अडानी का एनडीटीवी: प्रणय रॉय के बिना क्या है एनडीटीवी?

उतार-चढ़ाव भरे लंबे सफर के बाद आज एनडीटीवी है, उसकी प्रतिष्ठा भी है, लेकिन प्रणय रॉय इसका हिस्सा नहीं हैं. यह प्रतिरोध का अंत है या नए युग की शुरुआत?

   
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23 दिसंबर, 2022, शाम 4 बजे दिल्ली के ग्रेटर कैलाश 1 कॉलोनी की एक कोठी में एक बैठक शुरू हुई. यह कोई आम बैठक नहीं थी. क्योंकि इसके समाप्त होते ही एनडीटीवी के प्रमोटर डॉ प्रणय रॉय और राधिका रॉय की चैनल में हिस्सेदारी 32.26 प्रतिशत से घट कर सिर्फ 5 प्रतिशत रह गई. 

प्रणय रॉय ने एनडीटीवी की हिस्सेदारी में अपने 1,02,76,991 (15.94%) शेयर्स में से 86,65,209 (13.44%), और राधिका रॉय ने अपने हिस्से के 1,05,24,249 (16.32%) शेयर्स में से 89,12,467 (13.82%) शेयर्स एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति गौतम अडानी की कंपनी एएमजी मीडिया नेटवर्क को 342.65 रुपए प्रति शेयर के भाव से कुल 602.30 करोड़ रुपए में बेचे. जबकि इससे पहले 5 दिसंबर को खत्म हुए ओपन ऑफर में 294 रुपए प्रति शेयर का भाव था. यानी की रॉय दंपति को 48.65 प्रति शेयर का फायदा हुआ.

यह बिल्डिंग एनडीटीवी का ही एक हिस्सा थी जहां कंपनी की बोर्ड बैठकें आदि होती थीं. यहां से करीब 100 मीटर की दूरी पर चैनल का मुख्यालय है जिसे अर्चना कॉम्प्लेक्स के नाम से जाना जाता है. प्रणय रॉय और राधिका रॉय वहीं  बैठते थे. 

बोर्ड की बैठक खत्म होने के बाद शाम करीब 5:51 मिनट पर बीएसई एक्सचेंज बोर्ड को एनडीटीवी की तरफ से एक जानकारी भेजी गई. उसमें बताया गया कि अडानी ग्रुप की कंपनी एएमजी मीडिया नेटवर्क के सीईओ और एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया और वरिष्ठ पत्रकार सेंथिल चेंगलवारायण को तत्काल प्रभाव से एनडीटीवी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया गया है. 

इस जानकारी के करीब एक घंटे बाद शाम 7:05 बजे एनडीटीवी के दोनों संस्थापक प्रणय रॉय और राधिका रॉय का एक बयान सामने आया. बयान में दोनों ने कहा, “हमने आपसी समझौते के तहत एनडीटीवी में अपने अधिकांश शेयर एएमजी मीडिया नेटवर्क को बेचने का फैसला किया है. ओपन ऑफर लाए जाने के बाद से गौतम अडानी के साथ हमारी रचनात्मक और सकारात्मक बातचीत हुई है. हमारी तरफ से दिए सभी सुझावों को उन्होंने सकारात्मक ढंग से और खुलेपन के साथ स्वीकार किया है.”

इससे पहले विश्वप्रधान कॉमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (वीसीपीएल) के अधिग्रहण के समय एनडीटीवी ने कहा था- “एनडीटीवी के संस्थापकों से किसी भी इनपुट, बातचीत या सहमति के बिना यह अधिग्रहण किया गया.”

अडानी ग्रुप ने वीसीपीएल का अधिग्रहण 23 अगस्त को किया था, जिसके बाद ही एनडीटीवी के बिकने की कहानी शुरू हुई और पूरे चार महीने बाद ठीक 23 दिसंबर को प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने अपनी हिस्सेदारी गौतम अडानी की कंपनी को बेच दी. 

एनडीटीवी के प्रमोटर्स के बयान पर एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार और मोजो स्टोरी की एडिटर बरखा दत्त लिखती हैं, “यह बयान पूरी तरह से मेरे विश्वास की पुष्टि करता है कि एनडीटीवी अडानी सौदा पारस्परिक, मैत्रीपूर्ण है और इसमेें जबरन जैसा कुछ नहीं हैं क्योंकि इसमें रॉय परिवार ने भी कुछ हिस्सा रखा है. आशा है कि पहले जो कहानियां बनाई गईं, उसमें आवश्यक बदलाव होगा.”

