय जनता पर निर्भर हो. इसका अर्थ है कि आपको खड़े होना पड़ेगा और खबरों को आज़ाद रखने के लिए थोड़ा खर्च करना होगा. सब्सक्राइब करें.
Subscribe Now