दिल्ली एमसीडी चुनाव: कूड़ा बीनने वालों की समस्याएं चुनावी मुद्दा क्यों नहीं?

कूड़ा बीनने वालों का कहना है कि, हम यहां कीड़े मकोड़ों की तरह नरक की जिंदगी जी रहे हैं. हमें पीने का पानी तक सरकार नहीं दे पा रही है.

WrittenBy:अनमोल प्रितम
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दिल्ली एमसीडी के चुनाव में भ्रष्टाचार और कूड़ा दो मुख्य मुद्दे हैं. इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में करीब पांच लाख लोग कूड़ा बीनने और छांटने का काम करते हैं. जिससे दिल्ली के कूड़े को रीसाइकिल करना आसान हो जाता है. कूड़ा बीनने वाले ज्यादातर लोग गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल के आसपास की झुग्गियों में रहते हैं. भलस्वा लैंडफिल के पास ग्राउंड वाटर में लेड की मात्रा स्वीकार्य सीमा से 50 गुना अधिक है. वहीं कैडमियम की मात्रा स्वीकार्य सीमा से सात गुना अधिक है. इसके कारण यह पानी दूषित और खारा हो गया है, इसका इस्तेमाल लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकता है. बावजूद इसके लोग दूषित पानी इस्तेमाल करने को मजबूर हैं.

भलस्वा लैंडफिल के पास झुग्गी में रहने वाली पूजा बताती हैं, "हमारी गली में सरकार की ओर से पानी नहीं आता इसलिए हम दूषित पानी इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. पीने के अलावा हम दूषित पानी का इस्तेमाल खाना बनाने, नहाने, ब्रश करने और सब्जियां धोने में करते हैं. इसके कारण हम बीमार भी पड़ जाते हैं"

वहीं अनीता कहती हैं, "पहले सरकार साफ पानी मुहैया कराती थी लेकिन जब से केजरीवाल की सरकार आई है तब से सब बंद हो गया है. मजबूरन हमें हैंडपंप के पानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. वो पानी भी इतना खारा है कि हम पी नहीं सकते इसलिए हमें खरीद कर पीना पड़ता हैं"

पानी के अलावा भी कूड़ा बीनने वालों की और कई परेशानियां हैं. जिसमें मूलभूत सरकारी सुविधाओं का अभाव एक बड़ा कारण है.

50 साल के सिब्बू पासवान कहते हैं, "हम यहां कीड़े मकोड़ों की तरह नरक की जिंदगी जी रहे हैं. ऐसे ही जिंदगी कट गई. आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली. पीने का पानी तक सरकार नहीं दे पा रही है. नेता लोग आते हैं, रैलियों में लेकर जाते हैं लेकिन चुनाव बाद हमें भूल जाते हैं"

दिल्ली एमसीडी में हर दिन कूड़े को लेकर नए-नए मुद्दे उछाले जा रहे हैं. लेकिन कूड़ा बीनने वालों के मुद्दे चुनाव से गायब हैं. हमने इन समस्याओं के बारे में पीड़ितों के साथ-साथ स्थानीय नेताओं से भी बात की है. 

देखिए पूरी रिपोर्ट-

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