एनडीटीवी का माहौल

ग्रेटर कैलाश-1 में स्थित अर्चना कॉम्प्लेक्स बिल्डिंग में इस फैसले के बाद से अजीब सी असहजता और तनाव है. जाहिर है यह बड़ा फैसला है जिसके बाद कंपनी के तमाम कर्मचारी और पत्रकार एक किस्म की असुरक्षा और अनिश्चितता के साए में हैं. एक समय में यह परिसर रिपोर्टर्स और पत्रकारों की गहमा-गहमी से गुलजार रहता था. लेकिन बीते एक महीने के घटनाक्रम के बाद से हालात बदल गए हैं. 23 दिसंबर को जब प्रणय और राधिका रॉय घर जाने लगे तो ऑफिस में मौजूद कर्मचारियों ने उन्हें नीचे तक आकर विदाई दी. यह आखिरी विदाई थी. खबर है कि कंपनी के नए प्रबंधकों और संचालकों के साथ मौजूदा संपादकों की एक बैठक भी हुई है. इस बैठक में कर्मचारियों को आश्वस्त किया गया है और लटकी हुई भर्तियों को शुरू करने की इजाजत दी गई है.     

रॉय दंपति के शेयर्स बेचने की ख़बर मिलने के बाद कर्मचारियों में नौकरी को लेकर चिंताएं बढ़ गई थीं. एनडीटीवी ग्रुप की प्रेसिडेंट सुपर्णा सिंह ने सभी कर्मचारियों को एक मेल भेजकर (इसकी प्रति न्यूज़लॉन्ड्री के पास है) कहा कि वह रात 10 बजे तक ऑफिस में बैठी हैं, जिसको भी बात करनी है वह आकर बात कर सकता है.

चैनल के एक कर्मचारी कहते हैं, “सोनिया सिंह ने बताया है कि नौकरी को लेकर किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है. जैसा है, वैसा ही चलता रहेगा.” 

इसके बाद से ज्यादातर कर्मचारियों में आश्वस्ति का भाव है. शुक्रवार के बाद के माहौल को लेकर हमने कई कर्मचारियों से बात की. सभी का कहना है कि अभी सब कुछ ठीक है, जो भी बदलाव होगा वह आने वाले महीनों में दिखेगा, उसके लिए इंतजार करना होगा.  

इस बीच गौतम अडानी ने इंडिया टुडे से एक खास बातचीत में कहा, “एनडीटीवी एक स्वतंत्र, विश्वसनीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क होगा. मैनेजमेंट और संपादकीय टीम में हमेशा एक लक्ष्मण रेखा बनी रहेगी.”

उन्होंने आगे कहा कि उनकी कंपनियां प्रोफेशनल लोगों के हाथ में है और वह कंपनी के रोजाना के कामों में कोई दखल नहीं देते हैं. यही बात एनडीटीवी पर भी लागू होगी.

एनडीटीवी से निकले पत्रकारिता के कई चेहरे

एनडीटीवी की पूर्व सीनियर एडिटर अंजली इस्टवाल एनडीटीवी के अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं, “एनडीटीवी वह जगह है जहां देश के बेहतरीन मीडिया प्रोफेशनल्स ने काम किया है. जो संस्थान प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने बनाया, वह बना पाना मुश्किल है. क्योंकि वह कैटलिस्ट नहीं मिलेगा, वह एनवायरनमेंट भी नहीं मिलेगा और वह लोग मिलेंगे ही नहीं जिन्होंने उसे बनाया था.”

वह आगे कहती हैं, “हमारी उम्र के जो पत्रकार हैं, उनके लिए अगर कोई चेहरा बतौर पत्रकार उनकी जेहन में है तो वह प्रणय रॉय का चेहरा ही है. हमारे लिए एनडीटीवी मंदिर है. मुझ जैसे कई पत्रकारों का करियर वहीं से बना है.”

