हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
एनएल चर्चा के इस अंक में वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की गिरी रैंकिंग, द वायर द्वारा मेटा पर की गई रिपोर्ट्स पर खड़ा हुआ विवाद, केंद्रीय मंत्री ने बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई का किया समर्थन, ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने दिया इस्तीफा, यूक्रेन में स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीयों के लिए जारी की एडवाइजरी और कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई अन्य विषयों का जिक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते वरिष्ठ स्वास्थ्य पत्रकार बनजोत कौर, स्वतंत्र पत्रकार समर्थ बसंल और वरिष्ठ पत्रकार ह्रदयेश जोशी शामिल हुए. संचालन सह-संपादक शार्दूल कात्यायन ने किया.
शार्दूल ने चर्चा की शुरुआत वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की गिरती रैंकिंग के विषय से की. बनजोत से सवाल पूछते हुए वह कहते हैं, “इस साल की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग फिर से गिर गई. साल 2014 में 55 वें स्थान पर थे और पिछले साल 101वें स्थान पर. अगर हम इस विषय पर राजनीति से हटकर बात करें तो आहार और पोषण के आंकड़ों के हमारे देश के लिए क्या मायने हैं? साथ ही इस रिपोर्ट को लेकर विरोध और पक्ष में बात करने वाले अधिकतर राजनीति से प्रेरित दिखते है बजाय की आंकड़े क्या कहते हैं.”
बनजोत कहती हैं कि, "हाल फिलहाल में जितनी भी रिपोर्ट आई हैं, चाहे फिर वो कोरोनावायरस में डब्ल्यूएचओ की डेथ रिपोर्ट हो या प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट, भारत ने उसे नकार दिया. जितनी भी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट हाल फिलहाल में आईं जिनमें भारत की स्थिति ठीक नहीं होती, सरकार उनको खारिज कर देती है. हंगर इंडेक्स रिपोर्ट से पहले सोफी-2020 नाम से एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि भारत के लगभग 70 प्रतिशत जनता न्यूट्रिशियस फूड को अफोर्ड नहीं कर पाती. इससे पहले भी कई रिपोर्ट्स हेल्थ को लेकर आ चुकी है. हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट को छोड़ भी दें तो आप पाएंगे कि स्वास्थ्य को लेकर स्थिति चिंताजनक है.”
इसी विषय पर समर्थ अपनी बात रखते हुए कहते हैं, “अगर आपको याद हो तो विश्व बैंक “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” इंडेक्स जारी करता था. इसको लेकर मीडिया में बताया गया था कि भारत सरकार ने कितने प्रयास किए ताकि उस इंडेक्स में भारत की रैंकिंग बढ़े, तो यह राजनीतिक खेल है. जो आंकड़े हमें सूट करते हैं, हम उसकी कार्यप्रणाली को नजरअंदाज कर देते है. वहीं जो रिपोर्ट हमारे पक्ष में नहीं होती हैं, हम उसकी कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठा देते हैं. दूसरा जब इस तरह की रिपोर्ट्स आती है तब हम दूसरे देश से खुद की तुलना करने लगते हैं, रिपोर्ट का यही महत्व होता है. साथ ही पूरी बातचीत का केंद्र दूसरे मुद्दों पर चला जाता है.”
हृदयेश जोशी कहते हैं, “खाना मिलने के बाद भी कुपोषण की कमी हो रही है. इसका मतलब है कि बच्चों को न्यूट्रिशियस खाना नहीं मिल रहा है. कई राज्यों में स्कूलों में धर्म से जोड़ते हुए अंडे की जगह केला देने की बात कही गई. बच्चों का राइट है कि वह क्या खाना पसंद करते हैं. अंडे को धर्म से नही जोड़ना चाहिए.”
वह आगे कहते हैं, “मैं उत्तराखंड का उदाहरण देना चाहूंगा कि जब से खाद्य सुरक्षा एक्ट आया है तब से एक तरह का भोजन दिया जाने लगा, जिसकी वजह से महिलाओं में एनीमिया की समस्याएं ज्यादा बढ़ने लगीं. क्योंकि वे वही खाना खा रही हैं, जो उन्हें हर दिन मिल रहा है. आप खाना तो खा रहे हैं लेकिन यह देखना होगा कि वह पौष्टिक आहार है या नहीं. दूसरा सरकार को एक और काम करना चाहिए कि वह भोजन के लिए सिर्फ गेहूं, दाल, चावल तक ही सीमित न रहे. उसे लोगों को वह सब कुछ देना चाहिए जिससे उनकी मूलभूत जरूरतें पूरी हों.”
इस विषय के विभिन्न पहलुओं के अलावा चर्चा में द वायर और मेटा के बीच हुए विवाद पर भी विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
00:00:00 - 00:22:13 - इंट्रो और हेडलाइंस
00:00:00 - 00:41:43 - वैश्विक भूख सूचकांक
00:42:56 - 00:44:15 - दिवाली गिफ्ट हैंपर
00:44:15 - 01:11:20 - द वायर और मेटा विवाद
01:11:20 - 01:18:27 - बिलकिस बानो केस
01:18:27 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
हृदयेश जोशी
विवेक शानभाग की किताब - घाचर घोचर
समर्थ बसंल
नेटफ्लिक्स सीरीज - एक्सप्लेन्ड
वॉट काउंट एज ए बेस्टसेलर - पब्लिक बुक पर प्रकाशित लेख
बनजोत कौर
स्टेट फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड रिपोर्ट 2022
शार्दूल कात्यायन
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प्रोड्यूसर- चंचल गुप्ता
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह