एबीपी न्यूज़ के शरलॉक होम्स और माताहारी, मनीष सिसोदिया की चंपी वाली फिजियोथिरैपी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

  • whatsapp
  • copy

बीते हफ्ते श्रद्धा वाल्कर का सनसनीखेज हत्याकांड खबरिया चैनलों पर छाया रहा. एबीपी न्यूज़ ने जिस तरह से इस हृदय विदारक हत्याकांड का नाटकीय मंचन पूरे देश के सामने किया, उससे इस चैनल की संपादकीय पेशेवरता और खबर को चुटकुले में बदल देने की क्षमता चहुं ओर निर्विवाद स्थापित हो गई. चैनल ने एक-एक कर अपने आठ जेम्स बॉन्डों, शरलॉक होम्स, माताहारियों और आना चैपमैनों को श्रद्धा हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए जंगल में उतार दिया.

श्रद्धा की दुखद मौत पर सियासत का नंगा नाच भी देखने को मिला. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह काबिले जिक्र हैं क्योंकि उन्होंने भारत के संविधान की शपथ ले रखी है. भारत सरकार के मंत्री हैं. इनकी जुबान से, व्यवहार से इस देश के सवा अरब नागरिक उम्मीद करते हैं कि जब ये मुंह खोलें तो कानून सम्मत, संविधान सम्मत बात ही बोलें. लेकिन इन्होंने उल्टा बोलने की शपथ संविधान की शपथ से ऊपर रखी है.

बीते हफ्ते आरोप लगा कि अरविंद केजरीवाल अपने नेता सत्येंद्र जैन को गलत तरीके से तिहाड़ जेल के भीतर लाभार्थी बना रहे हैं. पर केजरीवालजी का कहना है कि उनकी सरकार ने कुछ भी गलत नहीं किया. केजरीवाल जी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के वक्त हमेशा शिकायत करते थे कि नेताओं को जब जेल जाने की नौबत आती है तब वो बीमार पड़ जाते हैं. अब केजरीवाल ने बीमार नेताओं को वो सारी सुविधाएं जेल में मुहैया करवा दी जाएंगी जिसके लिए नेता बीमारी का बहाना करते थे. इस तरह उन्होंने अपना एक और वादा पूरा कर दिया है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

क्या मीडिया सत्ता या कॉर्पोरेट हितों के बजाय जनता के हित में काम कर सकता है? बिल्कुल कर सकता है, लेकिन तभी जब वह धन के लिए सत्ता या कॉरपोरेट स्रोतों के बजाय जनता पर निर्भर हो. इसका अर्थ है कि आपको खड़े होना पड़ेगा और खबरों को आज़ाद रखने के लिए थोड़ा खर्च करना होगा. सब्सक्राइब करें.

Subscribe Now
Also see
इंस्टाग्राम की खूबसूरती से बहुत अलग और स्याह थी श्रद्धा-आफताब की दुनिया
एनएल चर्चा 241: श्रद्धा हत्या केस, जी 20 वार्ता और टेक-जगत में जाती नौकरियां
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now
newslaundry logo

Pay to keep news free

Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like