अपने पत्रकारिता करियर के बारे में बात करते हुए एनडीटीवी के एक और पूर्व पत्रकार ह्रदयेश जोशी बताते हैं, “एनडीटीवी, कर्मचारियों का ध्यान रखने वाली कंपनी रही है. जब मैं वहां आया तो मुझे स्वास्थ्य, पर्यावरण, खनन, आरटीआई के क्षेत्र में रिपोर्ट करने का मौका मिला, जो अन्य चैनलों में शायद ही मिलता. मुझे आज जो कुछ भी सीखने को मिला उसमें एनडीटीवी का अहम स्थान है.”

आज के समय में अधिकतर पत्रकार जो अलग-अलग चैनलों या संस्थानों में काम कर रहे हैं, उनमें से अधिकतर का कभी न कभी एनडीटीवी से रिश्ता रहा है. यहां काम करने वाले पत्रकारों की संख्या इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि जब एनडीटीवी की शुरुआत हुई उस समय देश में मात्र तीन हिंदी चैनल और एक अंग्रेजी चैनल था.

राजदीप सरदेसाई ने इस घटनाक्रम पर ट्वीट करते हुए लिखा- “आज मैं जो कुछ भी हूं, वह एनडीटीवी में मिले शानदार अवसरों की बदौलत हूं. तो धन्यवाद प्रणय रॉय और राधिका रॉय, आपने जो हममें से बहुतों को चमकने का अवसर दिया. सदैव आभार.”

एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के पूर्व मैनेजिंग एडिटर औनिन्द्यो चक्रवर्ती कहते हैं, "जब आप एनडीटीवी का नाम सुनते हैं तो सीधे प्रणय रॉय को देखते हैं. वह चैनल के एडिटर और मालिक दोनों थे, इसलिए एनडीटीवी का जर्नलिज्म सबसे अलग था. वहां का वर्क कल्चर सबसे अलग और सबसे अच्छा था. जो लोग आज प्रणय, राधिका रॉय और एनडीटीवी को श्रेय दे रहे हैं, उन्हें ऐसा माहौल कहीं और नहीं मिल सकता था.” 

रॉय दंपति ने कभी कोई एजेंडा नहीं चलाया

दो दशक तक एनडीटीवी में काम करने वाले एक वरिष्ठ कर्मचारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “यह भारत के सबसे बेहतरीन न्यूज़रूम में से एक था. रॉय दंपति विनम्र स्वभाव वाले संस्थापक और एडिटर थे. वहां कभी किसी रिपोर्ट के लिए रोका नहीं गया.”

एनडीटीवी इंडिया के एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी कहते हैं, “प्रणय और राधिका रॉय के न्यूज़रूम छोड़ने के बाद से ही एनडीटीवी के अंत की कहानी शुरू हो गई थी. ऐसा नहीं है कि साल 2014 के बाद पहली बार बीजेपी की सरकार आई है. इससे पहले भी बीजेपी की सरकार थी लेकिन इन्होंने कभी कोई एजेंडा नहीं चलाया. जो सच है वह दिखाया.”

इसी तरह एनडीटीवी के एक और पूर्व कर्मचारी बताते हैं, “एनडीटीवी का झुकाव ‘लेफ्ट टू सेंटर’ है. आज के समय में बाकी चैनल मोदी की तारीफ में लगे हुए हैं और विपक्ष पर अटैक कर रहे हैं. वहीं एनडीटीवी विपक्ष से सवाल पूछने की बजाय सत्ता से सवाल पूछ रहा है. इसलिए इसकी छवि सरकार विरोधी वाली बन गई.”

रॉय दंपति किसी तरह के दबाव में काम नहीं करते थे. एक वाकया साल 2007 का है. एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार विजय त्रिवेदी ने तब के तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी का इंटरव्यू किया था. इंटरव्यू में दासमुंशी ने कहा कि प्रतिभा पाटिल कांग्रेस पार्टी की पहली पसंद नहीं थीं. यह बयान जब टीवी पर चली तो हंगामा हो गया. इंटरव्यू के बाद अभी त्रिवेदी एनडीटीवी ऑफिस पहुंचे भी नहीं थे कि उससे पहले ही प्रियरंजन दास मुंशी ने डॉ रॉय के दफ्तर में एक फैक्स भेज दिया. इसमें लिखा था कि उन्होंने प्रतिभा पाटिल को लेकर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. इसके बाद राधिका रॉय ने त्रिवेदी से बात की और बातचीत का पूरा टेप देखा जिसमें दास यह बात त्रिवेदी को कह रहे थे. इसके बाद एनडीटीवी के दोनों चैनलों पर इस इंटरव्यू को दिखाया गया. तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री की नाराजगी के बावजूद चैनल ने इसे प्रसारित किया था. 

अनिन्द्यो कहते हैं, “एनडीटीवी रिपोर्टर आधारित चैनल है. वहां रिपोर्टर्स को पूरी छूट मिलती है. वह जो भी करना चाहते हैं, बिना किसी रोक टोक के करते हैं.”

विजय त्रिवेदी साल 1995 से एनडीटीवी से जुड़े हुए थे. तब एनडीटीवी चैनल नहीं बल्कि एक प्रोडक्शन कंपनी हुआ करता था जो स्टार न्यूज़ के लिए कंटेंट बनाता था. स्टार न्यूज़ चैनल, मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक का था. 

त्रिवेदी बताते हैं, “साल 2000-02 की बात है. उस समय स्टार न्यूज़ की तरफ से एनडीटीवी को बहुत अच्छा पैसा मिलता था लेकिन जब कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू करने की बात आई तो मर्डोक की तरफ से कहा गया कि उनके तरफ से एडिटोरियल में दखलअंदाजी होगी. इसके विरोध में डॉ प्रणय रॉय ने स्टार न्यूज़ के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया.”

यह बात खुद डॉ रॉय ने भी मीडिया से बातचीत में कही.

अन्य चैनलों की तरह टीआरपी की भेड़चाल में एनडीटीवी कभी शामिल नहीं हुआ. इस पर अनिन्द्यो कहते हैं, “मैं भी कई बार प्रणय और राधिका रॉय के पास रेटिंग बढ़ाने को लेकर प्लान लेकर गया. लेकिन उन्होंने कहा, ‘न्यूज़ करना है रेटिंग के लिए कुछ भी नहीं करना है. रेटिंग लाओ लेकिन न्यूज़ से, मसाले से नहीं.”

वह आगे कहते हैं, “एनडीटीवी सरकार का पीआर मशीनरी नहीं रहा. क्या सवाल उठाना सरकार विरोधी है? बाकी चैनल सरकार के एजेंडा को प्रमोट करते हैं, एनडीटीवी ने वह नहीं किया.”

कर्मचारियों की चहेती कंपनी

भारतीय टीवी मीडिया जगत में एनडीटीवी, कर्मचारियों की चहेती कंपनी है. यह चैनल टीआरपी और रेटिंग के शोर-शराबे से दूर रहकर पत्रकारिता करती रही. 

हृदयेश बताते हैं कि कंपनी हमेशा अपने कर्मचारियों का बहुत ध्यान रखती थी. अपनी तबीयत के बारे में एक घटना का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, “जब मैं एनडीटीवी में आया तो कुछ समय बाद मेरी तबीयत खराब हो गई थी. मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया और वहां मेरी देखभाल के लिए एडमिन के दो कर्मचारी रात-दिन मौजूद थे. जब तक की मेरे परिवार का कोई सदस्य अस्पताल नहीं आ गया.”

न सिर्फ हृदयेश बल्कि कई अन्य कर्मचारियों की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. कैसे एनडीटीवी अपने वर्तमान कर्मचारियों के साथ-साथ पूर्व कर्मचारियों का भी ध्यान रखता था. इसका एक वाकया एनडीटीवी वर्ल्डवाइड के पूर्व मैनेजिंग एडिटर संजय अहिरवाल भी साझा करते हैं. 

वह बताते हैं, “एनडीटीवी के शुरुआती दिनों में राजनीतिक संपादक पद्मानंद झा हुआ करते थे. वह बाद में आउटलुक मैगज़ीन में चले गए. वहां काम करते हुए उनका बहुत बुरा एक्सीडेंट हो गया. जब छह महीने बाद वह अस्पताल से निकले तो उनकी याददाश्त अच्छी नहीं थी, उन्हें बहुत कुछ याद नहीं रहता था और सही से चल भी नहीं पाते थे. अस्पताल से आने के बाद आउटलुक ने उन्हें नौकरी पर नहीं रखा, लेकिन एनडीटीवी ने अपने पूर्व कर्मचारी को नौकरी दी. उन्हें कुछ नहीं करना होता था. गाड़ी उन्हें घर लेने जाती थी, वह ऑफिस में कुछ देर बैठते थे, फिर दो-तीन घंटे के बाद गाड़ी उन्हें वापस घर छोड़ देती थी.”

