आगामी जी-20 सम्मेलन और 26 जनवरी के मद्देनजर दिल्ली शहरी आवास सुधार बोर्ड ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से 16-20 जनवरी के बीच विशेष अभियान चलाया. इसके अंतर्गत कश्मीरी गेट, यमुना बाजार और यमुना पुश्ता इलाके में सड़क पर सोने वाले बेघर मजदूरों को दिल्ली के अलग-अलग रैन बसेरा में शिफ्ट किया गया. इस दौरान कश्मीरी गेट से करीब 200 मजदूरों को जबरन गाड़ियों में भरकर द्वारका, गीता कॉलोनी और रोहिणी के रैन बसेरे में छोड़ दिया.
मजदूरों का कहना है कि उन्हें उठाते समय दिल्ली पुलिस और दिल्ली शहरी आवास सुधार बोर्ड के अधिकारियों द्वारा कहा गया कि यह अभियान उनको ठंड से बचाने के लिए है, सुबह होते ही उनको छोड़ दिया जाएगा. हालांकि एक बार मजदूरों के रैन बसेरा पहुंचने के बाद उन्हें वहां से निकलने नहीं दिया जा रहा है.
इसी बात की पड़ताल करने हम रोहिणी के अवंतिका स्थित रैन बसेरा पहुंचे. वहां पर करीब 50 मजदूरों को रखा गया है. इनमें से एक 35 वर्षीय राकेश नाम के मजदूर ने जो हमें बताया वह हैरान करने वाला है.
वह कहते हैं, "मैं कश्मीरी गेट पर शादियों में बेलदारी का काम करता हूं. तीन दिन पहले मैं काम करने के बाद शाम के करीब आठ बजे नरेला जाने के लिए कश्मीरी गेट पर बस का इंतजार कर रहा था. तभी दिल्ली पुलिस और रैन बसेरा के लोगों ने मुझे बस में बैठा लिया, और यहां लाकर छोड़ दिया."
राकेश ने आगे बताया, "मैंने पुलिस को बताया कि नरेला में मेरा भाई रहता है. मेरे पास फोन नहीं है और न ही मैं पढ़ा लिखा हूं, नहीं तो मैं भाई से बात करवा देता लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी."
कुछ ऐसी ही कहानी 55 वर्षीय राजू और 40 वर्षीय रमेश की है. दोनो कश्मीरी गेट पर शनि मंदिर और हनुमान मंदिर के सामने पार्किंग में काम करते थे और वहीं सो जाते थे.
राजू बताते हैं, "तीन दिन पहले मैं कश्मीरी गेट पर हनुमान मंदिर के सामने पार्किंग में गाड़ी लगवा रहा था तभी पुलिस आई और बस में बैठाकर यहां ले लाई. अब हमसे कहा जा रहा है कि 26 जनवरी तक यहीं रहना होगा. उसके बाद छोड़ा जाएगा. मेरा परिवार फरीदाबाद रहता है. कश्मीरी गेट पर हफ्ते भर काम करता हूं. कुछ आमदनी हो जाती है तो फिर घर चला जाता हूं."
वहीं रमेश कहते हैं, "कश्मीरी गेट पर रहते हैं तो दिन का 150 से 200 कमा लेते हैं. यहां कैद कर दिया गया है यहां ना कमाई हो पा रही है ना कुछ. सिर्फ खाना दिया जा रहा है. क्या सिर्फ खाना खाने से काम चल जाएगा? परिवार कैसे पलेगा?"
असम के रहने वाले 55 वर्षीय राजन कश्मीरी गेट पर होटलों में काम करते हैं. राजन वापस अपने काम पर लौटना चाहते हैं लेकिन 26 जनवरी के कारण उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा है.
वह कहते हैं, "मैं होटल में जा रहा था शाम के करीब 7 बजे तभी मुझे कश्मीरी गेट से उठा लिया. पुलिस वाले बोले चल सुबह आ जाना. लेकिन अब जाने नहीं दिया जा रहा है. मैं मिठाई बनाने का काम करता हूं. अगर कोई अपराध किया होता तो समझ में आता लेकिन हमें बेवजह यहां कैद कर रखा है."
इस बारे में हमने रोहिणी रैन बसेरा के शिफ्ट इंचार्ज अरुन से बात की.
वह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि इन्हें कैद किया गया है. 26 जनवरी की वजह से इनको यहां पर रखा गया है. यहां पर इनको खाने पीने और सोने की सुविधाएं दी जा रही हैं. धीरे-धीरे इनके काम का भी इंतजाम करवाया जाएगा."
हालांकि इस अभियान का मकसद बेघरों को रैन बसेरा में आश्रय देने का था. लेकिन इसकी वजह से करीब 200 बेकसूर मजदूर कैदी बन गए हैं.
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