हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
इस हफ्ते चर्चा में बातचीत के मुख्य विषय 95वें अकादमी अवार्ड्स में भारत का प्रदर्शन, प्रवर्तन निदेशालय, कोरोना के बढ़ते मामले और देशभर में महामारी की फिर से आहट, दस्तावेज़ जाली पाए जाने पर कनाडा से लगभग 700 छात्र वापस लौटने को मजबूर, राहुल गांधी का कैंब्रिज में भाषण और उस पर भाजपा की प्रतिक्रिया, पाकिस्तान में राजनीतिक गहमागहमी में इमरान खान के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट, सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादियों का मामला संविधान बेंच को भेजा गया, विश्व में आर्थिक संकट बढ़ने के आसार के बीच कई बड़े बैंक डूबे, ईरान और सऊदी अरब के बीच चीन की मध्यस्थता में आर्थिक संधि और महाराष्ट्र में शिवसेना पर अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आदि सुर्खियों का भी ज़िक्र हुआ.
बतौर मेहमान इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार कावेरी बामज़ाई, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और सह-संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन अतुल चौरसिया ने किया.
ऑस्कर अवार्ड्स को लेकर चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कावेरी से सवाल करते हैं, “यह जो 95वां अकादमी अवार्ड है, इसमें काफी विविधता देखने को मिल रही है. भारतीय सिनेमा को रिप्रजेंटेशन मिला है इसके अलावा भी अन्य गैर अंग्रेजी भाषी फिल्मों को जगह मिली है. इस विविधता को आप किस रूप में देखती हैं?
जवाब देते हुए कावेरी कहती हैं, “यह बात तो है कि ऑस्कर पिछले दस सालों से यह कोशिश कर रहा है कि उसमें विविधता दिखाए. जो ऑस्कर सो व्हाइट कैंपेन हुआ था, उसके बाद उन्होंने ब्लैक, वीमेन, एशियन - इन सभी विविधताओं को अपनाने की कोशिश की और नॉमिनेशंस की संख्या भी बढ़ा कर पांच से दस कर दी जिससे ज़्यादा लोगों को रिप्रेजेंट किया जा सके.”
इसी विषय पर अपने विचार रखते हुए आनंद कहते हैं, “जो विविधता है, उसमें गैर साहित्यिक पैमाने पर अवार्ड्स को आंकना, पूर्ति की भावना नहीं पैदा कर पाता. जो सिनेमैटिक क्वालिटी है वो सिनेमेटिक पैमाने पर आंकी जाए और जो साहित्यिक हुनर है उसे साहित्य के पैमाने से ही तय किया जाना चाहिए. सिनेमेटिक क्वालिटी को दरकिनार कर विविधता का प्रतिनिधित्व समस्या पैदा करने वाली बात है. मूल्यांकन कलात्मक पक्ष पर ही हो तो अच्छी बात है.”
शार्दूल अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं, “आज की जो संस्कृति है उसमें ऑस्कर जैसे अवार्ड्स अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं और यह विविधता इसी प्रासंगिकता को बनाए रखने का तरीक़ा है. हॉलीवुड का जो कल्चर है, वहां लहर चलती हैं. अभी एक लहर चल रही है, कल वह बदल जाएगी, वहां जो खालीपन और नस्लवाद आदि हैं उससे निपटने का यह एक तरीक़ा है और अगर इंडस्ट्री बदल रही है तो यह अच्छी बात है.”
टाइमकोड्स
00:00:00 - 00:11:10 - हेडलाइंस व जरूरी सूचनाएं
00:11:14 - 00:43:15 - अकादमी अवार्ड
00:43:16 - 01:01:36 - राहुल गांधी के बयान पर संसद में बवाल
01:01:37 - 01:03:57 - आरएसएस की प्रतिनिधि सभा
01:03:58 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
आनंद वर्धन
पैट्रिक फ्रेंच की किताब - द वर्ल्ड इज़ व्हाट इट इज़ और यंगहस्बैंड
कावेरी बामज़ाई
सोनी लिव की वेब सीरीज - रॉकेट बॉयज
नंदिता दास की फिल्म - ज़्विगाटो
शार्दूल कात्यायन
जर्मन फिल्म- ऑल क्वाइट ऑन द वेस्टर्न फ्रंट
फिल्म - क्रिस रॉक : सेलेक्टिव आउटरेज
वेब सीरीज़ - वी ओन दिस सिटी
अतुल चौरसिया
ऑस्कर विजेता - द एलीफैंट व्हिस्पेरेर्स
फिल्म - कुत्ते
ट्रांसक्राइब - तस्नीम ज़ैदी
प्रोड्यूसर - चंचल गुप्ता
एडिटिंग - उमराव सिंह
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