एनडीटीवी कर्मचारियों की चहेती कंपनी क्यों है? इसको लेकर अंजली कहती हैं, “साल 2018 में मेरी मां की तबीयत खराब हो गई तो मैंने कहा की मैं घर जा रही हूं छुट्टी पर, और मैंने कोई टाइम नहीं दिया था कि कब वापस आऊंगी. करीब दो-ढाई महीने बाद मैं ऑफिस आई तो किसी ने इतने दिन ऑफिस नहीं आने पर कोई सवाल नहीं किया. तो जो इस तरह की कर्मचारियों के प्रति संवेदनशीलता है, वह बहुत ही असाधारण बात है.”

एनडीटीवी न सिर्फ कर्मचारियों का ध्यान रखता था, बल्कि यह पहली कंपनी थी जहां सुबह से लेकर रात तक का खाना मिलता था. अगर कोई कर्मचारी शूट पर गया है तो उसे खाना देने कंपनी की गाड़ी जाती थी. एनडीटीवी के शुरुआती दिनों 2000-02 में होंडा सिटी मार्केट में नई आई थी और चैनल ने कुछ कर्मचारियों को वह गाड़ी उनके आने-जाने के लिए दी थी. इतना ही नहीं, हर तीन साल में यह गाड़ी बदल दी जाती थी. 

सिर्फ गाड़ी नहीं बल्कि हर साल जब भी नया आईफोन आता था, तो कंपनी वह फोन कर्मचारियों को देती थी. एक पूर्व कर्मचारी बताते हैं, “मैंने एप्पल का हर वर्जन का फोन चलाया है, थैंक्स टू एनडीटीवी.” एनडीटीवी पहली कंपनी थी जो कर्मचारियों को फॉरेन ट्रैवल अलाउंस दिया करती थी. 

एक अन्य वरिष्ठ कर्मचारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “यह ऐसा चैनल था जहां आप आम जनता की भावना, गरीबी, भुखमरी, पानी जैसे विषयों पर रिपोर्ट कर सकते थे.”

वह बताते हैं, “जब एनडीटीवी छोड़कर कोई कर्मचारी दूसरी कंपनी में जाते थे तो वहां उसे कहा जाता था कि ये तो एनडीटीवी वाले हैं. मतलब की एनडीटीवी में काम करने का तरीका सबसे अलग था.”  

एनडीटीवी में सब कुछ अच्छा भी नहीं था

जैसे हर चीज की कुछ अच्छाई और कुछ खराबी होती है, वही हाल एनडीटीवी का भी था. एक चैनल जो साल 2007 तक फायदे में रहा और देश की टॉप मीडिया कंपनियों में से एक रहा, वह साल 2008 की वैश्विक मंदी के बाद घाटे में आ गया और फिर कभी उससे उबर नहीं पाया. 

चैनल का सारा गुणा-गणित 2008 आर्थिक मंदी से बिगड़ा. उस समय एनडीटीवी ने अपना विस्तार करते हुए एंटरटेनमेंट चैनल के अलावा कई अन्य चैनल लॉन्च किए थे, लेकिन मंदी के कारण कंपनी को घाटा हुआ. घाटा होने के बाद राधिका रॉय और प्रणय रॉय ने लोन लिया. आज कंपनी के साथ जो कुछ घटा है, उसकी जड़ में उस समय लिया गया लोन ही है. 

साल 2009 में राधिका रॉय और प्रणय रॉय होल्डिंग कंपनी (आरआरपीआर) ने विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड (वीसीपीएल) से 403.85 करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त लोन लिया था. इसके तहत उन्होंने वीसीपीएल को अधिकार दिया था कि यदि वह चाहे, तो आरआरपीआर के 99.99 प्रतिशत शेयरों से बदल सकती है. 

एनडीटीवी के पूर्व कर्मचारी कहते हैं, “प्रणय रॉय की स्टाइल बुक में है कि ‘पत्रकारिता ज्ञान देना नहीं होता है लेकिन एनडीटीवी में इसके विपरीत ही हो रहा था. उनके न्यूज़रूम से जाने के बाद टीवी पर ज्ञान देना शुरू हो गया. यहां लोग ‘राष्ट्रीयता के ठेकेदारों’ की तरह ‘धर्मनिरपेक्षता की ठेकेदारी’ करने लगे.” 

