तपोवन में एनटीपीसी के पावर प्लांट की सुरंग से मलबा हटाने का काम अब भी चल रहा है लेकिन एक के बाद एक हो रही आपदायें क्या नीति निर्माताओं को झकझोरने के लिये काफी हैं?
जलवायु परिवर्तन का हाथ
आईसीआईएमओडी ने अपने शोध में कहा है कि इस घटना के पीछे क्लाइमेट चेंज को सीधे ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे तापमान और पर्माफ्रॉस्ट के जमने-पिघलने के चक्र (थॉ-फ्रीज़ साइकिल) से जलवायु परिवर्तन एक आंशिक कारक हो सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1980 से 2018 के बीच चमोली क्षेत्र में सालाना औसत अधिकतम तापमान में 0.032 डिग्री की बढ़ोतरी और सालाना औसत न्यूनतम तापमान में 0.024 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है.
वैज्ञानिकों की सलाह
चमोली आपदा के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण की हर दृष्टि से (संपूर्ण) मॉनिटरिंग की सिफारिश की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हिन्दुकुश-हिमालय (HKH) क्षेत्र में हिमनद झील के फटने, भूस्खलन, एवलांच, तेज़ बरसात और बर्फबारी जैसे मौसमी कारकों से लगातार संकट पैदा होते रहते हैं. भले ही इन घटनाओं को सीधे क्लाइमेट चेंज से नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन क्लाइमेट चेंज इन ख़तरों का ज़रूर बढ़ा रहा है.
वैज्ञानिकों ने पहाड़ी क्षेत्रों में बदलते लैंड यूज़ पैटर्न, बसावट के स्वरूप और मानवीय दखल पर टिप्पणी की है. रिपोर्ट में कहा गया है सड़क और पनबिजली परियोजनायें हिमालयी क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ रही हैं और यह चमोली जैसी घटनाओं के प्रभाव को बढ़ा सकता है. इस रिपोर्ट में तेज़ी से बन रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल खड़े किये गये हैं.
ग्राउंड ज़ीरो का हाल
आपदा के एक महीने के बाद घटनास्थल पर टीवी कैमरों और पत्रकारों की हलचल खत्म हो गई है और मलबे में दबे मज़दूरों के शव निकालने का काम लगभग ठंडा पड़ गया है. इस आपदा में 200 से अधिक लोग लापता हुये हैं जिनमें से पुलिस ने अब तक 72 लोगों के शव ढूंढे हैं और 30 मानव अंग मिले हैं. यानी लापता लोगों में करीब 100 अभी नहीं मिले हैं.
रेणी में जिस जगह 13.2 मेगावॉट का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बह गया था वहां अब भी मशीनें चल रही हैं. अपनों का इंतज़ार करते थककर कई लोग घरों को लौट चुके हैं लेकिन नदी के दूसरी ओर के गांवों से संपर्क जोड़ने के लिये ऋषिगंगा पर एक अस्थायी पुल खड़ा कर दिया गया है. उधर तपोवन में एनटीपीसी के पावर प्लांट की सुरंग से मलबा हटाने का काम अब भी चल रहा है लेकिन एक के बाद एक हो रही आपदायें क्या नीति निर्माताओं को झकझोरने के लिये काफी हैं?
(साभार- कार्बन कॉपी)
जलवायु परिवर्तन का हाथ
आईसीआईएमओडी ने अपने शोध में कहा है कि इस घटना के पीछे क्लाइमेट चेंज को सीधे ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे तापमान और पर्माफ्रॉस्ट के जमने-पिघलने के चक्र (थॉ-फ्रीज़ साइकिल) से जलवायु परिवर्तन एक आंशिक कारक हो सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1980 से 2018 के बीच चमोली क्षेत्र में सालाना औसत अधिकतम तापमान में 0.032 डिग्री की बढ़ोतरी और सालाना औसत न्यूनतम तापमान में 0.024 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है.
वैज्ञानिकों की सलाह
चमोली आपदा के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण की हर दृष्टि से (संपूर्ण) मॉनिटरिंग की सिफारिश की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हिन्दुकुश-हिमालय (HKH) क्षेत्र में हिमनद झील के फटने, भूस्खलन, एवलांच, तेज़ बरसात और बर्फबारी जैसे मौसमी कारकों से लगातार संकट पैदा होते रहते हैं. भले ही इन घटनाओं को सीधे क्लाइमेट चेंज से नहीं जोड़ा जा सकता लेकिन क्लाइमेट चेंज इन ख़तरों का ज़रूर बढ़ा रहा है.
वैज्ञानिकों ने पहाड़ी क्षेत्रों में बदलते लैंड यूज़ पैटर्न, बसावट के स्वरूप और मानवीय दखल पर टिप्पणी की है. रिपोर्ट में कहा गया है सड़क और पनबिजली परियोजनायें हिमालयी क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ रही हैं और यह चमोली जैसी घटनाओं के प्रभाव को बढ़ा सकता है. इस रिपोर्ट में तेज़ी से बन रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल खड़े किये गये हैं.
ग्राउंड ज़ीरो का हाल
आपदा के एक महीने के बाद घटनास्थल पर टीवी कैमरों और पत्रकारों की हलचल खत्म हो गई है और मलबे में दबे मज़दूरों के शव निकालने का काम लगभग ठंडा पड़ गया है. इस आपदा में 200 से अधिक लोग लापता हुये हैं जिनमें से पुलिस ने अब तक 72 लोगों के शव ढूंढे हैं और 30 मानव अंग मिले हैं. यानी लापता लोगों में करीब 100 अभी नहीं मिले हैं.
रेणी में जिस जगह 13.2 मेगावॉट का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बह गया था वहां अब भी मशीनें चल रही हैं. अपनों का इंतज़ार करते थककर कई लोग घरों को लौट चुके हैं लेकिन नदी के दूसरी ओर के गांवों से संपर्क जोड़ने के लिये ऋषिगंगा पर एक अस्थायी पुल खड़ा कर दिया गया है. उधर तपोवन में एनटीपीसी के पावर प्लांट की सुरंग से मलबा हटाने का काम अब भी चल रहा है लेकिन एक के बाद एक हो रही आपदायें क्या नीति निर्माताओं को झकझोरने के लिये काफी हैं?
(साभार- कार्बन कॉपी)