सूरत के हीरा मजदूर: ‘यहां सिर्फ मालिकों का विकास हो रहा है’ 

हमने सूरत पहुंचकर जानने की कोशिश की, कि जो मजदूर सूरत को डायमंड सिटी बनाते हैं, उनके जीवन में कितनी चमक है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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सूरत को डायमंड सिटी, यानी हीरों का शहर कहा जाता है. यहां हीरे की बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं जहां लगभग सात लाख मजदूर काम करते हैं. इसमें से चार लाख के करीब ऐसे मजदूर हैं, जिनके खातों में महीने का वेतन आता है. वहीं बाकी रोजाना के हिसाब के काम करते हैं. ज्यादातर मजदूर बिहार, यूपी, महाराष्ट्र और गुजरात के रहने वाले हैं. 

विधानसभा चुनाव कवर करते हुए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब सूरत पहुंची तो हमने यहां काम करने वाले मजदूरों से बात की. हमने जानने की कोशिश की कि जो मजदूर सूरत को डायमंड सिटी बनाते हैं, उनके जीवन में कितनी चमक है.

राजू भाई बताते हैं, “यहां मजदूरों की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि सेठ लोग कभी भी किसी मजदूर को हटा देते हैं. तत्काल किसी को काम तो मिलता ही नहीं. ऐसे में वो भटकता रहता है. अभी भी कारोबार मंदा है जिसके कारण मजदूरों को काम नहीं रहा है.”

एक अन्य मजदूर दीपक वोरा से हमने पूछा कि आप लोगों के जीवन में कितनी चमक है? वो कहते हैं, “सूरत पूरी दुनिया में डायमंड सिटी के नाम से जाना जाता है. यहां हम साल भर में 11 महीने काम करते हैं. दिवाली के समय एक महीने की छुट्टी मिलती है जिसका हमें कोई मेहनताना नहीं मिलता है. लेबर एक्ट के तहत हमें जो लाभ मिलना चाहिए वो नहीं मिलता है. मालिकों की ऐसी मिलीभगत होती है कि मजदूरों का यूनियन बनने नहीं देते हैं. अगर उनके खिलाफ किसी ने आवाज उठाई तो अगले दिन से छुट्टी दे दी जाती है.”

यहां आकर हमें एक नए टैक्स के बारे में पता चला. प्रोफेशनल टैक्स. जो यहां का नगर निगम लेता है. हरी भाई, जो खुद मजदूर हैं और एक यूनियन से जुड़े हुए हैं, बताते हैं, “प्रोफेशनल टैक्स मजदूरों से लिया जा रहा है. हरेक महीने मजदूरों से 200 रुपए लिए जाते हैं. यहां करीब चार लाख मजदूर हैं. अब आप हिसाब लगाएं कि मजदूरों से कितने पैसे लिए जाते हैं. जब यहां लेबर लॉ का पालन नहीं हो रहा तो टैक्स किस बात का? यहां किसी भी कंपनी में लेबर एक्ट का पालन नहीं होता. जब मन चाहे सेठ लोग हमें निकाल देते हैं. यह अन्याय है.”

हम कुछ कंपनियों में भी पहुंचे. यहां लोग अपने घरों में भी हीरा घिसने का काम चला रहे हैं. यहां मिले एक बिहार के मजदूर ने मालिक से बचते हुए हमें बताया, ‘‘दिन भर काम करते हैं तब 300-400 रुपए कमा पाते हैं. सुरक्षा कुछ है नहीं. आंख जल्दी खराब हो जाती है. हीरे को घिसते हुए माथे के ऊपर लाइट जल रही होती है. आठ-नौ घंटे लगातार सर के पास लाइट होता है. उससे सर में दर्द हो जाता है. लेकिन हमें कुछ नहीं मिलता. बीमार पड़ गए तो काम छूट जाता है. यहां मजदूर परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं.”

यहां मिलने वाले मजदूर कई दूसरी परेशानियों का जिक्र करते हैं. हमने उनसे पूछा कि विधानसभा चुनाव चल रहा है, आप लोग क्या सोचकर वोट करेंगे? डायमंड वर्कर्स यूनियन के प्रमुख रमेश जिलरिया कहते हैं, “भाजपा से हमें कोई उम्मीद नहीं है. कांग्रेस और आप वालों से हमने लिखित में मांगा है कि चुनाव जीतने के बाद हमारी मांग को मानेंगे. जो भी हमारी बात मानेगा हम उसे ही वोट करेंगे.”

हालांकि यहां के मजदूर इस बात से चिंतित हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उनकी परेशानियों की बात नहीं कर रहा है.

मजदूरों से हुई बातचीत का पूरा वीडियो देखें.

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