वह आगे कहते हैं, “एनडीटीवी की यह भी एक कड़वी सच्चाई थी कि यहां एलीट, अंग्रेजीदां पारिवारिक पृष्ठभूमि और संपर्कों के जरिए आए लोगों को नौकरी मिलती थी. एनडीटीवी में कुछ लोग गोदी मीडिया-गोदी मीडिया चिल्लाते हैं, लेकिन यहां के बहुत से लोग पहचान और नेपोटिज्म का उत्पाद हैं.”

एक अन्य कर्मचारी एनडीटीवी की एक और खामी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “एनडीटीवी में लाख अच्छाइयां थी, लेकिन एक गड़बड़ी यह थी कि वहां लोगों की सैलरी में बहुत ज्यादा अंतर था. एनडीटीवी में दो बार बड़े स्तर पर छंटनी हुई है. उनकी जगह पर कम सैलरी वाले लोगों को लाया गया. लेकिन वहां शीर्ष पदों पर कई लोग ऐसे थे जिनकी सैलरी गैरवाजिब तरीके से ज्यादा थी. अगर उनकी सैलरी को कम कर दिया जाता तो कई लोगों की नौकरी बचाई जा सकती थी.” 

कुछ लोगों की शिकायत है कि रॉय दंपत्ति तक लोगों की पहुंच में भी असमानता थी. एक कर्मचारी बताते हैं, “जैसे कांग्रेस पार्टी में चलन है कि जिसकी पहुंच 10 जनपथ तक है, उन नेताओं की कांग्रेस में तूती बोलती है, वैसा ही कुछ एनडीटीवी में भी था. वहां काम कर रहे सभी कर्मचारियों की पहुंच डॉ रॉय तक नहीं थी. जिनकी पहुंच थी उनकी धमक रहती थी.”

एक और कर्मचारी कहते हैं, “एनडीटीवी में वर्ग विभाजन था. रॉय के आसपास काम करने वालों को बहुत फायदा हुआ. ऐसे लोगों ने फायदा उठाते हुए करोड़ों कमाए.” 

एडिटर और मालिक दोनों ही एक 

एनडीटीवी वह कंपनी है जिसके एडिटर उसके मालिक भी थे. वह मालिक रोजाना शो करते थे और न्यूज़रूम में काम भी करते थे. पहले हर दिन 11 बजे मीटिंग होती थी. यह मीटिंग राधिका शुरू करती थीं जिसमें प्रणय रॉय और अन्य कर्मचारी शामिल होते थे. 

विजय त्रिवेदी बताते हैं कि डॉ रॉय आज के एंकर्स जैसे नहीं हैं कि सीधे स्टूडियो में पहुंचकर एंकरिंग करने लगें. वह अपने शो से करीब 2 घंटे पहले आकर अपनी स्क्रिप्ट पर काम करते थे, फिर जाकर स्टूडियो में पढ़ते थे.

प्रणय रॉय और राधिका रॉय दोनों न्यूज़रूम में आकर खबरों की लिस्ट बनाते थे और खबरों को एडिट करते थे. रॉय दंपति को लेकर हृदयेश कहते हैं, “न्यूजरूम में रॉय दंपति को कभी चिल्लाते हुए नहीं देखा. वह सबकी इज्जत करते थे फिर चाहे वह गार्ड हो या कोई शीर्ष पद का व्यक्ति.”

त्रिवेदी एनडीटीवी की पत्रकारिता को लेकर कहते हैं, “रॉय दंपति ने कभी कोई स्टोरी नहीं रोकी. वहां रिपोर्टर को पूरी आजादी थी.”

एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार संदीप भूषण कहते हैं, “प्रणय और राधिका रॉय इस पेशे में सम्मान और प्रोफेशनलिज्म लेकर आए. उन्होंने कर्मचारियों की अहमियत बताई, जिसका असर बाकी कंपनियों पर भी पड़ा. एनडीटीवी ने भड़काऊ, कट्टरता फैलाने वालों को नहीं दिखाया. इसको लेकर राधिका और प्रणय बहुत क्लियर थे.”      

भूषण आगे बताते हैं, “अंग्रेजी चैनल के मुकाबले हिंदी चैनल में ज्यादा आजादी थी काम को लेकर. शायद इसलिए ही रवीश.. रवीश बन पाए.” 

