जलवायु परिवर्तन: रियो समिट के 30 साल और संयुक्त राष्ट्र की खामोशी

रियो शिखर सम्मेलन के बाद के 30 साल, दुनिया में सबसे तेज बदलाव का दौर रहा.

Article image
  • Share this article on whatsapp

त्रि-स्तरीय संरचनाओं के अस्तित्व में आने से जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के प्रावधानों को जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए एक मंच मिला. पंचायत स्तर पर 275,000 से अधिक जैव विविधता प्रबंधन समितियों और जैव विविधता रजिस्टरों के विकास में स्थानीय समुदायों की भागीदारी से गांवों और शहरी क्षेत्रों के आसपास जैव विविधता को लेकर जागरूकता बढ़ी है. केरल जैसे राज्यों ने पंचायत स्तर के नेताओं को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को लेकर प्रशिक्षित किया है. इसी का नतीजा है कि मीनांगडी जैसी पंचायतों ने कार्बन तटस्थ होने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

प्रकृति के तेवर

हालांकि, पर्यावरण पर सबसे बड़ा आघात प्रकृति की तरफ से ही आया है. अभी भारत का उत्तरी हिस्सा, भीषण गर्मी और लू की चपेट में है. यहां का तामपान 45 डिग्री सेल्सियस और 50 डिग्री सेल्सियस के बीच रह रहा है. विशेषज्ञ इन हीटवेव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देख रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि देश में एक नेशनल हीट कोड बनाया जाए. उधर अर्बन हीट आईलैंड इफेक्ट की वजह से शहरों में गर्मी का प्रकोप और बढ़ा है. अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी गरीबों को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. जलवायु संबंधित मुश्किलें उनके लिए अधिक चुनौती लेकर आती है.

पर बढ़ती गर्मी और लू का यह रूप जो दिख रहा है वह कहानी का एक हिस्सा भर है. समुद्री जीवन में भी इसका असर दिखने लगा है. पिछले चार दशक में पश्चिमी हिंद महासागर में प्रति दशक 1.5 घटनाओं की दर से, समुद्री हीटवेव की संख्या में, वृद्धि हुई है. बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में प्रति दशक 0.5 घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. इन हीटवेव से अरब सागर में पहले से ही बढ़ते तापमान में और वृद्धि हो सकती है. इससे समुद्री चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है. यहां तक कि दक्षिण-पश्चिम मानसून भी चरम मौसम की घटनाओं में तब्दील हो सकती है.

भविष्यवाणी भी कुछ अच्छी नहीं दिख रही है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज इन वर्किंग ग्रुप 1 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में हीटवेव अधिक तीव्र होगी और लगातार होगी. गर्मी और मानसून में होने वाली वर्षा बढ़ेगी और अधिक तीव्र हो जाएगी. यही नहीं, एक साथ मिश्रित चरम मौसम की घटनाएं होने की संभावनाएं हैं जिसे भीषण क्षति होने की संभावना बनी रहेगी.

पिछले कुछ वर्षों में चरम मौसम की घटनाओं के दौरान लोगों की भागीदारी और साथ ही जागरूकता भी बढ़ी है. दिसंबर 2015 में आए, चेन्नई बाढ़ के दौरान राज्य सरकार के उच्च अधिकारियों ने आम लोगों को उनके हालात पर लगभग छोड़ दिया था, तब आम लोगों ने अपने स्वयं के संचार और अल्पकालिक पूर्वानुमान नेटवर्क का नवाचार किया. अगस्त 2018 में केरल में आए बाढ़ के दौरान भी इसी तरह की सामाजिक एकता दिखी. केरल की बाढ़ में 310 अरब रुपये का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान लगा था.

क्लीन टेक्नोलॉजी को लेकर फंडिंग में हो रहा बदलाव

इन्हीं क्रूर वास्तविकताओं के मद्देनजर भारत में हो रहा एनर्जी ट्रांजिशन एक स्वागत-योग्य कदम है. एनर्जी ट्रांजिशन से तात्पर्य ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने और नवीन ऊर्जा का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने से है. हालांकि इसकी भी अपनी पर्यावरण और सामाजिक तौर पर न्यायसंगत होने की अपनी चुनौतियां हैं. वैश्विक तस्वीर में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जब दुनिया की 17% आबादी जीवाश्म ईंधन से दूर हो जाएगी.

बड़े कॉरपोरेट घरानों अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को लेकर अपनी योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं. इस क्षेत्र में विदेशी और भारतीय निवेश की उम्मीद बनी है. यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है क्योंकि कुछ गलत फैसलों और फिर महामारी के आने से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में है. 1990 के दशक में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत हरित कूटनीति और स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम) पर रुझान था. अब ग्रीन व्यापार और निवेश संबंधों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है..

भारत देश में अक्षय ऊर्जा के विस्तार के उद्देश्य से वित्त जुटाने के लिए 240 अरब रुपये के सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने की योजना बना रहा है. 1 फरवरी, 2022 को दिए गए अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि ग्रीन इन्फ्रस्ट्रक्चर के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से ग्रीन बॉन्ड जारी किया जाएगा. इसे सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. कार्बन तीव्रता कम करने से तात्पर्य उसी काम को करने पर कम कार्बन उत्सर्जन हो, यह लक्ष्य हासिल करने से है.

सौ दिन चले ढाई कोस

रियो शिखर सम्मेलन के बाद के 30 साल, दुनिया में सबसे तेज बदलाव का दौर रहा. चीन और भारत जलवायु परिवर्तन शमन के लिए महत्वपूर्ण देश बन गए हैं. वैश्वीकृत दुनिया में लगातार नए नए परिवर्तन हो रहे हैं और राष्ट्रवादी संस्थाओं का उभार हो रहा है. दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान ने अपना प्रतिकूल प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है.

जैसे-जैसे भारत में नवीन ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था कम कार्बन उत्सर्जन करेगी. जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता भी कम होगी जो दूसरे देशों से आयात होती है और इसको लेकर तमाम व्यवधान का डर भी बना रहता है.

यूक्रेन युद्ध ने फिर से सबका ध्यान इस तरफ खींचा है कि कैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता आपको कमजोर बनाती है. युद्ध और फिर पश्चिमी देशों के द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध से बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम ईंधन बाजार से बाहर हो गया है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, 2021 में रूस ने कुल वैश्विक कच्चे तेल की आपूर्ति में 14% योगदान दिया. रूस अमेरिका के बाद प्राकृतिक गैस उत्पादक देशों में दूसरे नंबर पर है.

अगर दुनिया भर के देशों में, खासकर एशियाई देशों में अक्षय ऊर्जा का विस्तार होता है तो इसका एक फायदा और भी है. इससे महासागरों में जीवाश्म ईंधन को ढोने के लिए भारी यातायात में कमी होगी. युएनसीटीएडी द्वारा तैयार समुद्री परिवहन 2021 की समीक्षा में कहा गया है कि 2020 में वैश्विक स्तर पर जहाजों के द्वारा ढोए गए माल में 10,63.1 करोड़ टन में से 186.3 करोड़ टन कच्चा तेल था. वहीं 122.2 करोड़ टन अन्य टैंकर व्यापार था और साथ ही116.5 करोड़ टन कोयला था. भौगोलिक रूप से, इसमें से 106 करोड़ टन कच्चा तेल और 60.9 करोड़ टन अन्य टैंकर व्यापार एशिया में आया. कोयले के संबंध में, चीन ने 20% आयात किया और भारत ने विश्व व्यापार का 19% आयात किया. दूसरे शब्दों में कहें तो जीवाश्म ईंधन का वैश्विक शिपिंग डिस्चार्ज में 40% हिस्सेदारी है और इनमें से अधिकांश एशिया में आयात करने वाले देशों की ओर बढ़ रहे हैं.

इस तरह जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए पहले वैश्विक सम्मेलन के बाद से पृथ्वी गर्म हुई है, जलवायु जोखिम का खतरा बढ़ा है और जैव विविधता प्रभावित हुई है. बावजूद इसके, आने वाले दशकों में कुछ सकारात्मक कदम उठेंगे ऐसी उम्मीद दिखती है.

(अनुवाद- कुंदन पांडेय)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(साभार- MONGABAY हिंदी)

Also see
article imageखिलाड़ियों की कड़ी परीक्षा: ओलंपिक पर पड़ रही जलवायु परिवर्तन की मार
article imageजलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचना है तो विकसित देशों को पैसा खर्च करना ही होगा
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like