दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते की टिप्पणी में आपको बहुत आनंद आने वाला है लेकिन पहले दो छोटे काम कर लीजिए. पहला तो इस वीडियो को लाइक जरूर कर दीजिए. दूसरा, इसके बाद बोरा बिछाकर निश्चिंत बैठ जाइए क्योंकि आज टिप्पणी में कथा सुनाऊंगा नरोत्तम बायकॉट मिश्रा की. कथा जंबूद्वीप की.
बीते हफ्ते एक बार फिर से भारत-चीन के रिश्तों के बीच कड़वाहट बढ़ गई. चीनी सेनाओं ने एक बार फिर से भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया. चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके में एलएसी से लगते भारतीय दावे वाले इलाके में घुसपैठ की कोशिश की. चिंता की बात ये है कि इस गंभीर विषय पर कुछ लोगों के मुंह एकदम सिले हुए हैं. उनमें से एक हैं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. पैदाइश से लेकर अंतिम संस्कार तक, बरही से लेकर तेरहीं तक लगभग हर विषय पर साधिकार बोलने वाले प्रधानमंत्री चीन के मामले में सुई पटक सन्नाटा धारण कर लेते हैं.
देश प्रधानमंत्री के बहुमूल्य विचारों से वंचित है. इसकी भरपाई इस देश का दरबारी मीडिया करता है. भारतीय खबरिया चैनलों के रंगमंच पर आपको पर्याप्त मात्रा में लाल आंखें, तनी हुई भृकुटियां, बेकंट्रोल जुबान और नूराकुश्ती देखने को मिल जाएगी. पर इन सबसे चीन को क्या फर्क पड़ता है, किसी को नहीं पता.