राजदीप सरदेसाई ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात नहीं की, लेकिन रॉय दंपति और एनडीटीवी को याद करते हुए वह फेसबुक पर लिखते हैं, “जब भारतीय टीवी समाचारों का इतिहास लिखा जाएगा तो रॉय परिवार को अरूण पुरी जैसे शुरुआती अगुआओं के साथ जगह मिलेगी.”

अंबानी और अडानी में अंतर

एनडीटीवी को पहले अंबानी की कंपनी ने लोन दिया था, और अब उसे अडानी की कंपनी ने खरीद लिया है. इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि अंबानी के बाद अब अडानी के आ जाने से क्या फर्क पड़ेगा? इसको लेकर एनडीटीवी के पूर्व कर्मचारियों की राय अलग-अलग है. 

बदलाव को लेकर काफी बातें हो रही हैं, इस पर एक पूर्व कर्मचारी कहते हैं, “एनडीटीवी पूंजीवाद के खिलाफ नहीं है और सामाजिक तौर पर उदार है. इसलिए चाहे अंबानी रहे या अडानी आए, चैनल में बदलाव ज्यादा देखने को नहीं मिलेगा.”

बदलाव को लेकर अंजली भी कहती हैं, “अडानी के आने से मुझे नहीं लगता है कि एक-दो साल तक कोई बदलाव होगा. पहले जो रिपोर्टिंग होती थी वह लॉजिकल रिपोर्टिंग आगे भी चलती रहेगी.“

वरिष्ठ पत्रकार और एक दशक से ज्यादा एनडीटीवी में काम करने वाले विजय त्रिवेदी कहते हैं, “पहले अंबानी थे लेकिन तब डॉ रॉय थे. लेकिन अब रॉय नहीं रहेंगे और अडानी होंगे. बिना रॉय के एनडीटीवी है. यह वैसे ही है जैसे बिना आत्मा के शरीर.”

इस मसले पर रवीश कुमार से हमारी बातचीत नहीं हुई लेकिन अडानी और अंबानी में अंतर को लेकर उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, “अंबानी का कभी कोई एडिटर नहीं आया और न ही उनका कोई आदमी मीटिंग करने आया. क्या उन्होंने (अंबानी) कभी कहा कि हम भारत में ग्लोबल ब्रांड बनाएंगे, अलजजीरा जैसा होना चाहिए. इन दोनों (बातों) में बड़ा अंतर है.”

इस तरह अनिन्द्यो भी कहते हैं, “अंबानी का कभी कोई व्यक्ति एनडीटीवी में नहीं घुसा. एनडीटीवी में कभी यह नहीं कहा गया कि आप यह करिए क्योंकि अंबानी चाहते हैं. हमने वीपीसीएल से लोन लेने के बाद भी कई स्टोरी अंबानी के खिलाफ की हैं, लेकिन कभी किसी ने रोका नहीं.”

संदीप भूषण कहते हैं, “कौन सा चैनल मालिक बदलने के बाद नहीं बदला है? इससे एनडीटीवी भी अछूता नहीं रहेगा.” 

अडानी के आने पर क्या एनडीटीवी बदलेगा? इस पर अनिन्द्यो कहते हैं, “तार्किक तौर पर देखें तो बदलना चाहिए, नहीं तो क्यों कोई ऐसा चैनल खरीदेगा जिसकी कोई खास टीआरपी नहीं है. अडानी की मीडिया में कोई खास मौजूदगी नहीं है. हो सकता है वह एनडीटीवी प्रॉफिट को फिर से लॉन्च करें, क्योंकि अंबानी के पास सीएनबीसी टीवी18 जैसा बिजनेस चैनल है.”

बता दें कि गौतम अडानी ने हाल ही में फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक वैश्विक समाचार ब्रांड बनाना चाहते हैं. इसी बातचीत में वह आगे कहते हैं कि फाइनेंशियल टाइम्स या अल जज़ीरा की तुलना में भारत के पास एक भी (संस्थान) नहीं है.

(इस स्टोरी में न्यूज़लॉन्ड्री ने एनडीटीवी के कई पूर्व कर्मचारियों से बात की है. इसके अलावा हमने प्रणय रॉय और संजय पुगलिया से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन उनका कोई जवाब हमें नहीं मिला है.)

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